Thursday, June 25, 2015

भईया का बर्थडे/लघुकथा

भईया का बर्थडे/लघुकथा 
दिनेश हांफते हुए अरे अंकल... ?
क्या हुआ बेटा ... ?
आपके पडोसी गोभल ....... 
क्या हुआ मिलावटखोर,बेईमान,भ्रष्ट्राचारी  गोभल को,कही वो भी तो आत्महत्या नहीं कर लिया अपने दूसरे परिजनों की तरह ,दिनेश की हड़बड़ाहट देखकर नरेंद्र बाबू के माथे की लकीरे तन गयी  । वह बुत से खड़े रह गए। 
अंकल क्या सोच रहे हो बाहर निकालो ,आपके घर तक तांता लगा हुआ है दिनेश एक सांस में बोल गया । 
नरेंद्र बाबू बाहर निकले ,भीड़ से एक लडके को इशारे से बुलाये । माथे से पसीना पोंछते हुए पूछे बेटा इतनी भीड़ क्यूँ  सुबह सुबह । 
अंकल आप नहीं जानते ?
क्या नहीं जानता बताओ तो सही बेटा  । 
भईया का बर्थडे है । 
कौन से भईया ....... ?
भोलू………………। 
तीन दिन पहले बाप बेटे की महाभारत  हो रही थी,आज बर्थडे मनाने के लिए इतनी भीड़ । कहा खो गए अंकल ?भोलू भईया पार्टी के जुझारू नेता है ,शहर के  हर वार्ड के बड़े नेता आये है भईया का बर्थडे मनाने के लिए । 
ये वही भोलू है जो मिडिल की परीक्षा नहीं पास कर पाया ,पिछले साल लड़की भगा कर ले गया था ,गली गली मारा मारा फिरता था । हाय रे  राजनीति की  तरक्की । इतने में भोलू भईया ज़िंदाबाद के नारे गूँजने लगे। नरेंद्र बाबू दोनों हाथॉ  से कान दबाये अंदर चले गए और दिनेश अपने घर की ओर  । 
 डॉ नन्द लाल भारती 26 .06 . 2015  

Wednesday, June 24, 2015

श्रद्धांजलि /लघुकथा

श्रद्धांजलि /लघुकथा 
दफ्तर तुम्हारे नाम है क्या ?
ऐसी कौन सी गुस्ताखी हो गयी कि इतनी बेरुखी वह भी फ़ोन पर ?
भगवान के फ्यूनरल में नहीं गए ?
घर से तो जाने के लिए आया था । 
गए क्यों नहीं ?
दफ्तर पहुंचा तो पता चला की साहब लोग निकल गए ।
बात नहीं हुई थी ।
बिग बॉस से साढ़े नौ बजे बात हुई थी ,नहाने जाने का कहकर फ़ोन बंद कर दिए थे ।
आई सी ।
व्हाट………
उच्च अधिकारियो के बीच तुम कैसे …………?तुम तो दफ्तर से ही श्रद्धांजलि दे दो |
मैं सुबह से ही भगवान की आत्मा की शांति और उसके परिवार के सुखद जीवन के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहा हूँ ।
तुम्हारी श्रद्धांजलि जरूर कबूल होगी । जानते हो…………?
क्या ?
उच्च अधिकारियो की बातो पर विश्वास मत किया करो ।
क्यों …………?
हंसिया अपनी तरफ खींचता है मिस्टर नगीना ।
डॉ नन्द लाल भारती 24 .06 . 2015

टेढ़े मत चला करो /लघुकथा

टेढ़े मत चला करो /लघुकथा 
मिस्टर कोढ़े अपने घर के सामने  बाइक और एक्टिवा खड़ी देखकर अपने से दस साल बड़े पडोसी मिस्टर सदानंद से रौद्र रूप में पूछे  ये तुम्हारी है क्या ?
कार निकल जाए हटा लेंगे, मिस्टर सदानंद बोले ॥  
मिस्टर कोढ़े का रौद्र रूप और विकराल हो गया,वे गरजते हुए बोले इतना टेढ़े मत चला करो । 
मिस्टर सदानंद इतनी बदतमीजी और बेरुखी क्यूँ भाई  ? बाइक और एक्टिवा सड़क पर खड़ी है ,गैरेज से कार बाहर करने के बाद अंदर करेंगे ,इतनी असभयता का नंगा प्रदर्शन क्यों  ?
हम लोग तुम लोगो से ज्यादा सभ्य है मिस्टर कोढ़े बोले । 
हां वो तो है ,लोग दूर से समझ जा रहे होगे । 
आग में घी मत डालो मिस्टर कोढ़े पुनः बोले । 
आग में घी क्यों  प्रत्यक्ष प्रमाण है । 
कौन सा.…………?
मिस्टर कोढ़े आपका पांच फ़ीट असंवैधानिक बारजा,असंवैधानिक  खिड़की जो मेरी तरफ खुली है ,असंवैधानिक फुटपाथ जिसका निकास हमारी तरफ है ,असंवैधानिक  ट्यूबवेल  जो फूटपाथ के नीचे है ,और तो और हमारे यहाँ सब के पास यूनिवर्सिटी की डिग्री है आपके पास चरवाहा विश्वविद्यालय की और कुछ आपके सभ्य और उच्च श्रेणी के होने का प्रमाण दू क्या  सदानंद बोले ? 
इतना सुनते ही मिस्टर कोढे लजाया हुआ भाल लिए  अपने असंवैधानिक किले में चले गए  और स्वाभिमान से सदानंद दफ्तर। 
डॉ नन्द लाल भारती 24 .06 . 2015  

Tuesday, June 23, 2015

श्रवण और दधीच /लघुकथा

श्रवण और  दधीच /लघुकथा 
सुबह -सुबह चिंता के बादल,क्या वजह है कमल ?
चिंता के  तो है पर अंवारा नहीं गुलाब बाबू | 
शक पुख्ता है । 
पुख्ता ही समझिये । 
वजह क्या है ,क्यों चिंतित हो कमल  ?
गुलाब बाबू जब खून के रिश्ते स्वार्थ की हदें तोड़ने और बेगानो जैसा व्यवहार करने लगे तो चिंता तो  होगी ना ?
क्या खून के रिश्तो में बेगानेपन का जहर ?
हाँ गुलाब बाबू वही अपने खून के रिश्तेदार जो जोंक की तरह अपने लहू पर पल रहे, जिनके सुख-दुःख पर  मेहनत की कमाई स्वाहा हो रही । 
वाकई चिंता की वजह पुख्ता हो गयी है । 
अब तो टूटने लगा हूँ गुलाब बाबू । 
हिम्मत ना  हारो कमल,तुम कितना त्याग कर रहे हो सभी जानते  है।  आदमी नहीं भी माने तो क्या भगवान पर भरोसा रखो। उसी  को साक्षी मानकर  नैतिक दायित्वों का निर्वहन करते रहो बस. चिंता -फिक्र को मारो गोली  । 
कर तो वही रहा हूँ  पर कुफ़्त और दर्द तो होता ही है भले ही मर्द हूँ क्योंकि नशे की जिद के आदी बाप के लिए श्रवण  और स्वार्थी भाई के लिए दधीच नहीं बन सका गुलाब बाबू। 
बनना भी नहीं कमल । 
डॉ नन्द लाल भारती 
18.06. 2015  


Thursday, June 18, 2015

ये कैसा भैयप्पन/लघुकथा

ये कैसा भैयप्पन/लघुकथा 
कुटुंब की तरक्की के लिए,सगे  सम्बन्धियों से दूर शहर का  वनवास झेल रहा बड़ा भाई काफी हद तक अपने मकसद में सफल हो चुका था.गाँव में रह रहे छोटे भाई के बेटे को नन्ही सी उम्र से अपने साथ रखकर पढ़ा लिखाकर अफसर बना लिया  था,बाकि बच्चो का भी पूरा ख्याल रखता ,छोटे भाई उसके परिवार  के हर दुःख -सुख को अपना दुःख सुख समझता था ,बीमा होने पर सहारा लेकर इलाज करवाता था,छोटे भाई के इलाज पर लाखो खर्च कर चूका था जबकि गाँव में छोटा भाई भी स्वरोजगार से था। शहर का  वनवास झेल रहा बड़ा भाई अपनी बेटी के ब्याह को लेकर चिंतित था,काफी भाग दौड़ के बाद सुदूर बेटी की शादी तय हो गयी।  बड़े भाई ने खबर छोटे भाई और निकट के रिश्तेदारो को शादी में शामिल होने का अनुरोध सविनय किया था। सप्ताह भर बाद बड़े भाई ने बेटी के ब्याह में शामिल होने के लिए रेल टिकट की जानकारी लेना चाहा तो छोटे भाई ने कहा हमने अपना और अपने परिवार का टिकट करवा लिया है पर.…?
बड़ा भाई पर का क्या मतलब भाई....... ?
रेल टिकट पर छः हजार खर्च हो गए है,छोटा भाई तगादे के अंदाज में बोला । 
बेटी के ब्याह में आने के लिए खर्च भी देना है , मैं  जिस छोटे भाई के  मोह में कुए का मेढक बना हुआ था उस भाई का  ये कैसा भैयप्पन। बड़े भाई के हाथ से फ़ोन छूट गया,बेचारा बड़ा भाई ठगा सा छाती पर हाथ रखे वही बैठ गया।    
 डॉ नन्द लाल भारती 
29.04.2015     

राज /लघुकथा

राज /लघुकथा 
क्या राज है, मौन खिलखिलाहट का नरेंद्र ?
हाशिये के आदमी की नसीब में कहाँ खिलखिलाहट सतेंद्र बाबू । 
चेहरा मौन खिलखिलाहट की चुगली कर रहा है,कोई ख़ास वजह तो है । 
कोई ख़ास नहीं बस एक मुर्दाखोर की याद आ गयी । 
मुर्दाखोर क्या बक रहे हो नरेंद्र ?
सच सतेंद्र बाबू ।
कौन है वो अमानुष ?
एक था सामंतवादी,शोषतो की नसीब का खूनी विभागीय तुगलक विजय प्रताप । जिसके अघोषित फरमान से हम और हमारे जैसो को तरक्की से दूर बहुत दूर फेंक दिया गया और तो और हम और हमारे के लिए विभाग का दरवजा बंद कर दिया गया सिर्फ जातीय वैमनस्यता के कारण ।
ये तो ख़ुशी की नहीं शर्म की बात है नरेंद्र।
मुर्दाखोरो को कहाँ शर्म आती है सतेंद्र बाबू ? दैवीय चमत्कार ही मानो एक दिन ऐसे मुर्दाखोरो का गुमान टूटता जरूर है ।
अमानुष विजय प्रताप का गुमान कैसे टूटा ?
उसकी औलादों ने मुंह पर जूते पर जूते दे मारा सतेंद्र बाबू ।
क्या .... ?
सच औलादों ने इतने गिन-गिन कर जूते मारे कि सामंतवादी,शोषितों की नसीब का खूनी, तुगलक विजय प्रताप मुंह दिखाने लायक नहीं बचा ।
ऐसा औलादो ने क्या कर दिया नरेंद्र ?
भाग कर अन्तरजातीय ब्याह कर लिया |
डॉ नन्द लाल भारती
18.06. 2015