Thursday, April 18, 2013

सपने का सच /लघुकथा 
देवी सुनोगी क्या ………… ?
क्यों तुम्हारे साथ उम्र गुजर गयी बिना सुने .सुनाओ क्या सुना रहे हो .
सपना …………
बुढौती में सपना रानी कहा मिल गयी .
देवी गलत सोच रही है। मैं किसी सपना लड़की की बात नहीं कर रहा हूँ .मैं सपना यानि ड्रीम की बात कर रहा हूँ
क्या ....तुम सपनों पर विश्वास करने लगे .
देवी विश्वास अविश्वास की बात नहीं कर रहा हूँ सपना देखा हूँ उसी सपने की बात कर रहा हूँ ,
बताओगी भी की भूमिका बांधते रहोगे ......?
सपने में माँ ,सासूमाँ, और सुभौती काकी की परछाईं के साथ दीदी को पत्तल गिनते देखा हूँ .
सपना तो अच्छा नहीं है .
धर्मपत्नी की बात सुनकर हरिबाबू के मन में शंका -कुशंका  के  अवारा बादल रह रह कर गरजने लगे थे .इसी बीच तीसरे दिन यानि सतरह  अप्रैल को छोटे  भी  डाक्टर साहेब  का फोन आया कि अधेड़ सुभौती काकी बैठे -बैठे मर गयी .काकी  सास के मौत की खबर सुनकर गीता बोली तुम्हारा सपना अनहोनी की आहट  दे गया था .
सच आहट तो हो जाती है पर हम सपने के सच का आंकलन नहीं कर पाते .

डॉ नन्द लाल भारती
19 .4 .2 0 1 2