Friday, November 20, 2015

नरपिशाच/लघुकथा

नरपिशाच/लघुकथा 
देवकी चाची-बहू आपरेशन की  तारीख डाक्टर ने दे दी क्या ?
गीता-आपरेशन कराना ज़िन्दगी से खिलवाड़ है। 
देवकी चाची दूसरे डाक्टर की सलाह ले ली होती,पहले भी चार-चार ऑपेरशन हो चुके है।बार-बार घाव पक रहा है ।  आजकल डाक्टरों पर आँख बंद कर भरोसा करना मौत के मुंह में खुद को धकेलना है। 
गीता- दिखा दी । 
देवकी चाची-किसको ?
गीता-फैमिली डाक्टर को। 
देवकी चाची-क्या आपरेशन जरुरी है क्या कहा डाक्टर साहेब  ने ?
गीता-फैमिली डाक्टर ने एक सप्ताह की दवाई दिया है,दो दिन में मवाद बंद हो गया है,दर्द भी बहुत कम हो गया है। आपरेशन जरुरी नहीं  है। डाक्टर ने दवा गलत दिया था ताकि घाव सूखे नहीं शरीर सूजा रहे ताकि मजबूर होकर आपरेशन करवाना पड़े। 
देवकी चाची-मतलब कमाई के लिए मरीज का वध । 
गीता -यही समझ लो चाची,ज़िन्दगी भर के लिए एक डाक्टर का दिया दर्द पीकर अपाहिज सी ज़िन्दगी जी  रही हूँ। 
देवकी चाची-बदलते समय में आँख बंद कर एक डाक्टर पर  विश्वास करना अपने जीवन से खिलवाड़ करना  है क्योंकि भ्रष्ट्राचार और अवैध कमाई की ललक में  कुछ  डाक्टर -भगवान से नरपिशाच बन गए  है | 
डॉ नन्द लाल भारती
21 .11 .2015










Thursday, November 19, 2015

मृत्युभोज/लघुकथा

मृत्युभोज/लघुकथा 
लौट आये …?
भाग्यवान लौटने के लिए ही गया था ?
नाराज क्यों हो रहे हो ?
तुमसे नाराजगी  कैसी  ?
खाना खाकर आये हो की नहीं  ?
जी बिल्कुल नहीं। 
क्यों खाना अच्छा नहीं था। 
भाग्यवान तेरहवीं के खाने में क्या अच्छा देखना ?
खाए क्यों नहीं ?
कोई पहचानने वाला नहीं था। खाना तो बहुत अच्छा था,ऊपर से बुफे था,वहाँ तो लग ही नहीं रहा था तेरहवीं का भोज है।
तेरहवीं का भोज वह भी बुफे,क्या बात कर रहे हो जी ?
जी मुझे तो लगा ही नहीं कि एक बेटा बाप की तेरहवीं कर रहा है। लग रहा था स्वरुचि भोज का आयोजन है। 
आधुनिक समाज कहाँ जा रहा है एक तरफ मृत्युभोज बंद करने की पहल हो रही है ,दूसरी तरफ बुफे ?
डॉ नन्द लाल भारती
16 .11 .2015

Monday, October 5, 2015

खबर /लघुकथा

खबर  /लघुकथा 
व्हाटएप्प्स से खबर लगी है कि तुम्हारा एक्सीडेंट हो गया है। 
जी सही खबर   है। शुक्र है फ्रैक्चर नहीं हुआ है,शरीर के ढांचे में दर्दनाक अंदरुनी घाव है। आप मित्रो की दुआओ से जान बच गई है। 
क्या कह रहे हो ?
सच कह रहा हूँ कोई बेवकूफ सड़क पर कार का दरवाजा खोल दे तो क्या होगा ?
यार सुनकर रूह काँप उठी। ना जाने लोगो को कौन सी जल्दी रहती है कि राह चलते लोगो की जान लेने पर तूले रहते है। 
हेलमेट से काफी राहत हो गयी बचाव हो  पर पूरा अस्थि पंजर हिल गया है, पूरे  बदन  में भयावह दर्द है भाई। 
मुसीबत टल गयी। दवा लो,आराम करो दर्द भी ठीक हो जायेगा। 
वही हो रहा है,पर  आप मित्रजनों -स्वजनों की दुआ अधिक असरकारी है। 
वह कैसे बुध्दनाथ ?
मौत जो छूकर चली गयी विजय बाबू।  
डॉ नन्द लाल भारती
23 .09 .2015

Friday, September 18, 2015

सुनामी /लघुकथा

सुनामी /लघुकथा 
रोहनबाबू ड्योढ़ी के बाहर जूता निकाल कर पाँव रगड़ते हुए कमरे में दाखिल होते ही कुर्सी में अंदर तक धंस गये.रोहनबाबू को चिंतित देखकर  धन्वन्ति सिर पर हाथ फिराते हुए पूछ बैठी - करन के पापा दफ्तर में किसी से कुछ कहा सुनी हो गयी क्या ?
नहीं भागवान । 
फिर ये सौत का आतंक क्यों ?
कैसी सौत ?
आपकी चिंता किसी सौत से कम है क्या ? चिंता का कारण  क्या है प्राणनाथ ?
एक महिला । 
कहाँ गयी बदचलन औरत ?
कालोनी के नुक्कड़ पर । 
कहाँ की थी ?
आसपास की के किसी कालोनी की रही होगी । यह  महिला  चिंता का कारण कैसे हो गयी ।  कालोनी का प्रवेश अतिक्रमण का शिकार है,दबंगो का कब्ज़ा है। मुख्य सड़क सकरी गली जैसी हो गयी है| सुबह शाम जाम लग जाता है| अभी यही हाल था । अपनी गाड़ी एक तरफ किनारे खड़ी थी । एक महिला एक्टिवा से   आयी मेरी गाड़ी में टक्कर मार दी ,इसके बाद भी मेरे ऊपर चिल्लाने लगी,अंधे हो क्या ,अपनी औकात में रहा करो और ना जाने क्या ?
हमने बोला मैडम खड़ी गाड़ी में टक्कर मार दिया,हजारो का मेरा नुकशान कर  दिया,यह तो वही हाल हुआ उलटा चोर कोतवाल को डांटे | इतना सुनते ही मोहतरमा  द्रुतगति से भाग निकली। 
मिठाई की दुकान वाला मोदक तौलते हुए बोला बाप रे औरत है कि सुनामी।
धन्वन्ति बोली-चिंता छोडो करन के पापा सुनामी निकल गयी|ॉ
डॉ नन्द लाल भारती
18.09 .2015

Sunday, September 6, 2015

निरुत्तर /लघुकथा

निरुत्तर /लघुकथा 
लम्बा टीका और शरीर पर गेरुआ वस्त्र लपेटे ज्योतिषी ने अपनी कई भविष्य वाणियों को सत्य साबित कर विश्वास की पकड़ मजबूत बनाये जा रहे थे। इसी बीच एक व्यक्ति ने नाम के साथ उपनाम लगाये जाने के मुद्दे पर सवाल कर दिया। ज्योतिषी सवाल के जबाब में बोले उपनाम व्यक्ति कुल वंश और गोत्र के परिचायक होते है ।
दूसरा व्यक्ति बोला गलत । 
तीसरा बोला व्यक्ति के स्व अभिमान और अन्धविश्वास को बढ़ावा है और कुछ नहीं । उपनाम का चलन ख़त्म चाहिए । 
ज्योतिषी बोले क्या ज़माना आ गया है लोग कुल वंश को ख़त्म करना चाहते है ।
चौथा व्यक्ति बोला ज्योतिषी महोदय मत नाराज होइए, सोचिये और श्री कृष्णा का यादव उपनाम नहीं था श्री राम जिन्हे मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है उनका उपनाम सिंह नहीं था । उपनाम का दौर व्यक्ति के स्व अभिमान और अन्धविश्वास को बढ़ावा नहीं तो और क्या है ……?
निरुत्तर तथाकथित ज्योतिषी ने बस्ता समेट कर नौ दो ग्यारह हो लिए |
डॉ नन्द लाल भारती
06 .09 .2015

जय-जयकार /लघुकथा

जय-जयकार /लघुकथा 
पंद्रह अगस्त के जश्न के सुअवसर पर आयोजित वक्तव्य कार्यक्रम में गेरुआ धोती, कुर्ता और टोपीधारी   प्रथम वक्ता अपने वक्तव्य की शुरुआत कर्मकांडी श्लोको से कर  आज़ादी का  सेहरा हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वंय सेवक के सिर पर बाँध कर गौरान्वित महसूर कर रहे  थे परन्तु बेखबर  श्रोता जैसे कानो  में  अंगुली डाले बैठे थे । इस चुप को तोड़ते हुए उच्चवर्णिक जर्नलिस्ट  कन्या ताल ठोकते हुए  बोली वक्ता महोदय आज़ादी की जंग   पूरे भारत ने जाति धर्म से ऊपर उठकर लड़ी थी तभी देश आज़ाद हो पाया वरना देश का क्या हाल होता ? वक्ता  महोदय आपका कथन आज़ादी के दीवानो अमर शहीदो का अपमान है।सर्वधर्म और समभाव को आहत करता है], बहुत हो गया अब जाति-धर्म के नाम पर बंटवारा ,आज की  युवा पीढ़ी बहकावे में नहीं आने वाली है, आज की पीढ़ी को   समतावादी समाज और सर्व संपन्न देश चाहिए जाति धर्म के नाम जहर उगलता  भेदभाव  नहीं । इतना सुनते ही जर्नलिस्ट कन्या की जय-जयकार होने लगी।   डॉ नन्द लाल भारती
26.08.2015

Sunday, August 23, 2015

आधुनिक भिखारी/लघुकथा

आधुनिक भिखारी/लघुकथा 
हेलो अंकल ....... अंकल …हेलो आंटी … हेलो आंटी … बार की आवाज़ सुनकर बबलू सिर खुजलाते हुए बाहरी गेट की ओर बढ़ा। 
बबलू को देखकर आगंतुक नवयुवक बोला हेलो ब्रदर। 
बबलू-बोलिये क्या काम है? मम्मी यज्ञ-हवन कर रही है ,पापा ध्यान । 
नवयुवक-घर क्या ये तो मंदिर हो गया ?
बबलू-पापा छत्तीस करोड़ देवी- देवता में विश्वास नहीं करते,मम्मी कर लेती है । आपको पापा से काम है या मम्मी से ?
अब तो आपसे ही है ब्रदर ।
क्या मतलब बबलू चमक कर बोला ?
अरे ब्रदर घबरा क्यों रहे हो आज नागपंचमी है ।
तो मै करुँ ?
कुछ दान कर दो नवयुवक बोला ।
पढ़े लिखे होकर भीख मांग रहे हो,कुछ तो शर्म करो ?
ब्रदर -पूजा पाठ करना, दान लेना पुश्तैनी काम है नवयुवक बोला ।
अपात्र भिखारी को दान देना पाप है और कानूनी जुर्म भी ।
इतने में नयन बाबू बोले कौन है बबलू बेटा ?
बबलू गेट बंद करते हुए बोला आधुनिक भिखारी ।
डॉ नन्द लाल भारती 20 .08 .2015

Tuesday, July 28, 2015

दर्शन /लघुकथा

दर्शन /लघुकथा 
बाबा बहुत थके मांदे लग रहे हो,कहाँ से आ रहे हो  ?
बेटा  दर्शन करने गया था। 
कब से जा रहे हो बाबा ?
बचपन से। 
दर्शन कभी हुआ ?
किसी को नहीं हुआ तो हमें कहाँ होगा ?
बाबा मेहनत की कमाई क्यों बर्बाद कर रहे हो ?पुजारियों को घुस देते हो ,चढ़ावा चढ़ाते हो ,दानपेटी में भी डालते हो,वी आई पी दर्शन भी कर लेते हो ,इसके बाद भी कह रहे दर्शन नहीं हुए। बाबा होगे भी नहीं। 
क्या कह रहे हो बेटा। 
बाबा जरा सोचो। 
क्या .........? 
पत्थर की मूर्ति,लोहे का दरवाजा,हट्टे -कट्टे  पूजापाठ करवाने वाले  वंशागत  ठेकेदार ,क्या ऐसी कैद में भगवान के दर्शन हो सकते है बाबा ?
तुम्ही बताओ बेटा ।
बाबा जातिपाति की रार से ऊपर उठकर  दीन-दुखियो की सेवा करो,भूखो को रोटी ,वस्त्रहीन को वस्त्र दो, यही ईश्वर के सच्चे प्रतिनिधि है,इनकी सेवा  ईश्वर की पूजा  है।  
बेटा तुमने तो मेरी आँख खोल दी। अब दीन-दुखियो की आँखों में ईश्वर के दर्शन करूँगा। 
बाबा जरूर होगा। डॉ नन्द लाल भारती 04 .07.2015  

नाक /लघुकथा

नाक /लघुकथा 
पिता को दिन प्रतिदिन चिंता की चिता में सुलगता देखकर नयना  हिम्मत जुटा कर पिता से पूछ बैठी। पिताजी आपकी चिंता का कारण कही मैं तो नहीं ?
बेटी  क्यूँ  और कैसी चिंता ?भला चिंता का कारण तू क्यों हो सकती है बेटा ? 
ब्याह के  दहेज़ की चिंता पिताजी । 
कौन करेगा मैं नहीं करूँगा तो । सुयोग जाति पूत वर मिल जाता है तो तेरी डोली उठाकर सीधे गंगा स्नानं को जाऊँगा । 
ब्याह से ज्यादा दहेज़ दानव की चिंता है ना  ? पिताजी एक एहसान कर दीजिये मुझ पर । 
कैसा एहसान बेटा ?
जाति पूत को सौंप कर गंगा स्नान की जिद का पिताजी । 
ज्यादा पढ़-लिख गयी तो अपने बाप की नाक कटवायेगी क्या ?
खूंटे से  बंधी गाय नहीं ……नाक और ऊँची होगी पापा । 
कैसे  ऊँची होगी ?
उच्च शिक्षित अमीर चतुर्थ वर्णिक लडके से ब्याह कर । 
घोर कलयुग आ गया प्रथम वर्णिक लड़की चतुर्थ वर्णिक लडके से ब्याह । 
हां पापा नयना  बोली।  
ना बेटी ना ऐसा अधर्म ना करना । 
पापा इससे दो समस्याओ का अंत होगा  । 
कौन सी समस्या का अंत करने जा रही है ।
पापा..........दहेज़ दानव और जातिवाद का । 
आख़िरकार नयना अपने मकसद में कामयाब हो गयी । ब्याह के दिन  स्व-रूचि भोज का आनंद लेते हुए लोग बड़े चाव से चबा -चबा कर बतिया रहे थे ,लो जी वह दिन भी आ गया दीवार खड़ी करने वाले ही  तोड़ने लगे। अब तो  देश की नाक दुनिया में ऊँची हो जाएगी ।  
डॉ नन्द लाल भारती 16 .07.2015

खतरा /लघुकथा


खतरा /लघुकथा 
रौद्र एंव शांत चित का प्रयास,क्या कोई मनभेद तो नहीं ?
अरे भई अपनी जहां में तो तिलकधारी जैसे लोग मनभेद लेकर ही पैदा होते है । ऐसे मनभेदी देश समाज के लिए कैंसर बने हुए है। 
तिलकधारी ने क्या विष बो दिया ?
तिलक की आड़ में ज्ञानी महापुरुष ही नहीं महागुरु भी बन रहां है।  
कौन सा विष बाण छोड़ दिया आज  ?
कहता  ज़िन्दगी में कभी सीखने की कोशिश नहीं करोगे क्या ?
ढकोसलेबाज में इतनी समझदारी आ गयी क्या ?
हाँ, ऐसे ही बहुरुपिया  समझदारो ने  तो ज्ञान-विज्ञानं को फेल कर देश और आधुनिक शिक्षित समाज को भ्रमित कर रखा है ।  
ढकोसलेबाज रूढ़िवादियों के परित्याग में ही देश का विकास ,सामाजिक समानता और सदभावना निहित है । 
ढोंगी रूढ़िवादी  तिलकधारी लोकहित और परमार्थ से कोसो दूर हो गए  है,स्वार्थ और गुनाह के नज़दीक आ गए है,समाज को खंडित-विखंडित कर अपनी सत्ता स्थापित करने में आज भी कामयाब है  चिंताप्रसाद । 
सच ऐसे लोग ही देश और सभ्य समाज के लिए खतरा है नेकचन्द । 
 डॉ नन्द लाल भारती 11 .07.2015
  

Thursday, June 25, 2015

भईया का बर्थडे/लघुकथा

भईया का बर्थडे/लघुकथा 
दिनेश हांफते हुए अरे अंकल... ?
क्या हुआ बेटा ... ?
आपके पडोसी गोभल ....... 
क्या हुआ मिलावटखोर,बेईमान,भ्रष्ट्राचारी  गोभल को,कही वो भी तो आत्महत्या नहीं कर लिया अपने दूसरे परिजनों की तरह ,दिनेश की हड़बड़ाहट देखकर नरेंद्र बाबू के माथे की लकीरे तन गयी  । वह बुत से खड़े रह गए। 
अंकल क्या सोच रहे हो बाहर निकालो ,आपके घर तक तांता लगा हुआ है दिनेश एक सांस में बोल गया । 
नरेंद्र बाबू बाहर निकले ,भीड़ से एक लडके को इशारे से बुलाये । माथे से पसीना पोंछते हुए पूछे बेटा इतनी भीड़ क्यूँ  सुबह सुबह । 
अंकल आप नहीं जानते ?
क्या नहीं जानता बताओ तो सही बेटा  । 
भईया का बर्थडे है । 
कौन से भईया ....... ?
भोलू………………। 
तीन दिन पहले बाप बेटे की महाभारत  हो रही थी,आज बर्थडे मनाने के लिए इतनी भीड़ । कहा खो गए अंकल ?भोलू भईया पार्टी के जुझारू नेता है ,शहर के  हर वार्ड के बड़े नेता आये है भईया का बर्थडे मनाने के लिए । 
ये वही भोलू है जो मिडिल की परीक्षा नहीं पास कर पाया ,पिछले साल लड़की भगा कर ले गया था ,गली गली मारा मारा फिरता था । हाय रे  राजनीति की  तरक्की । इतने में भोलू भईया ज़िंदाबाद के नारे गूँजने लगे। नरेंद्र बाबू दोनों हाथॉ  से कान दबाये अंदर चले गए और दिनेश अपने घर की ओर  । 
 डॉ नन्द लाल भारती 26 .06 . 2015  

Wednesday, June 24, 2015

श्रद्धांजलि /लघुकथा

श्रद्धांजलि /लघुकथा 
दफ्तर तुम्हारे नाम है क्या ?
ऐसी कौन सी गुस्ताखी हो गयी कि इतनी बेरुखी वह भी फ़ोन पर ?
भगवान के फ्यूनरल में नहीं गए ?
घर से तो जाने के लिए आया था । 
गए क्यों नहीं ?
दफ्तर पहुंचा तो पता चला की साहब लोग निकल गए ।
बात नहीं हुई थी ।
बिग बॉस से साढ़े नौ बजे बात हुई थी ,नहाने जाने का कहकर फ़ोन बंद कर दिए थे ।
आई सी ।
व्हाट………
उच्च अधिकारियो के बीच तुम कैसे …………?तुम तो दफ्तर से ही श्रद्धांजलि दे दो |
मैं सुबह से ही भगवान की आत्मा की शांति और उसके परिवार के सुखद जीवन के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहा हूँ ।
तुम्हारी श्रद्धांजलि जरूर कबूल होगी । जानते हो…………?
क्या ?
उच्च अधिकारियो की बातो पर विश्वास मत किया करो ।
क्यों …………?
हंसिया अपनी तरफ खींचता है मिस्टर नगीना ।
डॉ नन्द लाल भारती 24 .06 . 2015

टेढ़े मत चला करो /लघुकथा

टेढ़े मत चला करो /लघुकथा 
मिस्टर कोढ़े अपने घर के सामने  बाइक और एक्टिवा खड़ी देखकर अपने से दस साल बड़े पडोसी मिस्टर सदानंद से रौद्र रूप में पूछे  ये तुम्हारी है क्या ?
कार निकल जाए हटा लेंगे, मिस्टर सदानंद बोले ॥  
मिस्टर कोढ़े का रौद्र रूप और विकराल हो गया,वे गरजते हुए बोले इतना टेढ़े मत चला करो । 
मिस्टर सदानंद इतनी बदतमीजी और बेरुखी क्यूँ भाई  ? बाइक और एक्टिवा सड़क पर खड़ी है ,गैरेज से कार बाहर करने के बाद अंदर करेंगे ,इतनी असभयता का नंगा प्रदर्शन क्यों  ?
हम लोग तुम लोगो से ज्यादा सभ्य है मिस्टर कोढ़े बोले । 
हां वो तो है ,लोग दूर से समझ जा रहे होगे । 
आग में घी मत डालो मिस्टर कोढ़े पुनः बोले । 
आग में घी क्यों  प्रत्यक्ष प्रमाण है । 
कौन सा.…………?
मिस्टर कोढ़े आपका पांच फ़ीट असंवैधानिक बारजा,असंवैधानिक  खिड़की जो मेरी तरफ खुली है ,असंवैधानिक फुटपाथ जिसका निकास हमारी तरफ है ,असंवैधानिक  ट्यूबवेल  जो फूटपाथ के नीचे है ,और तो और हमारे यहाँ सब के पास यूनिवर्सिटी की डिग्री है आपके पास चरवाहा विश्वविद्यालय की और कुछ आपके सभ्य और उच्च श्रेणी के होने का प्रमाण दू क्या  सदानंद बोले ? 
इतना सुनते ही मिस्टर कोढे लजाया हुआ भाल लिए  अपने असंवैधानिक किले में चले गए  और स्वाभिमान से सदानंद दफ्तर। 
डॉ नन्द लाल भारती 24 .06 . 2015  

Tuesday, June 23, 2015

श्रवण और दधीच /लघुकथा

श्रवण और  दधीच /लघुकथा 
सुबह -सुबह चिंता के बादल,क्या वजह है कमल ?
चिंता के  तो है पर अंवारा नहीं गुलाब बाबू | 
शक पुख्ता है । 
पुख्ता ही समझिये । 
वजह क्या है ,क्यों चिंतित हो कमल  ?
गुलाब बाबू जब खून के रिश्ते स्वार्थ की हदें तोड़ने और बेगानो जैसा व्यवहार करने लगे तो चिंता तो  होगी ना ?
क्या खून के रिश्तो में बेगानेपन का जहर ?
हाँ गुलाब बाबू वही अपने खून के रिश्तेदार जो जोंक की तरह अपने लहू पर पल रहे, जिनके सुख-दुःख पर  मेहनत की कमाई स्वाहा हो रही । 
वाकई चिंता की वजह पुख्ता हो गयी है । 
अब तो टूटने लगा हूँ गुलाब बाबू । 
हिम्मत ना  हारो कमल,तुम कितना त्याग कर रहे हो सभी जानते  है।  आदमी नहीं भी माने तो क्या भगवान पर भरोसा रखो। उसी  को साक्षी मानकर  नैतिक दायित्वों का निर्वहन करते रहो बस. चिंता -फिक्र को मारो गोली  । 
कर तो वही रहा हूँ  पर कुफ़्त और दर्द तो होता ही है भले ही मर्द हूँ क्योंकि नशे की जिद के आदी बाप के लिए श्रवण  और स्वार्थी भाई के लिए दधीच नहीं बन सका गुलाब बाबू। 
बनना भी नहीं कमल । 
डॉ नन्द लाल भारती 
18.06. 2015  


Thursday, June 18, 2015

ये कैसा भैयप्पन/लघुकथा

ये कैसा भैयप्पन/लघुकथा 
कुटुंब की तरक्की के लिए,सगे  सम्बन्धियों से दूर शहर का  वनवास झेल रहा बड़ा भाई काफी हद तक अपने मकसद में सफल हो चुका था.गाँव में रह रहे छोटे भाई के बेटे को नन्ही सी उम्र से अपने साथ रखकर पढ़ा लिखाकर अफसर बना लिया  था,बाकि बच्चो का भी पूरा ख्याल रखता ,छोटे भाई उसके परिवार  के हर दुःख -सुख को अपना दुःख सुख समझता था ,बीमा होने पर सहारा लेकर इलाज करवाता था,छोटे भाई के इलाज पर लाखो खर्च कर चूका था जबकि गाँव में छोटा भाई भी स्वरोजगार से था। शहर का  वनवास झेल रहा बड़ा भाई अपनी बेटी के ब्याह को लेकर चिंतित था,काफी भाग दौड़ के बाद सुदूर बेटी की शादी तय हो गयी।  बड़े भाई ने खबर छोटे भाई और निकट के रिश्तेदारो को शादी में शामिल होने का अनुरोध सविनय किया था। सप्ताह भर बाद बड़े भाई ने बेटी के ब्याह में शामिल होने के लिए रेल टिकट की जानकारी लेना चाहा तो छोटे भाई ने कहा हमने अपना और अपने परिवार का टिकट करवा लिया है पर.…?
बड़ा भाई पर का क्या मतलब भाई....... ?
रेल टिकट पर छः हजार खर्च हो गए है,छोटा भाई तगादे के अंदाज में बोला । 
बेटी के ब्याह में आने के लिए खर्च भी देना है , मैं  जिस छोटे भाई के  मोह में कुए का मेढक बना हुआ था उस भाई का  ये कैसा भैयप्पन। बड़े भाई के हाथ से फ़ोन छूट गया,बेचारा बड़ा भाई ठगा सा छाती पर हाथ रखे वही बैठ गया।    
 डॉ नन्द लाल भारती 
29.04.2015     

राज /लघुकथा

राज /लघुकथा 
क्या राज है, मौन खिलखिलाहट का नरेंद्र ?
हाशिये के आदमी की नसीब में कहाँ खिलखिलाहट सतेंद्र बाबू । 
चेहरा मौन खिलखिलाहट की चुगली कर रहा है,कोई ख़ास वजह तो है । 
कोई ख़ास नहीं बस एक मुर्दाखोर की याद आ गयी । 
मुर्दाखोर क्या बक रहे हो नरेंद्र ?
सच सतेंद्र बाबू ।
कौन है वो अमानुष ?
एक था सामंतवादी,शोषतो की नसीब का खूनी विभागीय तुगलक विजय प्रताप । जिसके अघोषित फरमान से हम और हमारे जैसो को तरक्की से दूर बहुत दूर फेंक दिया गया और तो और हम और हमारे के लिए विभाग का दरवजा बंद कर दिया गया सिर्फ जातीय वैमनस्यता के कारण ।
ये तो ख़ुशी की नहीं शर्म की बात है नरेंद्र।
मुर्दाखोरो को कहाँ शर्म आती है सतेंद्र बाबू ? दैवीय चमत्कार ही मानो एक दिन ऐसे मुर्दाखोरो का गुमान टूटता जरूर है ।
अमानुष विजय प्रताप का गुमान कैसे टूटा ?
उसकी औलादों ने मुंह पर जूते पर जूते दे मारा सतेंद्र बाबू ।
क्या .... ?
सच औलादों ने इतने गिन-गिन कर जूते मारे कि सामंतवादी,शोषितों की नसीब का खूनी, तुगलक विजय प्रताप मुंह दिखाने लायक नहीं बचा ।
ऐसा औलादो ने क्या कर दिया नरेंद्र ?
भाग कर अन्तरजातीय ब्याह कर लिया |
डॉ नन्द लाल भारती
18.06. 2015

Tuesday, April 21, 2015

दहकता सवाल। लघुकथा

दहकता सवाल। लघुकथा 
क्या बात है सुबह-सुबह चिंता की बौझार समय पुत्र ?
चिंता नहीं बॉ साहब एक दहकता सवाल है। 
कैसा सवाल ?
डाक्टर को लेकर। 
आजकल के दुछ डाक्टर तो बकर कसाई होते जा रहे है। 
बा साहब मुददा  तो ये भी ज्वलंत है पर मेरा दहकता सवाल नाम के आगे डाक्टर लिखने को लेकर है। 
भाई सेवक चंद लिखने की जिसके पास योग्यता है उसे लिखना चाहिए। तुम भी लिखो तुम्हे हिंदी विद्या पीठ से  विद्यावाचस्पति और विद्यासागर की उपाधि मिल चुकी है  तुम सुपात्र हो अपने नाम के आगे विद्यावाचस्पति या  विद्यासागर या डाक्टर लिखो। 
बॉ साहब यही दहकता सवाल है, लोग दहकता सवाल करते  है कि  पी.एच.डी. कब किये। 
लोग उनसे सवाल  क्यों नहीं करते जो बिना किसी उपाधि के राष्ट्रपिता अथवा सत्ता पर पारिवारिक कब्ज़ा होने के कारण भारतरत्न हो गए बॉ साहब कहते-कहते हांफ गये ।   
सेवकचंद-बॉ साहेब आप तो  और बड़ा दहकता सवाल खड़ा कर दिये । 
डॉ नन्द लाल भारती 
21.04.2015    

Wednesday, February 11, 2015

दलित क्षत्रिय ,धर्मयोध्दा/लघुकथा

दलित क्षत्रिय ,धर्मयोध्दा/लघुकथा 
लो तरक्की आ गयी दासवंत  खैनी थूकते हुए बोला। 
कैसी तरक्की कर्मवन्त हुक्का दास्वन्त को थमाते  हुए बोला। 
क्या ये तरक्की कम  है ,अछूत दलितो  ,दलित क्षत्रिय ,धर्मयोध्दा कहा  जा रहे है। 
सब भ्रमजाल में फंसाकर  गुलाम बनाये रखने की साजिश है दासवंत। 
सिकुड़ती हुई दुनिया में हो सकता है दलितों के दिन भी अच्छे आ  जाये. 
सदियों से शोषितो  के साथ धोखा है। सोचो जिन लोगो ने रूढ़िवादी जातिवादी धर्म  लिए   हांडी  गले में   झाड़ू कमर में  बांधने को विवश किया ,आदमी को जानवर से बदतर बना   दिया।  उन्ही के वंशज दलित क्षत्रिय ,धर्मयोध्दा कह रहे है। क्या कभी रोटी बेटी  की बात किये  है या कोई धार्मिक  सामजिक स्तर पर उदहारण पेश  किये ।   नहीं  दासवंत  नहीं । यह दहन-दमन की कोई नई साजिश है । 
क्या रहे हो कर्मवन्त ?
सच कह रहा हूँ। 
क्या सच कह रहे हो ?
जातिवादी -नफरतवादी रूढ़िवादी  धर्म के  डूबते जहाज को बचने के  लिए अब धर्म के ठेकेदारो को    दलितक्षत्रिय ,धर्मयोध्दाओ   अर्थात अछूतों /दलितों का  आत्म बलिदान  चाहिए। डॉ नन्द लाल भारती 11  .02 .2015    

दूषित आँख /लघुकथा

दूषित आँख /लघुकथा 
हवलदार  आवेदन के साथ लगी नवयौवना के  फोटो को दूषित  आँखों से निहारते हुए बोला हेडसाहेब गुमशुदा का एक नया केस आ गया क्या ....... ?
आ तो गया है। 
जनाब जांच कहा तक पहुंची ....... ?
जांच क्या ....... ?
क्यों नहीं .... ?
क्या जांच। जाड़े  का मौसम शबाब पर है ,उतरते ही वापस आ जायेगी। 
देश की  रक्षा और  समाज की सुरक्षा की कसमे खाकर  दौलत और  अस्मिता पर अश्लील नजरे रखने वाले, देश और समाजद्रोहियो की बात सुनकर सच नारायण का कलेजा मुंह में आ गया वह छाती पर हाथ रखकर थाने से  बाहर चला गया। पुलिस वाले दूषित आँखों से निहारते रह गए। 
 डॉ नन्द लाल भारती
 23 दिसम्बर 2014 

बेटी के बाप दर्द /लघुकथा

बेटी के बाप दर्द /लघुकथा 
गौरव तुम भी ब्याह की डोर में बंध गए। वैवाहिक जीवन मुबारक हो यार. 
धन्यवाद दीपचंदभाई। 
ब्याह की ख़ुशी तुम्हारे चहरे पर झलक नहीं रही है। ब्याह से खुश हो ना भाई। दहेज़ में कमी रह गयी क्या ? इंजीनियर पत्नी मिली है। तुम्हारा कुल सुधर जाएगा। 
रंजीत -गौरव बेटी के बाप को निथार लिया होगा,छोड़ा नहीं होगा। 
गौरव-पापा ने लिया है मैंने नहीं। 
कितना ..... ?
दस लाख शायद- गौरव। 
समझ में आया। 
क्या दीपचंद … ?
काश तुम्हारे पापा बेटी के बाप का दर्द समझ पाते।दहेज़ का विरोध करने वाला बातो का जादूगर बिक गया । बालिका भ्रूण हत्या के दोषी तेरे पापा सौदागर है क्या ?
डॉ नन्द लाल भारती 11 .02 .2015

शर्म करो /लघुकथा

शर्म करो /लघुकथा 
शादी मुबारक हो गुमान। 
धन्यवाद बड़े भाई। 
सब ठीक ठाक सम्पन्न हो गया। 
जी आपकी कृपा से। 
क्या मिला कोई नहीं रहे हो। 
हमे तो कुछ नहीं मिला। 
क्या बात रहे हो। 
सच कह रहा हूँ। 
दुल्हन नहीं आयी। 
आयी ना बड़े भाई.
दुल्हन ही दहेज़ है। एक बाप अपने कुल की इज्जत तुम्हे दिया। इसके बाद भी सामर्थ्य अनुसार दान दहेज़ भी दिया होगा। तुम कह रहे हो कुछ नहीं। कुछ तो शर्म करो गुमान।
डॉ नन्द लाल भारती 11 .02 .2015

ओम की मौत /लघुकथा

ओम की मौत /लघुकथा 
ओम नाम था उसका। हां नशे की तनिक लत थी पर गुस्ताख़ बंदा ना था। परायी नारी में उसे अपनी माँ -बहन नज़र आती थी। इसी नज़र की वजह से पड़ोस me रहने वाली युवा कुंवारी कन्याओ के अनैतिकता की और बढ़ाते कदम को रोंकने की गुस्ताखी करवा दी ।इन कुंवारी कन्याओ ने नारी होने का खूब फायदा uthaya। ओम के खिलाफ अनेक धाराओ में पुलिस केस दर्ज़ करवा दिया। ओम और उसका इज्जतदार परिवार खौफ में रहने लगा। इसी खौफ ने एक दिन नन्हे बच्चो के युवा बाप ओम की जान ले ली। ओम की मौत से उठे सवाल नारी अस्मिता को कठघरे में खडे कर रहे थे और साथ ही सभ्य समाज की छाती में ठोंक रहे थे कीलें भी। डॉ नन्द लाल भारती 20.01.2015

एफ.आई.आर./लघुकथा

एफ.आई.आर./लघुकथा 
मुंशीजी रिपोर्ट लिख लिया …… ?
कौन सी रिपोर्ट हेडसाहेब …… ?
चोरी वाली और कौन सी। 
बिना माल लिए। सब छाप रहे है। हम फोकटी तो नहीं। 
लिखो तो सही। 
देखो हेडसाहेब बिना माल के काम नहीं। 
थाने में पुलिस का आपसी मोलभाव सुनकर कृपणारायण बोला कैसे न्याय मिलेगा धनबीर…… ?
आओ चले धनबीर बोला। 
कहाँ …… ?
कचहरी।
कचहरी क्यों …… ?
मुकदमा दर्ज़ करवाने।
बिना एफ.आई.आर.लिखवाये।
दबे कान आवाज़ सुन रहे हो ,एफ.आई.आर.लिखवाने के माल लगते है ।
ठीक कह रहे हो, थाने में सुनवाई नहीं हो रही है कचहरी में हो सकती है। थाने का सबूत भी तो मोबाइल में हो गया है।
डॉ नन्द लाल भारती
23 दिसम्बर 2014

ओम की मौत /लघुकथा

ओम की मौत /लघुकथा 
ओम नाम था उसका। हां नशे की तनिक लत थी पर गुस्ताख़ बंदा ना था। परायी नारी में उसे अपनी माँ -बहन नज़र आती थी। इसी नज़र की वजह से पड़ोस me रहने वाली युवा कुंवारी कन्याओ के अनैतिकता की और बढ़ाते कदम को रोंकने की गुस्ताखी करवा दी ।इन कुंवारी कन्याओ ने नारी होने का खूब फायदा uthaya। ओम के खिलाफ अनेक धाराओ में पुलिस केस दर्ज़ करवा दिया। ओम और उसका इज्जतदार परिवार खौफ में रहने लगा। इसी खौफ ने एक दिन नन्हे बच्चो के युवा बाप ओम की जान ले ली। ओम की मौत से उठे सवाल नारी अस्मिता को कठघरे में खडे कर रहे थे और साथ ही सभ्य समाज की छाती में ठोंक रहे थे कीलें भी। डॉ नन्द लाल भारती 20.01.2015