Tuesday, October 22, 2013

कीमत /लघुकथा

कीमत /लघुकथा
राहुल नौकरी बढ़िया चल रही है।उच्च तालीम को सम्मान मिला  की नहीं …?
सम्मान कैसा दमन हो रहा है। छाती पर पहाड़ रखे कीमत चुका रहा हूँ सुरेश बाबू ।
कैसी कीमत………… .?
विज्ञानं के युग में अछूत होने की
बड़े शर्म की बात है आ आरक्षण का फायदा  भी नहीं मिला।
नहीं…………. सजा मिल रही है।
अंडरटेकिंग कंपनी में आरक्षण दम तोड़ चुका  है।
कहने को अंडरटेकिंग कंपनी है सुरेश बाबू कानून कायदे तो सामंतवादी लागू है।
तभी तुम्हारी तालीम का कोई मोल नहीं है ,जातीय श्रेष्ठता होती तो तुम कंपनी स्टार होते राहुल।
पापी पेट का सवाल है तभी  इतनी घाव बर्दाश्त कर रहा हूँ।
सामंतवाद तो शोषितों के लिए बबूल की छांव है।
हाँ सुरेश बाबू बबूल की छाँव का जीवन मौत से संघर्ष ही है।
सच कह रहे हो शोषितों के खून पर पलने वाले परजीवी आज भी शोषण कर रहे है। इन नर पिशाचो से छुटकारा पाने के लिए संगठित होकर मुकाबला करने  की हिम्मत जुटाना होगा तभी विकास सम्भव है राहुल।
डॉ नन्द लाल भारती 22 . 10 . 2013


Thursday, October 17, 2013

चोरनाथ /लघुकथा

चोरनाथ /लघुकथा
क्या कर रहे हो मोटू … ?
कार से डीजल निकल रहा हूँ।
क्या …….दिन दहाड़े चोरी ?
जी…. समरथ नहीं दोष गोसाईं।
क्या कह रहे हो मोटू ?
चोरी तो कर रहा हूँ पर अपने लिए नहीं।
चोरी में ईमानदारी। …?
जी ऐसा ही समझिये।
मोटू बुझनी क्यों ?
बुझनी नहीं सही है ?
क्या सही क्या गलत चोरी तो चोरी है।
चोरी तो है पर अपने लिए नहीं।
फिर चोरी क्यों ?
फर्जी कमाई के बादशाह चोर नाथ साहेब के लिए बांस के इशारे पर ,वह भी स्व-जातीय अफसर के लिए
बाप रे कैसे -कैसे भ्रष्टाचार ?
मोटू ऐसे ही जातिवाद भ्रष्टाचार को पोस रहा है।
सच भ्रष्टाचार की जडे बहुत गहरे  तक फ़ैल चुकी है।
मोटू रक्षक ही भक्षक बन रहे है तो खोदेगा कौन  ? कहते हुए  वह डीजल से भरा ड्रम लेकर दफ्तर के गोडाउन की और ले चला।
डॉ नन्द लाल भारती  18  . 10. 2013

Monday, October 14, 2013

प्रहलाद /लघुकथा

प्रहलाद  /लघुकथा
भूषण सम्मान की बधाई  हो दिवाकर।
धन्यवाद मित्रवर।
तुम्हारे कैरियर की अमावास की रात तो अब कट जानी चाहिए।
बाबू मै  भी विश्वास पर टिका हूँ। कब तक नसीब के दुश्मन दर्द देते है। खैर बर्दाश्त की ताकत तो भगवान ही दे रहा है।
काश तुम्हारे साथ अन्याय ना हुआ होता तो आज तुम श्रम की मण्डी में गुमनाम ना होते। तुम्हारी उच्च योग्यता मान-सम्मान तक को बर्बाद कर  दिया नसीब के दुश्मनों ने।
बाबू  उम्र का मधुमास तो बिट चूका है पर अग्नि परीक्षा जारी है।
हाँ कल युग के प्रहलाद देखना है हिरनाकुश रूपी सामंती प्रबंधन की छाती कब फटती है कब तुम्हे मिलता है न्याय ……….? गरीब जान कर एक उच्च-शिक्षित जाति को योग्यता मानकर  कैरियर  को फंसी लगा दिया सामंती प्रबंधन ने कोसते हुए चन्द्र बाबू चल पड़े  डॉ नन्द लाल भारती  14 . 10. 2013

Friday, October 4, 2013

चिंता /लघुकथा

चिंता /लघुकथा
 पापाजी सुने क्या ………….?
  क्या बेटा रंजन ………?
वो दो आदमी के बाते करते हुए गए है।
क्या कह रहे थे बेटा। …?
पापाजी एक आदमी कह रहा था ढोकरा बंटवारा कर देता या  लुढ़क जाता तो बड़ा घर बनवा लेता। ढोकरा  कौन होगा पापा …?
उसका पापा ।
ओ गाड पापा की कमाई के बंटवारे की इतनी चिंता पापा की तनिक भी नहीं। 
  डॉ नन्द लाल भारती  05. 10. 2013