Friday, August 30, 2013

आंकलन/लघुकथा


आंकलन/लघुकथा 
बड़े साहेब चिल्लाते हुए बोले अरे ये रिपोर्ट किसने बनाया है।
दीनानाथ-मैंने बनाया है कोई  गलती हो गयी क्या ?
तुम्हारा काम और गलत ना हो।
कोई गलती नहीं है।
तुम्हारे तैयार  किये गए  कागजातों पर सिग्नेचर करने में डर लगता है। बहुत बारीकी से जांच करना पड़ता है कहते हुए सिग्नेचर कर दिये. दीनानाथ कक्ष से बाहर  जाने लगा।
साहेब- कहा जा रहे हो ?
दीनानाथ -दूसरे और काम करने  है .
बड़े साहेब-गरज कर बोले ये देखो।कागज लहराते हुए बोले ये काम तुम्हारे ही किये है ना ,देखो गलती ही गलती  तुम्हारी गलती की वजह से मेरी ईमेज स्टेट इंचार्ज के सामने कल  खराब   हो गयी। 
दीनानाथ- क्या मेरी गलती से  ?
बड़े साहेब- हां  ये रिपोर्ट तुमने बनाया है ना।
दीनानाथ -एस.…….  आफ कोर्स।
बड़े साहेब -कितनी गलत रिपोर्ट तुमने बनाया है।
दीनानाथ -कम्पोजिंग में तो कोइ गलती नहीं है। हाँ आकडे गलत हो सकते है क्योंकि आकडे मेरे नहीं है आपके है।  साहब जो भी मैं  काम करता हूँ ,ईमानदारी,वफादारी ,दूरदृष्टि,पक्के इरादे ,कड़ी मेहनत और अनुशासन में रहकर करता हूँ।  दुर्भाग्यवश मेरे  और मेरे काम का आंकलन जातीय तराजू पर होता  है। कर्म की श्रेष्ठता पर नजर ही नहीं जाती।
इतना सुनते ही साहेब का चश्मा सिर  पर चढ़ गया।
डॉ नन्द लाल भारती 30.08. 2013  


Tuesday, August 27, 2013

कत्ल /लघुकथा

कत्ल /लघुकथा 
बिग बॉस विक्रय बिलों का पुलिंदा रखते हुए बोले रघुराज आज ये सारी सेल बुक हो जनि चाहिए । 
बॉस साढ़े सात बज चुके है।  ढाई तीन घंटे का  ये पूरा  काम है। 
काम तो कारन पड़ेगा  चाहे तीन घंटा लगे चाहे चार …।
दफ्तर का समय दस से साढ़े पांच बजे तक होता है बॉस।
जनता हूँ।  काम तो  करना पड़ेगा। 
जल्दी आना देर से जाना रोज का काम हो गया है बंधुवा मजदूर जैसे।हमारे भी बाल-बच्चे है घर-परिवार है बिना किसी लाभ के पेट पर पट्टी  बाँध कर कब तक काम करूँगा।  अत्याचार अब सहा  नहीं जाता बॉस । 
अत्याचार कैसा      ?
अत्याचार नहीं तो और क्या नाम दूं   ?
ड्यूटी है तुम्हारी ,अत्याचार नहीं। काम तो  तुम्हे करना पड़ेगा। 
ड्यूटी का समय ख़त्म हो चुका  है। 
अच्छ तो साहेब को ओवर टाइम चाहिए। 
मैं भी नौकरी कर रहा हूँ औरो की तरह। श्रम और समय की खैरात लुटाने नहीं आया हूँ। समय  से आता हूँ रोज देर से जाता हूँ।कभी-कभी तो रात के दस बज जा रहे है ये कैसी नौकरी हमारी। एक स्वजातीय अफसर है बारह बजे आते है ,रौब दिखाते है ,दस  हजार तक का अतिरिक्त लाभ यात्रा भत्ता ,लोकल कनवेंस के नाम पर ले रहे है .ऊपर से सरकारी एंव अन्य ढेर सारी  सुविधाओ का भरपूर उपभोग। बच्चे सरकारी गाडी से  स्कूल और ट्यूशन जा रहे है। हम भी उसी विभाग के कर्मचारी है जिस विभाग के दूसरे विशेष सुविधा प्राप्त।   मुझ परजाति के  कर्मचारी को विभाग के हित में फ़र्ज़ पर फ़ना होने का दंड क्यों मिल रहा है।  क्या यह श्रम और मानवाधिकार का क़त्ल नहीं… ?  कहते हुए रघुपति टिफिन उठाया और घर की और चल पड़ा।                      डॉ नन्द लाल भारती। 28.08.2013  
 

 

Monday, August 26, 2013

कूटनीति /लघुकथा



कूटनीति /लघुकथा
सर लोग खूब लाभ उठा रहे है और आप उत्पीड़न।
ज्वाइनिंग से ऐसा दंड मिल रहा है।
क्यों सर ….?
बेटा  रतन ये इंडिया है ,यहाँ बहुत सारी बातो का फर्क पड़ता है।
नहीं समझ सर। .
जातिवाद,धर्मवाद,भाई-भतीजावाद,वंशवाद  ,रतन अभी तुम नए हो रह  समझ जाओगे।
समझ गया सर आपकी अवन्नति,नुकशान,उत्पीडन और उपेक्षा का कारण  भी।
क्या……।
तथाकथित   छोटी जाति और और उच्च वर्णिक जातीय कूटनीति।
डॉ नन्द लाल भारती 27.08.2013  

Friday, August 23, 2013

खडी फसल /लघुकथा

खडी फसल /लघुकथा
दतिया वालो का मैसेज आ गया।
कब आ रहे है।
नहीं आ रहे।
क्यों। …… ?
रिश्ता  मंजूर नहीं।
क्यों एकदम से क्या हो गया। पांच दिन पहले तो बहुत पसंद था।
पांह दिन पहले था ,अब खडी फसल पर ओले पड़ गए।
कैसी फसल कैसे ओले बिन मौसम बिन बदरी।
भागवान… दहेज़ की फसल पर।
वो कैसे     ?
डॉ इंजीनियर शिक्षक उच्च शिक्षित परिवार है।
आपसे ज्यादा…?
सोच में अंतर तो हो सकता है।
कैसी और किस सोच में।
दहेज़ को लेकर क्या   ?
भगवान खूब समझी ,उन्हें लगा होगा कि जो बाप बेटे के एडमिशन के लिए 25 लाख  डोनेशन देने की स्थिति में नहीं है वह दहेज़ क्या देगा। डॉ नन्द लाल भारती। 24.082013  


Wednesday, August 21, 2013

वचन/लघुकथा


वचन/लघुकथा
पापाजी राखी के दिन तो जल्दी आ जाते।
हाँ बीटा आना तो था पर नहीं आ पाया नौकरी करनी है ना।
पापाजी और लोग नौकरी कर रहे है। देर से जाना जल्दी आना रोज का काम होता है पर आप तीज त्यौहार के दिन जल्दी नहीं आ पाते। दफ्तर का समय तो दस से साढ़े पांच बजे है फिर बेगारी क्यों। राखी के दिन सात बजे आ रहे हैं।
बेटी छोडो जाओ थाली तैयार करो. कमजोर आदमी को दंड तो मिलता है।  क्यों जी आज भी कोई दफ्तर में नहीं रहा होगा। यही ना।
हाँ  भागवान।
शोषण,अत्याचार, भविष्य का क़त्ल इसके बाद भी बाबूगिरी से चौकीदारी तुम्हारी ही जिम्मेदारी , वाह  रे भेदभाव ,घाव एक दर्द हजार।
भगवान-मुहूर्त नहीं निकल रहा है क्या अब.
फुआ  जी लज्दी  राखी बांधो वरना  मुहूर्त निकल जायेगा
क्या दे रहे हो जी।
क्या दूं भागवान।
वजन बढाओ वचन तो पूरा कर नहीं पाओगे साठ साल की उम्र तक।
डॉ नन्द लाल भारती   21.08.2013



Friday, August 2, 2013

विदाई /लघुकथा

विदाई /लघुकथा
रिटायर्मेंट की औपचारिक विदाई के आखिरी पल में लालदास से कामदास ने पूछा अपने सेवा काल के बारे में कुछ बताओ।
लालदास- खून के आँसू। वह रुमाल निचोड़ते हुए बोल दोयम दर्जे का आदमी बना दिया गया।  सेवाकाल नारकीय रहां. उच्च योग्यता को जातिवाद के कसौटी पर अयोग्य साबित करने का पूरा प्रयास हुआ। तरक्की से दूर फेंक दिया गया। शोषण,उत्पीडन और दर्द में मधुमास बिता। कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार बना रहा।
कामदास-तपस्यारत रहकर दर्द में सकून ढूढा  है शायद इसीलिए की रूपया खुद नहीं तो खुद से कम नहीं।
लालदास-जीवन यापन के लिए तो कुछ करना ही था नौकरी ही सही, दुर्भाग्यवश जितिवाद के मरुस्थल में फंस गया । सेवाकाल सिर पर तेज़ाब के गठरी और छाती पर दर्द का बोझ  लेकर बिता है . अर्थ की तुला पर व्यर्थ हूँ पर जहाँ  में उजली पहचान तो बन गयी है ,विष पीकर ही सही।
कामदास -रिटायरर्मेंट के बाद का जीवन सुखी रहे,संतोष की सफलता मुबारक हो मेरे यार.

 डॉ नन्द लाल भारती
03 .08 .2013  

Thursday, August 1, 2013

नीची जाति /लघुकथा

नीची जाति /लघुकथा 
दुनिया छोटी होती जा रही है पर लोग नहीं बदल रहे है ,तवज्जो मिलने लगती है तो पाँव जमीन पर नहीं पड़ते।
किसकी बात कर रहे हो।
कैद  नसीब का मालिक किसी की बात कैसे कर सकता है। अकसर लोग करते है।
जी प्रसाद की बात कर रहे हो क्या ?
नहीं ----?
जी प्रसाद साहब की सेवा में जुटा है। गुट बदल लिया है। उसके गाड फादर का तबादला हो गया है। जानते नहीं हो क्या ?
जानकर क्या करूँगा मेरा तो कोई  गाडफादर है ही नहीं नीली छतरी वाले के सिवाय।
अच्छी बात है। जी प्रसाद दो लोगो का लंच लेकर आता है। सीधे चला जाता है। इसलिए खफा हो क्या ?
लंच लेकर आता है मतलब।
जल्दी में होता है।
कहीं लंच के अपवित्र होने का डर तो नहीं।
हो सकता है।
कैसे वी कुमार बोले।
सेवादास नीची जाति का नहीं है क्या ?
डॉ नन्द लाल भारती  ०२ अगस्त २०१३

दरबारी शौक /लघुकथा

दरबारी शौक /लघुकथा
दरबार-दरबार की हुंकार तुम्हारे दफ्तर है ,क्या है दरबार ?
संभवतः राजपरिवार  से सम्बंधित हो।
राजतंत्र नहीं लोकतंत्र है।
भ्रम है मित्रवर।
कैसे ?
लोकतंत्र में आम आदमी कहा है ?
हाशिये पर ,खैर असली आजादी का मतलब तो ये नही था।
मतलब कुछ रहा हो पर तंत्र का चेहरा विकृत हो गया है। संविधान राष्ट्र का धर्म ग्रन्थ होना चाहिए  था है क्या, जातिवाद पर कोइ फर्क पड़ा क्या ,स्व-धर्मी मानवीय समानता है क्या ,भूमिहीनता ख़त्म हुई क्या। शोषितों की बस्ती के कुएं का पानी पवित्र हुआ  क्या ?नहीं ना।
समझ गया।
क्या             ?
गुलामी और असली आजादी का सपना ना पूरा होने का कारण।
क्या   ?
राज दरबारी शौक।
डॉ नन्द लाल भारती
  02 अगस्त 2013