Sunday, May 25, 2014

विश्वनाथ दर्शन / लघुकथा

विश्वनाथ दर्शन / लघुकथा
नाना क्या हुआ पंडितजी ने क्यों हाथ पर झपटा मारा है तनु पूछी।
दानपेटी में कुछ रूपया  डाल रहा था वही छीन लिया है पंडितजी ने।
तनु- पंडितजी छिना झपटी क्यों ?
पंडितजी- ये रूपया मंदिर के  जायेगा।
तनु-दानपेटी का रूपया कहा जाता है बतायेगे ?भगवान के  मंदिर में डकैती। नरक जाने की पूरी तैयारी कर बैठे है पंडितजी ? कशी विश्वनाथ बाबा सब देख रहे है।
मेरे नाना परदेस से आये है कशी विश्वनाथ के दर्शन करने क्या यादे दे कर भेज रहे हो ,पंडितजी ने  तो कान में जैसे रुई ठूस लिया।
बेटी ऐसे पंडा पुजारियों के  कारण तो लोग मंदिर जाने में खौफ खाते  है।
तनु- हां नाना बिलकुल ठीक कह रहे है इसीलिए तो हम लोग बनारस में रहकर भी नहीं आये  ,पहली बार आपके साथ आये तो देखो पंडितजी ने छिना -झपटी कर लिया। नाना मंदिर में भगवन के दर्शन की बजाय घर मंदिर ज्यादा बेहत्तर है। नाना बनारस के  ही संतशिरोमणी  रविदास ने कहा है मन चंगा तो कठौती में गंगा। 
हां बेटी बात तो सही है पर आस्था तो मंदिर से जुडी  है न।
तनु-आस्था का ही तो नाजायज फायदा ये लोग उठा रहे है। भगवान के घर में भी तनिक खौफ नहीं इन पंडा पुजारियों को।
हां बेटी भगवन और मंदिर को बपौती समझने वाले इंसान को  ही नहीं भगवान को धोखा देने वाले पंडा -पुजारी नास्तिक बनाने पर तुले हुए है। घर मंदिर ज्यादा बेहत्तर है ।
डॉ नन्द लाल भारती    25 मई2014