Thursday, December 30, 2010

mafinaamaa

माफीनामा .....
कर्मवादी कर्मचारी बॉस के आदेश के परिपालन में ईमानदारी एवंग शालीनता से जुट गया . कर्मवादी कर्मचारी का संस्थाहित में यह कार्य अभिमानी अधिकारी को इतना नागवार गुजरा की वे कर्मवादी के साथ  बदसलूकी करते हुए बॉस से शिकायत तक कर दिए. अधिकारी की शिकायत को अनसुना कर बॉस ने जुआड्बाज  अधिकारी को दायित्वाबोध का ऐसा हैवी डोज दिया की उन्हें कर्मचारी संस्था की रीढ़ है का बोध हो गया और वे भींगी बिल्ली हो गए. आखिरकार अभिमानी अधिकारी, कर्मवादी कर्मचारी से माफ़ी मागने लगे जो  पद की मियादी जहाज पर बैठे  , कर्मचारी को छोटे लोग कहकर दुत्कार चुके थे .. नन्द लाल भारती  ३०.१२.२०१०

eds ki kheti

 एड्स की खेती ..
काले साहब मालामाल हो गए तरक्की पर तरक्की . गोल्ड मेडलिस्ट, हाईली कुवालिफईद    फेल  हो गए है .
काले साहबे की गोरी नीति का बवाल है तरक्की पर तरक्की .
क्या कह रहे हो महोदय गोरी नीति का बवाल.. 
हां .........छल, भेद आखिर में बात नहीं बनी तो दाम यानि गोरी नीति . 
अच्छा समझा , इसी नीति के सहारे गोरो ने देश को गुलाम बनाये रखा था. अब काले साहब लोग युवाओ की नसीब और आम आदमी  के हक़ को गुलाम बना रहे है  .
आतंकवाद,घूसखोरी,भ्रस्ताचार गोरे नासूर की खेती हो गयी है .
नासूर नहीं एड्स. इस एड्स के खिलाफ जंग भविष्य और हक़ सुरक्षित रख सकता है .
नन्द लाल भारती  ३०.१२.२०१०

Wednesday, December 29, 2010

PRATIKRIYA

प्रतिक्रिया ..
अत्यधिक संपन्न  परन्तु आत्मिक विपन्न व्यक्ति की दोगली बात पर प्रतिक्रिया स्वरुप बुजुर्ग विपुल पूछे उपदेश अच्छा था विपिन ...
उपदेश नहीं धोखा ....
सही समझे, साप केचुल  छोड़े तो इसका मतलब ये नहीं की डसना छोड़ दिया .
देख लिया दादा मन में राम और छुरी की धार .
अरे तू तो समझदार हो गया बेटा .
साप तो नहीं ना दादा .
बिल्कुल  नहीं, सच्चे, मन के अच्छे मानवतावादी विषधर नहीं हो सकते बेटा ...
नन्द लाल  भारती   २९.१२.२०१० 

Wednesday, December 22, 2010

Naasoor (short story)

नासूर .....
दुखी हो गए  ?
सुखी कब था ज्वालामुखी की मांद पर ?
सच, हाशिये का आदमी पक्षपात का शिकार और मुश्किलों का पर्याय हो गया है. ना जाने इस नासूर का इलाज कब संभव होगा.
इलाज तो संभव है पर जिम्मेदार होने देना नहीं चाहते. भाई-भतीजावाद ,भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले अंधे-बहरे अपनो  को रेवड़ी  बाँट रहे है. योग्य तिरस्कृत है. पर कतरे जा रहे है .
काश देश और आम आदमी के विकास में बाधा बना नासूर ख़त्म हो जाता . तरक्की से दूर फेंका आदमी रफ़्तार पकड़ लेता .
संभव तो है जिम्मेदार लोग नैतिक ईमानदार बने तब ना. घात   का ज्वालामुखी तो वही से फूटता है ...
नन्दलाल भारती..२२.१२.२०१० 

Thursday, December 16, 2010

intjaar

इन्तजार     ..
कब  तक कामकरना पड़ा .
आठ बजे तक ..
तैयार हो गयी  रिपोर्ट .
रात में ही और बाइंडिंग भी हो गयी ..
रिपोर्ट तो बॉस के टेबल पर पड़ी है .
छाती पर चढ़कर बनवाए . चाहे टेबल पर रखे या टोकरी में . मुझ छोटे कर्मचारी के लिए तो दर्द  पीना तकदीर  है .
जो काम तुम से रात आठ बजे तक करवाया गया वह भी बिना किसी ओवर टाइम के  वह  तो महज इन्तजार करने का बहाना था .
किसका ...........
मैडम का जानते नहीं बॉस अपनी जरुरत अनुसार उपभोग और तुम छोटे कर्मचारी को आंसू देते रहते है .
क्या.............
हा..... नन्द लाल भारती

Saturday, December 11, 2010

vardaan

vardaan.
 bitiya vardaan बन गयी .
वो कैसे ...
जिस दिन पैदा  हुई थे उसी दिन कारोबार की नीव पड़ी थी . बिटिया ज्यो-ज्यो बढ़ रही है  कारोबार भी बढ़ रहा है .बिटिया वरदान   है .
लगती नहीं होती है घर की लक्ष्मी बेटिया .
विश्वास मज़बूत हो गया ..
कैसा  विश्वास ....
बेटिया वरदान है .....नन्द लाल भारती

astha

आस्था  ..
साहब पुष्पगुच्छ स्वीकार कीजिये .
किस ख़ुशी में रोहन .
आपके जन्मदिन की ख़ुशी में .
बेटा शुभकामना के शब्द बोल देता . तुम्हारे अंतर्मन की शुभकामना मुझे मिल जाती. पैसा खर्च करने की क्या जरुरत थी . दैनिक वेतनभोगी  हो,तंगी से गुजर रहे हो... 
जनता हूँ गरीब हूँ पर आस्था से नहीं..स्वीकार कीजिये साहब ..
तुम्हरी आस्था के सामने नतमस्तक हूँ रोहन ,
साहब ये पुष्पगुच्छ स्वीकार कीजिए .
मुझमे अस्वीकार करने का सामर्थ्य कहा ....गले से लग जा बेटा रोहन.......नन्दलाल भारती

Thursday, December 2, 2010

sewa shulk

सेवा    शुल्क ..

जसवंती-क्या जमाना आ ग्ग्गाया है ज्जहा देखो वही रिश्वतखोरी  .
जसोदा-कौन रिश्वात मांग रहा है .
जस्वंती-बिना रिश्वत के कोई काम होता है, चाहे कोई प्रमाण पत्र बनवाना हो या अन्य काम. अस्पताल में चाय-पानी के नाम पर रिश्वतखोरी कई विभाग तो पहले से ही बदनाम है.
जसोदा-रिश्वतखोरी ने ईमान को लहूलुहान कर दिया है, कर्म्पूजा है को लतिया दिया है.
जस्वंती-हां बहन बिना रिश्वत के तो काम नहीं होता होता .सेवा भावना का कटी कर दिया है रिश्वत ने .
जस्वंती-पच्चास साल पहले मुझ से दस रूपया रिश्वत ली थी सरकारी बाबू ना चाय पानी के नाम .मैंने सबके साम्माने दस रूपया का नोट हाथ पर रख दिया था.रिश्वतखोर बाबू हक्का-बक्का रह गया था, माथे से पसीना चुने कागा था . माफ़ी माँगा था.
जसोदा -रिश्वत सेवा शुल्क हो गया है .
जसोदा बहिन रिश्वत ना देने की कसम खानी होगी...नन्दलाल भारती
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putra moh

पुत्र मोह   

बहू-बेटो ने दुखीबबा का जीवन नरक कर दिया था . दी दिनों से मरन्शैया पर पड़े हुए थे . दुखिबबा कराहते हुए बड़े बेटे गोपाल से विनती भरे स्वर में बोले बेटा जमींदार जगदीश बाबू को बुला देता. मुलाकात की बड़ी इच्छा है .
गोपाल -डपट दिया .
दुखिबबा गाँव के एक लडके जीतेन्द्र को भेजकर जमीदार जगदीश बाबूओ को बुलवाए. दुखिबबा ने जगदीश को पास बैठाने का इशारा किया और उखड़ती सांस में बोले बाबू मै तो जा रहा हूँ. मेरे बच्चो पर दया-दृष्टि बनाये रखना और दुखिबबा की सांस सदा के लिए थम गयी.
गोपाल अवाक था पिता के अंतिम क्षण के पुत्र मोह को देखकर .
नन्द लाल भारती

munh dikhayee

मुंह DIKHAYEE  ..
दीक्षा अपनी जेठानी प्रतीक्षा से -दीदी अशोक की मम्मी कह रही थी  की तुमने तो हमारी बहू को मुंह दिखाई नहीं दी  . मै तुम्हारी बहू को क्या दूँगी.
प्रतीक्षा-तुमने क्या जबाब दिया .
दीक्षा-दीदी ने तो दिया है  .
प्रतीक्षा-तब क्या कहा सुभौता दीदी ने .
दीक्षा-वे बोली तुम्हारी जेठानी ने दिया है, तुमने तो नहीं.
प्रतीक्षा- बाप रे कैसी कैसी साजिशे रचती है सुभौता दीदी, तुमको कहना था दीदी मत बाँटो हमें. मत देना हमारी बहूओ को ... नन्दलाल भारती

Wednesday, December 1, 2010

vidroh

विद्रोह .

बगावती -काकी सास दमयंती के सामने थाली पटकते हुए बोली भैंस का चारा-पानी मै कर रही हूँ और दूध पुष्पा पी रही है. अम्मा ये बेगानापन क्यों .
दमयंती-बीटिया तू नहीं जानती क्या पुष्पा के पेट में जानलेवा दर्द हो रहा है. डाक्टर ने पंद्रह दिन तक खाना देने को मन किया है. बेटी तू ही बता कैसे रहेगी जिंदा बिना खाए-पीये. कुछ तो चाहिए ना ....
बगावती ..सगी पतोहू को दूध पिला रही हो  मुझे सूखी रोटी ...
दमयंती..बेटी तेरे पति को अपना दूध पिलाकर पला तो क्या तुझे सूखी रोटी दे सकती हूँ. सब तो तेरे हाथ में है ना.  कभी तुमको रोका है क्या. क्यों विद्रोह पर उतर रहो हो.
बगावती विद्रोह के बिना कैसे हक़ मिलेगा इस घर में..
दमयंती.. कैसा हक़ चाहती हो बीटिया..
बगावती.. आधे का ..
दमयंती-- घर में दीवार...
बगावती- हां..
इतना सुनते ही दमयंती गिर पड़ी धडाम से बेसुध... नन्दलाल भारती