Friday, December 27, 2013

धृतराष्ट्र/लघुकथा

 धृतराष्ट्र/लघुकथा
कल क्यों नहीं आये।
कहाँ ....?
ड्यूटी पर।
छुट्टी थी कल ।
आने को कहा था मै और दूसरे अधिकारी भी आये थे .
बॉस पेट्रोल रूपये लीटर है ,जीवन के पल अनमोल है क्यों बिना किसी मूल्य के बेकार करता .
मतलब दूसरे लोग लूट रहे हैं .
सिर्फ स्व-जातीय और दोनों हाथो से। मै का मालिक इसमे शामिल नहीं।
क्या …?
बॉस कलयुग के  धृतराष्ट्र ना बनिए ।
डॉ नन्द लाल भारती 28 .12 .2013

रिश्वत /लघुकथा

 रिश्वत /लघुकथा
दादा पांव लांगू 
 तरक्की करो बेटवा . सौतेली माँ सब लूट कर मायका भर दी क़म से माँ अब से भगवान सुन लेते . विदेश कब जा रहे हो बेटा । 
दादा छः महीने के बाद शायद। 
क्यों क्या हुआ बेटा। 
मेडिकल फिर से होगा। 
क्यों … ।
दिल्ली का पानी नहीं पचा ।
मतलब जुकाम हो गया था . डॉ को रिश्वत नहीं दिया ,नरभक्षी ने फेल कर दिया य़े नरभक्षी किस्म के लोग गरीबो का भविष्य कब तक तबाह करते रहेगे। .
हां दादा फेल हो गया .पास  होने की कीमत पंद्रह सौ रूपया थी  बाद में पता चला ।
 बेटवा गरीब की आह बेकार नहीं जायेगी।
डॉ नन्द लाल भारती 28  . 12  . 2013

Friday, November 29, 2013

आशीर्वाद /लघुकथा

आशीर्वाद /लघुकथा
पापा नेताजी जीताओ मित्र मंडल के सदस्य आये थे।
क्या फरमान लाये थे।
नेताजी अपने घर आने वाले है आज।
कोई  लालच देने क्या ? पांच साल तक तो दूर -दूर तक नहीं दिखाई पड़े अब घर। वाह रे वोट की लीला नेताजी घर आ रहे गरीब के।
पापा नेताजी जीताओ मित्र मंडल के सदस्य फूलमाला दे गए है।
 वाह क्या खूब …? नेताजी खुद के अभिनन्दन के लिए फूलमाला तक का बंदोबस्त एडवांस में करवा दिए है
शहीदो की आत्माएं विलाप कर रही होगी ऐसे लोकतंत्र की सिपाहियो को देखकर।   देश और जन हित का क्या काम करेगे ऐसे   आशीर्वाद लेने वाले स्वार्थी  नेता।  
डॉ नन्द लाल भारती   29 . 11. 2013

श्रध्दांजलि /लघुकथा

श्रध्दांजलि /लघुकथा
अरे सुनती हो भागवान।
क्या सुना रहे हो। तुम्हारी सुन-सुन कर अब तो कान सवाल-जबाब करने लगे है.,सुनाओ सुन रही हूँ।
भागवान ललित  गुप्ताजी चल बसे।
क्या,कब कैसे ………?बेचारे जवान बेटे कि मौत का गम ढोते-ढोते  लगता है थक गए थे। बेटी केरलवासी हो गए। गुप्ता आंटी का क्या होगा ?
 भगवान  जो चाहे। अफ़सोस मुट्ठी भर माटी नहीं दे पाये।  बेचारे अपनी मुसीबत में कितने काम आये थे।
याद है ,भगवान् भले मानुष की आत्मा को शांति बख्शना और गुप्ता आंटी को आत्मबल।
हमारे पूरे परिवार कि ओर  से  भईया ललित गुप्ता को श्रध्दांजलि कहते हुए श्याम बाबू और उनका पूरा परिवार दो मिनट के लिएय मौन साध गया। डॉ नन्द लाल भारती   29 . 11. 2013

Wednesday, November 13, 2013

पागल आदमी/लघुकथा

पागल आदमी/लघुकथा
रंजू के पापा दफ्तर से आ रहे हो ना…… ?
कोई शक  भागवान ………?
शक कर नरक में जाना है क्या। ....?
हुलिया तो ऐसी ही लग रही है जैसे पागल कुत्ता पीछे पड़ा था।
कयास तो ठीक है।
कहाँ मिल गया।
वही जहां  उम्र का मधुमास पतझड़ हो गया।
मतलब।
दफ्तर में।
मजाक के मूड में हो क्या …?
नहीं असलियत बयान कर रहा  हूँ। तीन दिन -रात एक कर दफ्तर शिफ्ट करवाया।  उच्च अधिकारी छुट्टी पर या दौरे पर चले गए।  मजदूरी और गाड़ी के  भाड़े  का भुगतान मुझे ही करना पड़ा जेब से उसी  भुगतान पर अपयश लग गया।
ईमानदारी और वफादारी पर अपयश ?
जी भागवान छोटा होने का दंड मिलता रहां है। इसी  भेद ने उम्र का मधुमास पतझड़ बना दिया।
अपयश कैसे लग सकता है।
लग गया भागवान।
कौन लगा दिया।
वही पागल आदमी जो उच्च ओहदेदार बनने के लिए दो खानदानो की इज्जत दाव पर लगा दिया  अब पद के मद में पागल कुता हो रहां है।
रंजू के पापा पद के मद में पागल आदमी हो या पागल कुत्ता दोनो  की मौत भयावह होती है। संतोष रखिये  ।
डॉ नन्द लाल भारती   14. 11. 2013

Tuesday, October 22, 2013

कीमत /लघुकथा

कीमत /लघुकथा
राहुल नौकरी बढ़िया चल रही है।उच्च तालीम को सम्मान मिला  की नहीं …?
सम्मान कैसा दमन हो रहा है। छाती पर पहाड़ रखे कीमत चुका रहा हूँ सुरेश बाबू ।
कैसी कीमत………… .?
विज्ञानं के युग में अछूत होने की
बड़े शर्म की बात है आ आरक्षण का फायदा  भी नहीं मिला।
नहीं…………. सजा मिल रही है।
अंडरटेकिंग कंपनी में आरक्षण दम तोड़ चुका  है।
कहने को अंडरटेकिंग कंपनी है सुरेश बाबू कानून कायदे तो सामंतवादी लागू है।
तभी तुम्हारी तालीम का कोई मोल नहीं है ,जातीय श्रेष्ठता होती तो तुम कंपनी स्टार होते राहुल।
पापी पेट का सवाल है तभी  इतनी घाव बर्दाश्त कर रहा हूँ।
सामंतवाद तो शोषितों के लिए बबूल की छांव है।
हाँ सुरेश बाबू बबूल की छाँव का जीवन मौत से संघर्ष ही है।
सच कह रहे हो शोषितों के खून पर पलने वाले परजीवी आज भी शोषण कर रहे है। इन नर पिशाचो से छुटकारा पाने के लिए संगठित होकर मुकाबला करने  की हिम्मत जुटाना होगा तभी विकास सम्भव है राहुल।
डॉ नन्द लाल भारती 22 . 10 . 2013


Thursday, October 17, 2013

चोरनाथ /लघुकथा

चोरनाथ /लघुकथा
क्या कर रहे हो मोटू … ?
कार से डीजल निकल रहा हूँ।
क्या …….दिन दहाड़े चोरी ?
जी…. समरथ नहीं दोष गोसाईं।
क्या कह रहे हो मोटू ?
चोरी तो कर रहा हूँ पर अपने लिए नहीं।
चोरी में ईमानदारी। …?
जी ऐसा ही समझिये।
मोटू बुझनी क्यों ?
बुझनी नहीं सही है ?
क्या सही क्या गलत चोरी तो चोरी है।
चोरी तो है पर अपने लिए नहीं।
फिर चोरी क्यों ?
फर्जी कमाई के बादशाह चोर नाथ साहेब के लिए बांस के इशारे पर ,वह भी स्व-जातीय अफसर के लिए
बाप रे कैसे -कैसे भ्रष्टाचार ?
मोटू ऐसे ही जातिवाद भ्रष्टाचार को पोस रहा है।
सच भ्रष्टाचार की जडे बहुत गहरे  तक फ़ैल चुकी है।
मोटू रक्षक ही भक्षक बन रहे है तो खोदेगा कौन  ? कहते हुए  वह डीजल से भरा ड्रम लेकर दफ्तर के गोडाउन की और ले चला।
डॉ नन्द लाल भारती  18  . 10. 2013

Monday, October 14, 2013

प्रहलाद /लघुकथा

प्रहलाद  /लघुकथा
भूषण सम्मान की बधाई  हो दिवाकर।
धन्यवाद मित्रवर।
तुम्हारे कैरियर की अमावास की रात तो अब कट जानी चाहिए।
बाबू मै  भी विश्वास पर टिका हूँ। कब तक नसीब के दुश्मन दर्द देते है। खैर बर्दाश्त की ताकत तो भगवान ही दे रहा है।
काश तुम्हारे साथ अन्याय ना हुआ होता तो आज तुम श्रम की मण्डी में गुमनाम ना होते। तुम्हारी उच्च योग्यता मान-सम्मान तक को बर्बाद कर  दिया नसीब के दुश्मनों ने।
बाबू  उम्र का मधुमास तो बिट चूका है पर अग्नि परीक्षा जारी है।
हाँ कल युग के प्रहलाद देखना है हिरनाकुश रूपी सामंती प्रबंधन की छाती कब फटती है कब तुम्हे मिलता है न्याय ……….? गरीब जान कर एक उच्च-शिक्षित जाति को योग्यता मानकर  कैरियर  को फंसी लगा दिया सामंती प्रबंधन ने कोसते हुए चन्द्र बाबू चल पड़े  डॉ नन्द लाल भारती  14 . 10. 2013

Friday, October 4, 2013

चिंता /लघुकथा

चिंता /लघुकथा
 पापाजी सुने क्या ………….?
  क्या बेटा रंजन ………?
वो दो आदमी के बाते करते हुए गए है।
क्या कह रहे थे बेटा। …?
पापाजी एक आदमी कह रहा था ढोकरा बंटवारा कर देता या  लुढ़क जाता तो बड़ा घर बनवा लेता। ढोकरा  कौन होगा पापा …?
उसका पापा ।
ओ गाड पापा की कमाई के बंटवारे की इतनी चिंता पापा की तनिक भी नहीं। 
  डॉ नन्द लाल भारती  05. 10. 2013

Monday, September 30, 2013

वनवास /लघुकथा

वनवास /लघुकथा

गम में क्यों दुखहरन…….?
चोली दामन का साथ बना दिया है नसीब के दुश्मनों ने इन्दर बाबू।
इतनी निराशा  ……?
जहां स्व-जाति उत्थान के चक्रव्यूह रचे जा रहे हो नित नए-नए परजाति  के दमन की साजिश हो तो वहाँ आशा कैसे जीवित रह सकेगी।  आशा से मिला क्या पतझड़ सा भविष्य ,अछूत का दंशलूटी हुई नसीब और क्या इन्दर बाबू .
लोग सफल क्या हो जाते है जातीय अभिमान, पद-दौलत  के गुमान का नंगा प्रदर्शन करने लगते है। कमजोर आदमी का खून पीने लगते है।
हाँ बाबू ऐसे हे लोगो ने तो मेरे सपनों को कब्रस्तान बना दिया है। स्व-जातीय गुट बनाकर अवैध को वैध कर सोने की दल काट रहे है और मैं ठगी नसीब का मालिक पद-दलित वनवास।
कैसे  लोग है .
सामंती मुर्दाखोर इन्दर बाबू।
डॉ नन्द लाल भारती  01. 10 . 2013

Monday, September 23, 2013

तालीम का क़त्ल

 तालीम का क़त्ल/laghukatha
 
परिचर -सर कैमरे से फोटो मिट गयी।
 कैसे रामू …………. ? बहुत  गड़बड़ हो जाएगी।
फोटोग्राफर के कैमरों के कंप्यूटर से अटैच करते ही। फोटोग्राफर कह रहा है रिकवरी के सात सौ रुपये अलग से लगेगे।
कैमरे में फोटो थी जब तुम ले गए थे।
जी आपने भी तो देखा था सी.जी.एम् ने भी देखा था ,उनके कहने पर तो फोटो बनवाने गया था।
रि -टेक की नौबत आ गयी,कहते हए दयानंद बिग बॉस के कक्ष की और लपका। कक्ष में प्रवेश करते ही सब कुछ कह सुनाया।
बिग बॉस -तुमने  मिटा दिया होगा।
बिग बॉस क्यों इल्जाम मढ़ रहे है ऽब बस करिए बहुत बनाम कर दिया गया हूँ। सैप सिस्टम पर काम करने नहीं देता कहते है मुझे काम ही नहीं आता। मेरे हर काम में गलती क्यों। यह तो अन्याय है कमर तोड़ मेहनत के बाद। कुछ लोग देर से आते है ,गप्पे लड़ाते है ,काम कम चिल्ला चोट ज्यादा करते है। उन्ही के कामो को सराहा जाता है ,ऊपर से भरपूर आर्थिक लाभ पहुँचाया जाता है बाकि सरकारी सुख सुविधाओ का तोहफा अलग से। साहब आप और पूरा विभाग मेरी काबिलियत के बारे में जनता है इसके बाद भी बदनाम किया जा रहा हूँ ,तरक्की से दूर फेंका जा रहा हूँ। साहब ये साजिश नसीब,काबिलियत और तालीम का क़त्ल है।
डॉ नन्द लाल भारती  २३.०९.२०१३

Tuesday, September 17, 2013

तुगलकी फरमान/लघुकथा

तुगलकी फरमान/लघुकथा 
मोहन के बापू  चिंता में क्यों ? अरे श्रीनाथजी से सम्मानित होकर आये हो। जश्न का वक्त है। आप चिंता में।
भागवान-कल आया था आज इंतनी रात में दफ्तर से आ रहा हूँ।
क्या कोई और साजिश …?
हां जब से विभाग में ज्वाइन किया हूँ तब से साजिशो का तो शिकार हूँ। कैरिअर ख़त्म कर दिया उम्मीदों के क़त्ल की भी साजिश कर रहा है मुर्दाखोर सामंतवादी प्रबंधन।
नया क्या कर दिया मुर्दाखोर सामंतवादी प्रबंधन ने।
तुगलकी फरमान …….
ये कौन सी बला है …।
ये गाज ड्राइवर ,चपरासी, टाइपिस्ट ,सेक्रेटरी डाटा आपरेटर पर गिर रही है।
क्यों ……….?
मुर्दाखोर सामंतवादी प्रबंधन कह रहा है इनकी संख्या अधिक है और अब बदलते समय में ये लोग विभाग के काम के नहीं रहे . इनको बाहर निकलने, साठ से पहले रिटायर करने और काले पानी की सजा सुनिश्चित करने के लिए अंडरटेकिंग प्रपत्र जरी कर दिया गया है।
यह तो छोटे कर्मचारियों को मौत के मुंह में ढकलने की कोशिश है। कर्मचारियों को कोर्ट में मुर्दाखोर सामंतवादी प्रबंधन के तुगलकी फरमान के खिलाफ चुनौती देनी चाहिए .
हां तभी सामंतवादी प्रबंधन का असली चेहरा सामने आ पायेगा। कर्मचारियो का  भविष्य सुरक्षित रह पायेगा, बच सकेगा उनका अस्तित्व और जीवन भी। …   डॉ नन्द लाल भारती 18 . 09 2013

Friday, August 30, 2013

आंकलन/लघुकथा


आंकलन/लघुकथा 
बड़े साहेब चिल्लाते हुए बोले अरे ये रिपोर्ट किसने बनाया है।
दीनानाथ-मैंने बनाया है कोई  गलती हो गयी क्या ?
तुम्हारा काम और गलत ना हो।
कोई गलती नहीं है।
तुम्हारे तैयार  किये गए  कागजातों पर सिग्नेचर करने में डर लगता है। बहुत बारीकी से जांच करना पड़ता है कहते हुए सिग्नेचर कर दिये. दीनानाथ कक्ष से बाहर  जाने लगा।
साहेब- कहा जा रहे हो ?
दीनानाथ -दूसरे और काम करने  है .
बड़े साहेब-गरज कर बोले ये देखो।कागज लहराते हुए बोले ये काम तुम्हारे ही किये है ना ,देखो गलती ही गलती  तुम्हारी गलती की वजह से मेरी ईमेज स्टेट इंचार्ज के सामने कल  खराब   हो गयी। 
दीनानाथ- क्या मेरी गलती से  ?
बड़े साहेब- हां  ये रिपोर्ट तुमने बनाया है ना।
दीनानाथ -एस.…….  आफ कोर्स।
बड़े साहेब -कितनी गलत रिपोर्ट तुमने बनाया है।
दीनानाथ -कम्पोजिंग में तो कोइ गलती नहीं है। हाँ आकडे गलत हो सकते है क्योंकि आकडे मेरे नहीं है आपके है।  साहब जो भी मैं  काम करता हूँ ,ईमानदारी,वफादारी ,दूरदृष्टि,पक्के इरादे ,कड़ी मेहनत और अनुशासन में रहकर करता हूँ।  दुर्भाग्यवश मेरे  और मेरे काम का आंकलन जातीय तराजू पर होता  है। कर्म की श्रेष्ठता पर नजर ही नहीं जाती।
इतना सुनते ही साहेब का चश्मा सिर  पर चढ़ गया।
डॉ नन्द लाल भारती 30.08. 2013  


Tuesday, August 27, 2013

कत्ल /लघुकथा

कत्ल /लघुकथा 
बिग बॉस विक्रय बिलों का पुलिंदा रखते हुए बोले रघुराज आज ये सारी सेल बुक हो जनि चाहिए । 
बॉस साढ़े सात बज चुके है।  ढाई तीन घंटे का  ये पूरा  काम है। 
काम तो कारन पड़ेगा  चाहे तीन घंटा लगे चाहे चार …।
दफ्तर का समय दस से साढ़े पांच बजे तक होता है बॉस।
जनता हूँ।  काम तो  करना पड़ेगा। 
जल्दी आना देर से जाना रोज का काम हो गया है बंधुवा मजदूर जैसे।हमारे भी बाल-बच्चे है घर-परिवार है बिना किसी लाभ के पेट पर पट्टी  बाँध कर कब तक काम करूँगा।  अत्याचार अब सहा  नहीं जाता बॉस । 
अत्याचार कैसा      ?
अत्याचार नहीं तो और क्या नाम दूं   ?
ड्यूटी है तुम्हारी ,अत्याचार नहीं। काम तो  तुम्हे करना पड़ेगा। 
ड्यूटी का समय ख़त्म हो चुका  है। 
अच्छ तो साहेब को ओवर टाइम चाहिए। 
मैं भी नौकरी कर रहा हूँ औरो की तरह। श्रम और समय की खैरात लुटाने नहीं आया हूँ। समय  से आता हूँ रोज देर से जाता हूँ।कभी-कभी तो रात के दस बज जा रहे है ये कैसी नौकरी हमारी। एक स्वजातीय अफसर है बारह बजे आते है ,रौब दिखाते है ,दस  हजार तक का अतिरिक्त लाभ यात्रा भत्ता ,लोकल कनवेंस के नाम पर ले रहे है .ऊपर से सरकारी एंव अन्य ढेर सारी  सुविधाओ का भरपूर उपभोग। बच्चे सरकारी गाडी से  स्कूल और ट्यूशन जा रहे है। हम भी उसी विभाग के कर्मचारी है जिस विभाग के दूसरे विशेष सुविधा प्राप्त।   मुझ परजाति के  कर्मचारी को विभाग के हित में फ़र्ज़ पर फ़ना होने का दंड क्यों मिल रहा है।  क्या यह श्रम और मानवाधिकार का क़त्ल नहीं… ?  कहते हुए रघुपति टिफिन उठाया और घर की और चल पड़ा।                      डॉ नन्द लाल भारती। 28.08.2013  
 

 

Monday, August 26, 2013

कूटनीति /लघुकथा



कूटनीति /लघुकथा
सर लोग खूब लाभ उठा रहे है और आप उत्पीड़न।
ज्वाइनिंग से ऐसा दंड मिल रहा है।
क्यों सर ….?
बेटा  रतन ये इंडिया है ,यहाँ बहुत सारी बातो का फर्क पड़ता है।
नहीं समझ सर। .
जातिवाद,धर्मवाद,भाई-भतीजावाद,वंशवाद  ,रतन अभी तुम नए हो रह  समझ जाओगे।
समझ गया सर आपकी अवन्नति,नुकशान,उत्पीडन और उपेक्षा का कारण  भी।
क्या……।
तथाकथित   छोटी जाति और और उच्च वर्णिक जातीय कूटनीति।
डॉ नन्द लाल भारती 27.08.2013  

Friday, August 23, 2013

खडी फसल /लघुकथा

खडी फसल /लघुकथा
दतिया वालो का मैसेज आ गया।
कब आ रहे है।
नहीं आ रहे।
क्यों। …… ?
रिश्ता  मंजूर नहीं।
क्यों एकदम से क्या हो गया। पांच दिन पहले तो बहुत पसंद था।
पांह दिन पहले था ,अब खडी फसल पर ओले पड़ गए।
कैसी फसल कैसे ओले बिन मौसम बिन बदरी।
भागवान… दहेज़ की फसल पर।
वो कैसे     ?
डॉ इंजीनियर शिक्षक उच्च शिक्षित परिवार है।
आपसे ज्यादा…?
सोच में अंतर तो हो सकता है।
कैसी और किस सोच में।
दहेज़ को लेकर क्या   ?
भगवान खूब समझी ,उन्हें लगा होगा कि जो बाप बेटे के एडमिशन के लिए 25 लाख  डोनेशन देने की स्थिति में नहीं है वह दहेज़ क्या देगा। डॉ नन्द लाल भारती। 24.082013  


Wednesday, August 21, 2013

वचन/लघुकथा


वचन/लघुकथा
पापाजी राखी के दिन तो जल्दी आ जाते।
हाँ बीटा आना तो था पर नहीं आ पाया नौकरी करनी है ना।
पापाजी और लोग नौकरी कर रहे है। देर से जाना जल्दी आना रोज का काम होता है पर आप तीज त्यौहार के दिन जल्दी नहीं आ पाते। दफ्तर का समय तो दस से साढ़े पांच बजे है फिर बेगारी क्यों। राखी के दिन सात बजे आ रहे हैं।
बेटी छोडो जाओ थाली तैयार करो. कमजोर आदमी को दंड तो मिलता है।  क्यों जी आज भी कोई दफ्तर में नहीं रहा होगा। यही ना।
हाँ  भागवान।
शोषण,अत्याचार, भविष्य का क़त्ल इसके बाद भी बाबूगिरी से चौकीदारी तुम्हारी ही जिम्मेदारी , वाह  रे भेदभाव ,घाव एक दर्द हजार।
भगवान-मुहूर्त नहीं निकल रहा है क्या अब.
फुआ  जी लज्दी  राखी बांधो वरना  मुहूर्त निकल जायेगा
क्या दे रहे हो जी।
क्या दूं भागवान।
वजन बढाओ वचन तो पूरा कर नहीं पाओगे साठ साल की उम्र तक।
डॉ नन्द लाल भारती   21.08.2013



Friday, August 2, 2013

विदाई /लघुकथा

विदाई /लघुकथा
रिटायर्मेंट की औपचारिक विदाई के आखिरी पल में लालदास से कामदास ने पूछा अपने सेवा काल के बारे में कुछ बताओ।
लालदास- खून के आँसू। वह रुमाल निचोड़ते हुए बोल दोयम दर्जे का आदमी बना दिया गया।  सेवाकाल नारकीय रहां. उच्च योग्यता को जातिवाद के कसौटी पर अयोग्य साबित करने का पूरा प्रयास हुआ। तरक्की से दूर फेंक दिया गया। शोषण,उत्पीडन और दर्द में मधुमास बिता। कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार बना रहा।
कामदास-तपस्यारत रहकर दर्द में सकून ढूढा  है शायद इसीलिए की रूपया खुद नहीं तो खुद से कम नहीं।
लालदास-जीवन यापन के लिए तो कुछ करना ही था नौकरी ही सही, दुर्भाग्यवश जितिवाद के मरुस्थल में फंस गया । सेवाकाल सिर पर तेज़ाब के गठरी और छाती पर दर्द का बोझ  लेकर बिता है . अर्थ की तुला पर व्यर्थ हूँ पर जहाँ  में उजली पहचान तो बन गयी है ,विष पीकर ही सही।
कामदास -रिटायरर्मेंट के बाद का जीवन सुखी रहे,संतोष की सफलता मुबारक हो मेरे यार.

 डॉ नन्द लाल भारती
03 .08 .2013  

Thursday, August 1, 2013

नीची जाति /लघुकथा

नीची जाति /लघुकथा 
दुनिया छोटी होती जा रही है पर लोग नहीं बदल रहे है ,तवज्जो मिलने लगती है तो पाँव जमीन पर नहीं पड़ते।
किसकी बात कर रहे हो।
कैद  नसीब का मालिक किसी की बात कैसे कर सकता है। अकसर लोग करते है।
जी प्रसाद की बात कर रहे हो क्या ?
नहीं ----?
जी प्रसाद साहब की सेवा में जुटा है। गुट बदल लिया है। उसके गाड फादर का तबादला हो गया है। जानते नहीं हो क्या ?
जानकर क्या करूँगा मेरा तो कोई  गाडफादर है ही नहीं नीली छतरी वाले के सिवाय।
अच्छी बात है। जी प्रसाद दो लोगो का लंच लेकर आता है। सीधे चला जाता है। इसलिए खफा हो क्या ?
लंच लेकर आता है मतलब।
जल्दी में होता है।
कहीं लंच के अपवित्र होने का डर तो नहीं।
हो सकता है।
कैसे वी कुमार बोले।
सेवादास नीची जाति का नहीं है क्या ?
डॉ नन्द लाल भारती  ०२ अगस्त २०१३

दरबारी शौक /लघुकथा

दरबारी शौक /लघुकथा
दरबार-दरबार की हुंकार तुम्हारे दफ्तर है ,क्या है दरबार ?
संभवतः राजपरिवार  से सम्बंधित हो।
राजतंत्र नहीं लोकतंत्र है।
भ्रम है मित्रवर।
कैसे ?
लोकतंत्र में आम आदमी कहा है ?
हाशिये पर ,खैर असली आजादी का मतलब तो ये नही था।
मतलब कुछ रहा हो पर तंत्र का चेहरा विकृत हो गया है। संविधान राष्ट्र का धर्म ग्रन्थ होना चाहिए  था है क्या, जातिवाद पर कोइ फर्क पड़ा क्या ,स्व-धर्मी मानवीय समानता है क्या ,भूमिहीनता ख़त्म हुई क्या। शोषितों की बस्ती के कुएं का पानी पवित्र हुआ  क्या ?नहीं ना।
समझ गया।
क्या             ?
गुलामी और असली आजादी का सपना ना पूरा होने का कारण।
क्या   ?
राज दरबारी शौक।
डॉ नन्द लाल भारती
  02 अगस्त 2013



Saturday, July 20, 2013

तपस्या /लघुकथा

तपस्या /लघुकथा
यार तुम्हारा नाम लेकर तुहारे दफ्तर से कोई कह रहा है ,बाहर  बैठा है  उसे दे देना .तुम चौकीदार तो हो नहीं .अपने विभाग के उच्चशिक्षित हो .कौन है .....?
जिम्मेदार उच्चवर्णिक अफसर .
क्या .............?
ठीक सुने .
मतलब .
अभिमान के प्रति जिम्मेदार .
नौकरी कर रहे है या कंस  के वंश के राजकुमार है .
यही समझो .
यार तुम्हार दफ्तर तो तुम्हारे खिलाफ है .
है ना  तभी तो चौथे दर्जे से तरक्की नहीं हुई हमारी .
वजह .......
जातीय बीमारी .....
क्या .............?
मेरा नौकरी का जीवन वैसे ही कट  रहा है जैसे सर पर तेजाब का जार हो  और पाँव के नीचे दहकती आग .
बहुत दर्द पीकर नौकरी कर रहे हो .
नौकरी नहीं तपस्या परिवार के भविष्य के लिए .
तुम्हारी तपस्या सफल हो .

डॉ नन्द लाल भारती
21.07.2013       


गंवार कौन….?

गंवार कौन….?
मुंह क्यों लटक गया .
वो लोग नुखाताचिनी करने लगे है जिनके हाथ लिखने में कापते है ,माउस पकड़ने का सहूर तक नहीं वही लोग कम्प्ज करना और ई मेल करना सीखा रहे है सिर्फ इसलिए कि वे मुझसे बड़े अफसर  है .
अफसर  जिनको आता जाता नहीं वही रुतबा दिखने के लिए ऐसा करते है ख़ास कर  जब कोइ उच्च अधिकारी आता है .
वही तो हुआ  पहली बार आये नए स्टेट प्रभारी समझेगे मुझे कुछ आता नहीं .
तुम तो विशेषज्ञ हो ,जुआडू कहा लगते है पर गलत हुआ जिसकी तारीफ़ होनी थी अफसरों ने अपरोक्ष रूप से शिकायत कर दिया .
यही तो दुःख है अफसरों ने मुझे गंवार सिध्द कर दिया स्टेट प्रभारी के सामने निम्न वर्णिक योग्यता के कारण।
यार समयानंद माफ़ करना .
कैसी माफ़ी ...?
यार तुमको क्या कोई  गंवार साबित करेगा  स्टेट प्रभारी अक्लमन्द होगे तो खुद  समझ गए होगे असली गंवार कौन……….?
डॉ नन्द लाल भारती
21.07.2013        






Friday, July 12, 2013

शर्म और चिंता /लघुकथा

शर्म और चिंता /लघुकथा 

अरे  भाई सुभाष हो क्या ....? डाक्टर बन गए .
आप कौन ........?
याद  करो तीस साल पहले साथ पढ़ते थे .
कन्हैया मेरे यार .....
हां ......
कहा हो मालवा में .......
नौकरी ठीक ठाक चल रही है .डाक्टर ब्रदर तो मिलता रहता है .सब खबर लग जाती है पर मुलाकात नहीं हो पाती थी .ऐसे गाँव छोड़े जैसे गदहे के सर से सींग.
पापी  पेट का सवाल है .गाँव में क्या करता बैल घुमाने भर की तो जगह नहीं है .तुम तो ऊँची बिरादरी के ठहरे साधन संपन्न कुछ भी करते सफलता तो मिलनी थी .हमारे साथ तो उल्टा है ना .
यार  तुम पुरानी बाते  नहीं भूले .अरे जमाना बदल गया है .जातिपांति ख़त्म हो रहा है .
सब कहने की बाते है .मेरा तो कैरियर ख़त्म कर दिया है जातिपांति ने .
क्या ....संघे शक्ति अंतरराष्ट्रीय संस्था में .
हां ...संघे शक्ति अंतरराष्ट्रीय संस्था तो रुढ़िवादी मानसिकता वालो के कब्जे में .
तुम्हारे  पास तो जी एम् बनने की योग्यता है ,तुम्हारा इतना पढ़ा लिखा तो आस पास के कई गाँव में कोई नहीं है .
हर योग्यता के बाद भी पर रह गया चौथे दर्जे का .प्रमोशन के सारे रस्ते बंद कर दिए है जातिपांति ने यही मलाल है .
मित्र तुम्हारा मलाल जायज है .कर्म की महानता संघे शक्ति अंतरराष्ट्रीय संस्था में मरणासन्न लगती है ,जातीय योग्यता विभाग के निति निर्धारको के लिए शर्म और कर्मयोगी  के लिए चिंता की बात है .

डॉ नन्द लाल भारती  13.07.2013      

पडोसी नंबर सोलह /लघुकथा

पडोसी नंबर सोलह /लघुकथा
क्या हाल चाल है ........?
सब कुशल मंगल है .
पडोसी नंबर सोलह  के यहाँ तो अशांति और हवस पसरी है .
क्या बात कर रहे हो ..........? तीन माले का मकान बारजा  सड़क  पर, पडोसी के एरिया में खिड़की  और तो और फूटपाथ पर भी कब्ज़ा  करने लगा है .तुम चुपचाप बैठे हो .
चौदह नंबर डेढ़ इंच  की दीवाल पर खड़ा है ,कलेक्टर ,कमिश्नर को लिखित में शिकायत किया कोई नहीं सुना।
अपने  हक़ के लिए तो खड़ा होना था .खैर  सरीफो को लोग चैन से जीने कहा दे रहे है .
समय बदलेगा कहते हुए सोहन सांस लिया .
मतलब  जड़ में घुन .
यही समझ लो मंगल दादा .
बड़ी दूर दृष्टि रखते हो बरखुर्दार .
हाँ दादा भविष्य में जब प्रशासन की नींद टूटेगी पडोसी नंबर सोलह की लंका भरभरा पड़ेगी  .
चलो इतना यकीन तो है प्रशासन पर ...डॉ नन्द लाल भारती  13.07.2013    







Tuesday, July 9, 2013

आरक्षण /लघुकथा

आरक्षण /लघुकथा
बधाई सुशील ,अब तुम्हारा बीटा डाक्टर बन जायेगा .
पच्चीस-पच्चीस लाख में सीट बिक रही है ,मुन्ना भाई परीक्षा दे रहे है चिन्ता होने लगी है .
सत्य-बेटा  होशियार है निकल ले जायेगा .सरकारी कालेज में फीस कम लगती है .
इतना  सुनते ही अविवेक तनतना कर बोले तुम्हारा तो आरक्षण है .
कम्पटीशन बहुत तगड़ा है ,साढ़े सत्रह प्रतिशत आरक्षण से क्या होने वाला है .ग्यारह सौ से अधिक जातियाँ है जनरल से कम कम्पटीशन  नहीं है अब .
अविवेक-जनरल वालो को जहर देने का इरादा है क्या ...?
सुशील -सदियों से भारतीय सामाजिक आरक्षण प्राप्त समाज  में शोषित वर्ग हक़ से वंचित जहर पी  रहा है .क्या किसी को जहर देगा .शोषित वर्ग को आरक्षण की नहीं सामाजिक  , आर्थिक समानता और निः 'शुल्क शिक्षा की जरुरत है तभी शोषित वर्ग का विकास हो सकेगा . इतना सुनते ही अविवेक को जैसे नाग डंस गया . डॉ नन्द लाल भारती  10.07.2013       


कुव्यवस्था /लघुकथा

कुव्यवस्था /लघुकथा 
क्या यार राहुल देखो एक बार फिर टाइपिस्ट बाजी मार कर हेड ऑफिस पहुँच गया और तू जहाँ से चले थे वही रह गए  .
राहुल -बॉस मेरे पास योग्यता नहीं है ना ?
क्या तुम्हारे इतनी योग्यता विभाग में किसके पास है .
राहुल-हम अछूत जैसे की  शैक्षणिक योग्यता को इस विभाग में कौन पूछता है .अगरमेरी  शैक्षणिक योग्यता को को तवज्जो मिली होती तो मै  भी बड़ा मैनेजर होता पर अयोग्य हो गया हूँ ना छोटी जाती के कारण .
कौन सी योग्यता की बात कर रहे हो राहुल .
राहुल-जातीय योग्यता .
क्या ...................?
राहुल- हाँ ...इतने भौचक्के क्यों हो रहे है ?
सच ...................?
राहुल- मेरी उच्च शैक्षणिक योग्यता को इस संस्था में मान्यता मिली होती तो चौथे दर्जे का कर्मचारी नहीं होता पर अफ़सोस यहाँ तो जातीय योग्यता  सब कुछ है .
काश भारतीय समाज वार्णिक कुव्यवस्था का शिकार न होता ...................................?
डॉ नन्द लाल भारती 09.07.2013       

Monday, May 27, 2013

भीखारी /लघुकथा
दादा वो देखो ........?
क्या बच्चू ......?
पुलिस वैन  चौराहे के किनारे जो खडी है .
पुलिस वैन क्यों दिखा रहे हो .रास्ता नापो पुलिस वैन के चक्कर में मत पड़ो .चौराहे पर ये लोग वसूली ही तो करते है .
दादा एक नजर देखो तो सही .अभी मामला थोडा हटके है .
बेटा  जिद मत करो चलो. पुलिस को निहारना महंगा पड़ सकता है .
दादा देखो एक भिखारिन कैसे गिडगिडा रही है .
वह नहीं जानती है .
क्या दादा जी ....?
एक बड़ा दबंग भिखारी उखड़े पाँव भिखारी को भीख देगा क्या .आगे बढ़ो बेटा .
डॉ नन्द लाल भारती
28 .05 .2 013 

Saturday, May 25, 2013

परायाघर /लघुकथा

परायाघर /लघुकथा
चार वर्षीय सानु को दुलारते हुए नरेन्द्र पुछा बेटा घर में सब ठीक है .
सानु -बेटा नहीं बेटी दादा .
क्य………?
हाँ दादा मैं लड़की हूँ .
नरेन्द्र माथा ठोंक बैठा .
गीता-बेटी तुम्हारा घर कहाँ है ?
पता नहीं दादी .
हरदा किसका घर है .
भईया का .
साल भर के भईया का घर है तुम्हारा नहीं .
नही …….दादी मुझे तो परायेघर जाना है ना .
बाप रे इतना बड़ा बंटवारा नन्ही सी उम्र में कहते हुए गीता कुर्सी में धंस गयी फिर संभल कर बोली परायेपन का विचार  नन्ही सी बच्ची के मन में कैसे आया होगा अभी से .
पारिवारिक परिवेश ,सामजिक रुढिवादिता और माँ बाप के अंधेपन से नरेन्द्र बोला .
अंधेपन का इलाज क्या है गीता बोली ?
स्व-धर्मी समानता एंव नातेदारी कहते हुए नरेन्द्र सानु के सर पर हाथ फेरते हुए बोल बेटी लड़का-लड़की एक सामान है .दोने जीवन की पहचान है .
गीता-सत्य तो यही है पर सामाजिक रुढिवादिता और पारिवारिक अंधापन कहा मानता है .

डॉ नन्द लाल भारती 26.05.2013

Thursday, May 23, 2013

स्वर्णिम कलम/लघुकथा

स्वर्णिम कलम/लघुकथा
गीली पलकें क्यों चिराग के पापा ?
गीली  पलकें नहीं खुशी कहो .
इतनी ख़ुशी .?
हां ...स्वर्णिम कलम दिखाते हुए शब्दप्रेमी बोले बात कलम की ही नहीं है .
और क्या है .....?यह भी लिखने के काम आयेगी .
आएगी तो सही कलम के पीछे भावना और सम्मान जो है वह तो दुनिया भर के खजाने से नहीं ख़रीदा जा सकता .चिराग ने मुंबई से  भेजा है .
जानती हूँ .
जानकर भी हलके में ले रही हो .
क्या ..........?
हां ...बेटवा का बाप के नाम गिफ्ट वह भी स्वर्णिम कलम बड़ी बात है .इसका मर्म समझती हो .
नहीं ....तुम रचनाकार जानो .मै  तो बस इतना जानती हूँ की बेटवा बड़ा और तुम्हारी तरह बुध्दिमान हो गया है .तभी तो बाप को स्वर्णिम कलम गिफ्ट किया है ताकि तुम राष्ट्र और समाज के हित में और अच्छा लिख सको .यहो सोचकर तुम्हारी पलकें गीली हो रही है .
हां चिराग की माँ मुझ जैसे बाप को बेटवा से कलम पाकर पलकें गीली तो होगी क्योंकि लेखक के लिए कलम तो अनमोल होती है बेटवा की पहली कमाई से तो और मूल्यवान हो जाती है .लेखक के लिए बड़ी और ख़ुशी की इससे और बड़ी बात क्या हो सकती है .
मुबारक हो गीली पलकें चिराग के पापा .
स्वर्णिम कलम को शब्दप्रेमी माथे चढाते हुए बोले तुम्हे भी चिराग की माँ .
डॉ नन्द लाल भारती 23.05.2013

Wednesday, May 8, 2013

राज /लघुकथा

राज /लघुकथा
क्या हुआ साहब जी .................?
क्या होगा छकड़ प्रसाद का वही तुगलकी फरमान .
आपके ही लिए क्यों .उच्च शिक्षित हो प्रतिष्ठित हो,वफादार हो ,समय के पाबंद हो दूरदृष्टि रखते हो . सारी योग्यताये आपके पास है ,फिर दोहरा मापदण्ड क्यों ....?
बहादुर जातीय तो अयोग्य हूँ .पच्चीस साल से शोषण का शिकार हूँ . तुमको आये महीना हे तो अभी हुआ है सब राज जान  जाओगे .छकड़ प्रसाद,उच्च व्यवस्थापक महोदय कठोर सींग ,चापलूस मेनेजर को और अधिक मौखिक पावर दे दिए है ताकि वे मेरी नाक में नकेल डाले रहे .बहादुर सामंतवादी कार्पोरेट कंपनी में दोयम  दर्जे का बना दिया गया हूँ ,यही मेरा दुर्भाग्य है .
साहब जी आप भी तो अफसर हो .
बहादुर हूँ  तो पर कमजोर वर्ग का .दुनिया भले ही नजदीक आ गयी हो पर अपने देश में जातिवाद की खाई नजदीक नहीं आने देती .यही जातिवाद शोषण ,अत्याचार और भ्रष्टाचार का जनक है। सामंतवादी कार्पोरेट कंपनी में मेरे भविष्य की तबाही का राज भी .
बहादुर आओ इस राज का पर्दाफाश करे साहब जी .
डॉ नन्द लाल भारती
09 .05.2013

Monday, May 6, 2013

अधिकार/लघुकथा

अधिकार/लघुकथा
स्कूल का चौकीदार नहा -धोकर ईश पूजा में ध्यानमग्न  था इसी बीच स्कूल प्रांगण में बने मंदिर सामने अत्याधुनिक बाईक खडी हुई .बाईक सवार पहलवान सरीखे आदमी हेलमेट और जूता पहने सीधे मंदिर में प्रवेश किया।ज्ञान की देवी की मूर्ति के गले में माला डाल दो फूल इधर उधर फेंका . सेकेंडो  पूजा कर्म निपटा कर  धुँआ का गुबार छोड़ते हुए फुर्र हो गया .चौकीदार भी पूजा कर्म पूरा कर उठा हाथ की किताब के माथे चढ़ाते हुए उठा स्कूल के गेट बंद कर अपने क्वार्टर की और जाने लगा .इसी बीच दयावान ने आवाज लगा दिया चौकीदार भईया वह वापस आ गया और बोला जी साहब .
दयावान- दादा बहादुर कौन थे जो मूर्ति के गले में दूर से माला फेंकर भाग लिए जैसे उनके इऎछे पुलिस पडी हो .
चौकीदार -पंडित जी थे पूजा करने आते है तनख्वाह पर.
दयावान -ये तो पूजा नहीं देवी का अपमान है .
चौकीदार -जाती से पंडित जी है न सब जायज है .
दयावान-वाह रे जातीय आरक्षण .कब ख़त्म होगी ये महामारी मन ही मन बोले।
चौकीदार -साहब कुछ कहे .
दयावान- पंडित जी से अच्छी पूजा तो तुम कर लेते .
चौकीदार -हमें अधिकार कहाँ ...................?
डॉ नन्द लाल भारती
07.05.2013

Thursday, May 2, 2013

दादी माँ की गाली /Laghukatha

दादी माँ की गाली /Laghukatha
दादी माँ  माँ को ही नहीं हमें भी खूब गाली  देती थी पर पूरा परिवार दादी माँ की सेवा सुश्रुखा करता था। कभी कभी दादी माँ अपनी जबान को धारदार बनाये रखने के लिए माँ से झगडा भी बिना वजह कर लेती थी पर माँ को कहा फुर्सत थी .माँ पिताजी दे बराबर गृहस्थी की गाडी खीचने के लिए पसीना बहांती  थी .उम्र की मार ने दादी की दोनों आँखे छीन ली .चाचा -ताऊ palayan कर गए क्योंकि गाँव में कोइ पुश्तैनी  मिलिकियत तो थी नहीं और नहीं बढ़ते परिवार के जीने का कोइ सहारा .मेरी माँ  दादी की कितनी भी सेवा कर ले पर माँ को ही कम लगता था पर दादी थी की खुश न होती थी ..अन्तोगत्वा एक दिन दादी माँ की गाली एकदम से बंद हो गयी। दादी स्वर्ग सिधार गयी .दादी की गाली से उपजा  आशीर्वाद मेरे परिवार के लिए इतना सुखकारी  साबित हुआ कि  आज पूरी बस्ती में मेरे परिवार इतना सुखी कोइ नहीं है मिट्ठू .....
बुजुर्गो की सेवा कर्तव्य और तपस्या है .बुजुर्गो का आशीर्वाद जीवन की श्रेष्टतम सफलता जगत बाबू .काश ये मन्त्र युवा पीढी समझ लेती ..डॉ नन्द लाल भारती 02.05.2013

Thursday, April 18, 2013

सपने का सच /लघुकथा 
देवी सुनोगी क्या ………… ?
क्यों तुम्हारे साथ उम्र गुजर गयी बिना सुने .सुनाओ क्या सुना रहे हो .
सपना …………
बुढौती में सपना रानी कहा मिल गयी .
देवी गलत सोच रही है। मैं किसी सपना लड़की की बात नहीं कर रहा हूँ .मैं सपना यानि ड्रीम की बात कर रहा हूँ
क्या ....तुम सपनों पर विश्वास करने लगे .
देवी विश्वास अविश्वास की बात नहीं कर रहा हूँ सपना देखा हूँ उसी सपने की बात कर रहा हूँ ,
बताओगी भी की भूमिका बांधते रहोगे ......?
सपने में माँ ,सासूमाँ, और सुभौती काकी की परछाईं के साथ दीदी को पत्तल गिनते देखा हूँ .
सपना तो अच्छा नहीं है .
धर्मपत्नी की बात सुनकर हरिबाबू के मन में शंका -कुशंका  के  अवारा बादल रह रह कर गरजने लगे थे .इसी बीच तीसरे दिन यानि सतरह  अप्रैल को छोटे  भी  डाक्टर साहेब  का फोन आया कि अधेड़ सुभौती काकी बैठे -बैठे मर गयी .काकी  सास के मौत की खबर सुनकर गीता बोली तुम्हारा सपना अनहोनी की आहट  दे गया था .
सच आहट तो हो जाती है पर हम सपने के सच का आंकलन नहीं कर पाते .

डॉ नन्द लाल भारती
19 .4 .2 0 1 2  




 

Tuesday, March 19, 2013

शंखनाद /लघुकथा

शंखनाद /लघुकथा
होलिका दहन हो चुका  था  पर आग नरम नहीं पडी थी  धुँआ भी जवाँ था । कुछ महिलाये पूजा अर्चना भी शुरू कर चुकी थी । बच्चे जिसमे सभी धर्मों और जातियों के भी शामिल थे, बिना किसी मन-भेद के एक दूसरे को होली की मुबारकवाद दे रहे थे ।  बच्चो की सद्भावना देखकर चारो  भाईयों जिसमे सदियों से दूरी बनी हुई थी । तीन बड़े भाई  और उनका कुनबा मौके-झौके  पर एक दूसरे को कभी कभार गले लगा लेता था परन्तु चौथे भाई  और उसके कुनबे की तरफ तीनो बड़े भाई मुड़कर नहीं देखते थे  । तीनो बड़े भाईयो  के मन  में अपनत्व की लहर दौड़ पडी ।  आपस में विमर्श कर तीनो बड़े भाई और उनके कुनबे के लोग चौथे भाई की चौखट पर होली के गुलाल और मिठाई के डिब्बे लेकर पहुंचे । यह देखकर चौथे भाई को लगा कि  आज सूरज पश्चिम से कैसे उग गया । तीनो भाई और उनके कुनबे के लोग एक स्वर में बोले होली मुबारक हो, फिर क्या रंग-गुलाल  की फुहारे चारो और से बरसने लगी । सदियों से बिछुड़े चारो भाईयों और उनके कुनबे के लोग मन-भेद भुला कर एक दूसरे को मिठाई खिलाने और गले लगाने लगे । आखिर में चौथे क्रम के भाई और उसके कुनबे के लोग बोले-होली के रंग में सारे मन-भेद धुल जायेंगे या फुफकारते रहेंगे होली के बाद .
तीनो बड़े भाई और उनके कुनबे के लोग आत्मसम्मान के साथ चौथे भाई और उसके कुनबे के लोगो को गले लगाकर बोले मन-भेद की दूरियां नहीं । स्व-धर्मी समानता और बहुधर्मी सद्भावना की दरकार है,यही उन्नति  की जड़ है ।  सदियों से दूर चारों भाईयों की और उनके कुनबे के लोगो की आँखों में गंगा-जमुना उतर आयीं । चौथा भाई बोल होली का दिन आंसू बहाने का नहीं खुशी मनाने का है, दिल की दूरी मिटाने का है , फिर क्या गूँज उठा होली के मुबारक की  शंखनाद । 

डॉ नन्द लाल भारती 18.03-2013


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Monday, March 11, 2013

॥ अवमूल्यन ॥ ॥ चिंतन ॥कुण्डली /लघुकथा

॥ अवमूल्यन ॥ लघुकथा
दैनिक परिचर लिफाफा दिखाते हुए बोला साहेब ब्रांच  कार्यालय से आया है ।
कर्मवीर -खोल कर देखो क्या आया है ।
परिचर-परिवहन बिल ।
कर्मवीर -वापस आ गए क्या ?
बाँस-कर्मवीर  को दुत्कारते हुए बोले कुछ उल्टा सीधा लिख कर तुमने भेज दिया होग ।
कर्मवीर -साहेब टिप्प तो देख लिए होते कर्म पूजा का अवमूल्यन करने से पहले ।
बाँस -टिप्प देख कर मौन हो गए क्योंकि त्रुटि साहेब के स्व-जातीय चहेते की जो थी ।
परिचर कर्मवीर से आड़ में पूछा बड़े बाबू  आपके अच्छे से अच्छे कामो का अवमूल्यन क्यों होता है ?
कर्मवीर- शोषण, अवमूल्यन आज से नहीं  तीस साल से हो रहा है । संस्था की सच्चे मन से सेवा के बाद भी चरित्र पर लांछन भी
परिचर- क्यों ...........?
कर्मवीर-सामंतवादी व्यस्था में अकेला निम्न वर्णिक जो ठहरा ।
परिचर-मुझे नहीं करना ऐसी कंपनी में नौकरी जहां कर्मपूजा  का अवमूल्यन हो ।

डाँ .नन्द लाल भारती ...0 9 .03 .2013
॥ चिंतन ॥ 
लघुकथा
कैसे हैं  धनवीर साहेब ?
बढ़िया ।
बच्चे सेटल हो गए ।
हाँ ,बेटी दामाद यू एस ए में और डॉ बेटा कनाडा में ।
मैडम- अभी जाब में है ?
नहीं रिटायर हो गयीं ।
आप दोनो अकेले रह गए है  इंडिया में ।
धनवीर साहेब चहकते हुए बोले हाँ पर उनकी चहक के पीछे के दर्द का ज्वालामुखी छिप ना सका था । डाँ .नन्द लाल भारती ...10  .03 .2013
कुण्डली
/लघुकथा
कैसी रही प्रोफ़ेसर मदव  से चर्चा लेखक महोदय ?
बढ़िया अहिन्दी उत्थान की चिंता उनकी बातो में थी पर व्यवहार में नहीं ।
ठीक कह रहे है हिंदी तो उनकी रोजिऎ रोटी भर है ।
वो कैसे .................?
प्रोफ़ेसर महोदय दूसरो के कार्यो को स्वीकार नहीं करते ।
तुमने तो माधव महोदय की कुण्डली बना लिए ।
माधव महोदय को आपने विजिटिंग कार्ड दिए थे यह बताने के लिए की आप हिन्दी के लेखक हो ।
हाँ इस बात का मुझे स्वाभिमान है की मैं मातृभाषा का सेवक हूँ ।
और कुछ पता है ?
क्या-------------?
विजिटिंग कार्ड को  माधव महोदय ने सोफे की गद्दियो के बीच ऐसे दफ़न करने का प्रयास किया था जैसे मुहम्मद गौरी ने विश्वनाथ को ।
शब्दवीर कार्ड मेरे पास  आ गया है।
अली शाबाश  जमीन से जुड़े को कौन दफना सकता है हिन्दी राष्ट्रभाषा जरुर बनेगी ,पर प्रोफ़ेसर की कुण्डली,होटल विष्णु प्रिय और हिन्दी कार्यशाला याद रहेगी। डाँ .नन्द लाल भारती ...11   .03 .2013

Wednesday, February 27, 2013

विजया(लघुकथा)

विजया(लघुकथा)
विजया  का एक हाथ पोलियो लील चुकी थी । उसके माता -पिता उसके भविष्य को लेकर बहुत दुखी रहते थे । विजया पढाई  के मामले अव्वल थी । एक दिन उसके माँ -बाप घर आये मेहमानों से विजया के भविष्य  को लेकर चिंता जाहिर कर रहे थे । इसी बीच विजया आ गयी । उसके आते ही सन्नाटा छा गया ।  वह सन्नाटे को चीरते हुए बोली मम्मी पापा बोलो ना मैं विकलांग हूँ तो मै अपने पाँव नहीं जमा सकती । आप लोग मुझे लेकर बिलकुल चिंता ना करे।
मम्मी उषा बोली - नहीं बिटिया ............
विजया -झूठ ।
पापा दर्शन- सच बेटी । तू तो हमारे लिए वरदान है  ।
विजया -चिंता का कारण भी ।
दर्शन -विजया को छाती से लगा लिए उनकी पलकें गीली हो गयी ।
विजया बोली पापा तन से भले जमाना विकलांग कह दे पर मन से विकलांग नहीं हूँ । एक दिन साबित कर दूंगी । माँ -बाप का भरपूर सहयोग से  ।
 वक्त ने करवट बदला विजया डाक्टर बन गयी । वह जटिल आपरेशन भी  बड़ी  आसानी से कर लेती  जिसे करने में दोनों हाथ वाले डाक्टरो के हाथ काँप जाते  । विजया की कामयाबी को लोग देखकर कहते सच आदमी तन से भले विकलांग हो पर मन से नहीं होना चाहिए तभी तरक्की के पहाड़ चढ़ सकता है विजया की तरह .........डॉ नन्द लाल भारती  २७/0२ /२०१३  

श्रम के मोती (लघुकथा)

श्रम के मोती (लघुकथा)
जींस की पेंट और टी शर्ट पहने और माथे पर चौड़ा सा तिलक लगाये नवयुवक  युवक अगरबत्ती का धुँआ उगलता हुआ कमंडल सब्जी विक्रेता कन्हैया के सामने हिलाते हुए बोला जय शनि महाराज पुष्प नक्षत्र है पांच  रूपया ब्राहमण को दान करोगे तो हजार मिलेगा .
कन्हैया -कौन देगा ?
युवक -भगवन ।
कन्हैया क्या खूब ठगने का बहाना  ढूंढ लिया है ।
युवक -ब्राहमण हूँ ,वचन न जायेगा खाली ।
कन्हैया- जातिवाद का चेहरा लगाकर ठगने का बहाना पुराना हो गया है । मेहनत मज़दूरी का जमाना है । मेहनत मज़दूरी से कमाई रोटी में मान है सम्मान है । भीखारी का जीवन नरक समान है ।
युवक-भीखारी होंगी तेरी औलादे ।
कन्हैया बैसाखी उठाते हुए बोला -सुन बताता हूँ कौन भीखारी है तू या मै । अरे अभिशापित तू क्या श्राप देगा  ढ़कोसलेबाज ।
युवक-दूरी नापने लगा ।
कन्हैया-बैसाखी सहारे लपका और युवक का गर्दन पकड़ते हुए बोला -जाते -जाते सुनते जा श्रम के मोती बोये तू और तेरा खानदान यही है विकलांग कन्हैया का वरदान ।   डॉ नन्द लाल भारती  २७/0२ /२०१३

Monday, February 18, 2013

Chawannee ka dard(kahani)




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Do Beesa Jamin(Kahani)




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Mk¡-uUnyky Hkkjrh                                       
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nsodh&vko.Vu rks gksxk Hkys gh nsj ls gksA ftruh xkao lekt dh tehu vius xkao esa gS]mldh vka/kh caV x;h rks cLrh ds gj Hkwfeghu ds ikl ch?kk&ch?kk tehu gks ldrh gSA
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Hkhepj.k i<+us esa gksf’k;kj rks Fkk ij mls detksj oxZ dk gksus ds ukrs uqd’kku Hkh mBkus iM+s FksA dbZ ckj mldh ekfdZaax deRrj vkadh x;h ij mldk gkS’kyk VwVk ughA ijh{kk ikl djrk x;k ij fMohtu t:j [kjkc dj fn;k x;k ijUrq og xjhch dh detksj d’rh esa fgpdksys [kkrk gqvk ch-,-dh ijh{kk ikl dj x;k tks mlds [kkunku esa gh ugh iwjh iPphl ?kj dh cLrh esa igyk ch-,-ikl O;fDr FkkA jktef.k vkSj nsodh Hkhepj.k dks vkxs i
‘kgj esa mls cgqr eqf’dys vkbZ vutku ‘kgj vutku yksx u jgus dk fBdkuk uk [kkus dkA dgrs gS uk ‘kgj esa vius Hkh ijk;s gks tkrs gS]bldh Hkh rQnh’k mls gks x;hA cM+h eqf’dy ls dbZ yksxksa ds lkFk ,d >qXxh esa jgus dk bartke rks gks x;k ij dke u feyus ds dkj.k nks fnu esa gh ikVZujksa ds fy;s cks> cu x;kA ukSdjh dh ryk’k esa mls jkr fnu dk irk ugha py ikrk FkkA nsj jkr og >qXxh vkrk dHkh dqN [kkus dks fey tkrk dHkh isV ij iV~Vh cka/kdj lks tkrkAlIrkg Hkj ‘kgj esa HkVdus ds ckn og e.Mh dh vksj :[k fd;k dbZ fnuksa rd e.Mh esa cks>k <+ksus ds ckn dqN iSls feysA bu iSlks ls >qXxh dk fdjk;k vkSj [kqjkdh dk fglkc pqdk;kA e.Mh ds dke ds lkFk gh og nwljh ukSdjh Hkh ryk’krk jgkAdqN eghuksa ds ckn mls fdrkc dh nqdku esa ukSdjh fey x;hA mldh eafty rks ;gh ugha Fkh ij lUrks”kh lnk lq[kh ds lkj dks ve`r le> jliku djrk tks dqN mldh dekbZ ls cprk firk ds uke efuvkMZj dj nsrkA eka cki HkkbZ cgu ds lkFk js[kk vkSj ruq dh fpUrk mls pSu ugh ysus nsrh FkhA
vkf[kjdkj mldh i<+kbZZ]esgur]eka cki vkSj cLrh okyksa dh nqvk;sa jax ykbZ vkSj Hkhepj.k dks ljdkjh laLFkku esa ukSdjh fey x;hA bl laLFkku esa mls eqf’dysa rks cgqr vk;hA dbZ lkeUroknh fopkj/kkjk ds vQljksa dks mldh mifLFkfr rfud ugh Hkkrh FkhA fot; Hkhed]nsosUnz Hkhed]vo/k Hkhed] izos’k Hkhed] dqlh Hkhed][kf.Mr Hkhed] nqvkfjdk ;kcw]jftUnj y¡xjS;k tSls dbZ vQljksa us mldh dSfjvj [kRe djus dh ckj&ckj dksf’k’k djrs jgs dke;kc Hkh gq, A vkf[kdkj jktef.k dh nqvkvksa vkSj nks chlk tehu dh rkdr ds vkxs nSR; fdLe ds yksx fVd uk lds Hkhepj.k dks eafty fey gh x;h ij bl eafty rd igqapus esa mldh ukSdjh ds iPphl ls vf/kd clUr ir>M cu pqds FksA nsj ls gh lgh ij detksj oxZ dk ekudj rjDdh ls ckj&ckj oafpr djus okys ‘kj.Mksa dks [kqn ds xky ij [kqn twrs ekjus dks foo’k gksuk iM+rk FkkA Hkhepj.k dk lkeuk  tc bu ‘kj.Mksa dk gksrk rks ;s ‘kj.k ytk iM+rs Fks A Hkhepj.k Fkk fd bu ‘kj.Mksasa dks ;Fkkmfpr lEeku nsus ls ckt uk vk vkrkA Hkhepj.k dks ukSdjh ds ckn tks oDr cprk og oDr detksj oxZ ds yksxksa ij U;kSNkoj djus dh izfrKk dj cSBkA m/kj ‘kEHkq[kpj.k ch, ikl dj cEcbZ pyk x;kA dULVzD’ku dEiuh esa dke djus yxkA dqN lky ds vuqHko ds ckn og lQy fcYMj cudj ‘kksf”krksa yksxksa dks lao`) cukus ds vfHk;ku esa tqV x;kA izxfr i<+kbZ iwjh dj Vhpj cu dj cLrh ds cPpksa dh ulhc laokjus esa yx x;hA
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jktef.k&eSa gh ugh vc iwjh cLrh ds yksx vius cPpksa ij ukt djus yxs gS A eSa pkgrk gwa esjs cPpksa ds eku&lEeku vkSj rjDdh esa lnSo vfHko`f) gksrh jgs ij-------------
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Hkhepj.k& gka ckcw ge nks chlk tehu vkSj viuh tM+ksa ls tqM+s jgsus dk oknk djrs gSA
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