Friday, November 29, 2013

आशीर्वाद /लघुकथा

आशीर्वाद /लघुकथा
पापा नेताजी जीताओ मित्र मंडल के सदस्य आये थे।
क्या फरमान लाये थे।
नेताजी अपने घर आने वाले है आज।
कोई  लालच देने क्या ? पांच साल तक तो दूर -दूर तक नहीं दिखाई पड़े अब घर। वाह रे वोट की लीला नेताजी घर आ रहे गरीब के।
पापा नेताजी जीताओ मित्र मंडल के सदस्य फूलमाला दे गए है।
 वाह क्या खूब …? नेताजी खुद के अभिनन्दन के लिए फूलमाला तक का बंदोबस्त एडवांस में करवा दिए है
शहीदो की आत्माएं विलाप कर रही होगी ऐसे लोकतंत्र की सिपाहियो को देखकर।   देश और जन हित का क्या काम करेगे ऐसे   आशीर्वाद लेने वाले स्वार्थी  नेता।  
डॉ नन्द लाल भारती   29 . 11. 2013

श्रध्दांजलि /लघुकथा

श्रध्दांजलि /लघुकथा
अरे सुनती हो भागवान।
क्या सुना रहे हो। तुम्हारी सुन-सुन कर अब तो कान सवाल-जबाब करने लगे है.,सुनाओ सुन रही हूँ।
भागवान ललित  गुप्ताजी चल बसे।
क्या,कब कैसे ………?बेचारे जवान बेटे कि मौत का गम ढोते-ढोते  लगता है थक गए थे। बेटी केरलवासी हो गए। गुप्ता आंटी का क्या होगा ?
 भगवान  जो चाहे। अफ़सोस मुट्ठी भर माटी नहीं दे पाये।  बेचारे अपनी मुसीबत में कितने काम आये थे।
याद है ,भगवान् भले मानुष की आत्मा को शांति बख्शना और गुप्ता आंटी को आत्मबल।
हमारे पूरे परिवार कि ओर  से  भईया ललित गुप्ता को श्रध्दांजलि कहते हुए श्याम बाबू और उनका पूरा परिवार दो मिनट के लिएय मौन साध गया। डॉ नन्द लाल भारती   29 . 11. 2013

Wednesday, November 13, 2013

पागल आदमी/लघुकथा

पागल आदमी/लघुकथा
रंजू के पापा दफ्तर से आ रहे हो ना…… ?
कोई शक  भागवान ………?
शक कर नरक में जाना है क्या। ....?
हुलिया तो ऐसी ही लग रही है जैसे पागल कुत्ता पीछे पड़ा था।
कयास तो ठीक है।
कहाँ मिल गया।
वही जहां  उम्र का मधुमास पतझड़ हो गया।
मतलब।
दफ्तर में।
मजाक के मूड में हो क्या …?
नहीं असलियत बयान कर रहा  हूँ। तीन दिन -रात एक कर दफ्तर शिफ्ट करवाया।  उच्च अधिकारी छुट्टी पर या दौरे पर चले गए।  मजदूरी और गाड़ी के  भाड़े  का भुगतान मुझे ही करना पड़ा जेब से उसी  भुगतान पर अपयश लग गया।
ईमानदारी और वफादारी पर अपयश ?
जी भागवान छोटा होने का दंड मिलता रहां है। इसी  भेद ने उम्र का मधुमास पतझड़ बना दिया।
अपयश कैसे लग सकता है।
लग गया भागवान।
कौन लगा दिया।
वही पागल आदमी जो उच्च ओहदेदार बनने के लिए दो खानदानो की इज्जत दाव पर लगा दिया  अब पद के मद में पागल कुता हो रहां है।
रंजू के पापा पद के मद में पागल आदमी हो या पागल कुत्ता दोनो  की मौत भयावह होती है। संतोष रखिये  ।
डॉ नन्द लाल भारती   14. 11. 2013