Monday, August 11, 2014

शब्द बाण /लघुकथा

शब्द बाण  /लघुकथा 
साहित्यिक संगोष्ठी अपने  यौवन से ढलान की और तीव्रता से बढ़ रही थी इसी बीच चेतमल बोले शब्दबुध्द जी मुझे भी कवितापाठ करना है।
शब्दबुध्द-सचिव से कहने का इशारा किये। 
चेतमल-अचेतमल   न देख रहे है न सुन सुन। 
शब्दबुध्द  सचिव महोदय से बोले -चेतमलजी  कवितापाठ करना चाहते है।
शब्दबुध्द का अनुरोध ना जाने क्यों अचेतमल  को गुस्ताखी लग गया।वे अपनी जबान रूपी  म्यान से ऐसे शब्द बाण का प्रहार कर बैठे   जैसे कोई राजा गुस्ताख़ को दंड देने के लिए तलवार का प्रहार कर दिया होरिटायर्ड  पी डब्लू डी के  इंजीनियर अचेतमल का घमंड अभी सातवे आसमान पर था वे  शब्दबुध्द बोले  सचिव नहीं मिस्टर मेरा नाम भी है। चेतमल  मुझसे डायरेक्ट  बात कर सकते है। आपको कहने की जरुरत नहीं।अभिमानी  रिटायर्ड  पी डब्लू डी के  इंजीनियर अचेतमल शायद  भूल गए  थे कि वे अब पी डब्लू डी के  इंजीनियर नहीं साहित्यिक संस्था   के सचिव की हैसियत से मंचासीन है।उनसे   सौ गुना बेहत्तर रचनाकार और सदस्य महफ़िल की  शोभा बढ़ा रहे है। जबकि शब्दबुध्द दशक भर सचिव के पद को गौरान्वित कर चुके थे। 
अचेतमल के असाहित्यिक व्यवहार को देखकर कानाफूसी होने  लगी  थी देखो  सचिव को सचिव महोदय  से सम्बोधित करना गुस्ताखी हो गया। संस्था ने सचिव  क्या बना दिया बन्दर के हाथ छुरी थमा दिया।ये क्या   साहित्य का भला करेंगे  ? 
डॉ नन्द लाल भारती 09 .08 .2014