Friday, September 18, 2015

सुनामी /लघुकथा

सुनामी /लघुकथा 
रोहनबाबू ड्योढ़ी के बाहर जूता निकाल कर पाँव रगड़ते हुए कमरे में दाखिल होते ही कुर्सी में अंदर तक धंस गये.रोहनबाबू को चिंतित देखकर  धन्वन्ति सिर पर हाथ फिराते हुए पूछ बैठी - करन के पापा दफ्तर में किसी से कुछ कहा सुनी हो गयी क्या ?
नहीं भागवान । 
फिर ये सौत का आतंक क्यों ?
कैसी सौत ?
आपकी चिंता किसी सौत से कम है क्या ? चिंता का कारण  क्या है प्राणनाथ ?
एक महिला । 
कहाँ गयी बदचलन औरत ?
कालोनी के नुक्कड़ पर । 
कहाँ की थी ?
आसपास की के किसी कालोनी की रही होगी । यह  महिला  चिंता का कारण कैसे हो गयी ।  कालोनी का प्रवेश अतिक्रमण का शिकार है,दबंगो का कब्ज़ा है। मुख्य सड़क सकरी गली जैसी हो गयी है| सुबह शाम जाम लग जाता है| अभी यही हाल था । अपनी गाड़ी एक तरफ किनारे खड़ी थी । एक महिला एक्टिवा से   आयी मेरी गाड़ी में टक्कर मार दी ,इसके बाद भी मेरे ऊपर चिल्लाने लगी,अंधे हो क्या ,अपनी औकात में रहा करो और ना जाने क्या ?
हमने बोला मैडम खड़ी गाड़ी में टक्कर मार दिया,हजारो का मेरा नुकशान कर  दिया,यह तो वही हाल हुआ उलटा चोर कोतवाल को डांटे | इतना सुनते ही मोहतरमा  द्रुतगति से भाग निकली। 
मिठाई की दुकान वाला मोदक तौलते हुए बोला बाप रे औरत है कि सुनामी।
धन्वन्ति बोली-चिंता छोडो करन के पापा सुनामी निकल गयी|ॉ
डॉ नन्द लाल भारती
18.09 .2015

Sunday, September 6, 2015

निरुत्तर /लघुकथा

निरुत्तर /लघुकथा 
लम्बा टीका और शरीर पर गेरुआ वस्त्र लपेटे ज्योतिषी ने अपनी कई भविष्य वाणियों को सत्य साबित कर विश्वास की पकड़ मजबूत बनाये जा रहे थे। इसी बीच एक व्यक्ति ने नाम के साथ उपनाम लगाये जाने के मुद्दे पर सवाल कर दिया। ज्योतिषी सवाल के जबाब में बोले उपनाम व्यक्ति कुल वंश और गोत्र के परिचायक होते है ।
दूसरा व्यक्ति बोला गलत । 
तीसरा बोला व्यक्ति के स्व अभिमान और अन्धविश्वास को बढ़ावा है और कुछ नहीं । उपनाम का चलन ख़त्म चाहिए । 
ज्योतिषी बोले क्या ज़माना आ गया है लोग कुल वंश को ख़त्म करना चाहते है ।
चौथा व्यक्ति बोला ज्योतिषी महोदय मत नाराज होइए, सोचिये और श्री कृष्णा का यादव उपनाम नहीं था श्री राम जिन्हे मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है उनका उपनाम सिंह नहीं था । उपनाम का दौर व्यक्ति के स्व अभिमान और अन्धविश्वास को बढ़ावा नहीं तो और क्या है ……?
निरुत्तर तथाकथित ज्योतिषी ने बस्ता समेट कर नौ दो ग्यारह हो लिए |
डॉ नन्द लाल भारती
06 .09 .2015

जय-जयकार /लघुकथा

जय-जयकार /लघुकथा 
पंद्रह अगस्त के जश्न के सुअवसर पर आयोजित वक्तव्य कार्यक्रम में गेरुआ धोती, कुर्ता और टोपीधारी   प्रथम वक्ता अपने वक्तव्य की शुरुआत कर्मकांडी श्लोको से कर  आज़ादी का  सेहरा हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वंय सेवक के सिर पर बाँध कर गौरान्वित महसूर कर रहे  थे परन्तु बेखबर  श्रोता जैसे कानो  में  अंगुली डाले बैठे थे । इस चुप को तोड़ते हुए उच्चवर्णिक जर्नलिस्ट  कन्या ताल ठोकते हुए  बोली वक्ता महोदय आज़ादी की जंग   पूरे भारत ने जाति धर्म से ऊपर उठकर लड़ी थी तभी देश आज़ाद हो पाया वरना देश का क्या हाल होता ? वक्ता  महोदय आपका कथन आज़ादी के दीवानो अमर शहीदो का अपमान है।सर्वधर्म और समभाव को आहत करता है], बहुत हो गया अब जाति-धर्म के नाम पर बंटवारा ,आज की  युवा पीढ़ी बहकावे में नहीं आने वाली है, आज की पीढ़ी को   समतावादी समाज और सर्व संपन्न देश चाहिए जाति धर्म के नाम जहर उगलता  भेदभाव  नहीं । इतना सुनते ही जर्नलिस्ट कन्या की जय-जयकार होने लगी।   डॉ नन्द लाल भारती
26.08.2015