Thursday, December 11, 2014

गुरु दक्षिणा/लघुकथा

गुरु दक्षिणा/लघुकथा 
सम्मान समारोह बाद एक पत्रकार ने सवाल उछाल दिया । लेखकजी आपके साहित्यिक गुरु कौन है। 
लेखक -मेरे अनपढ़ माँ -बाप और जीवन संघर्ष ?
क्या आपका कोई गुरु नहीं ?
बताया तो। 
इनके अतिरिक्त ?
कोई नहीं।
आप इतना बढ़िया लिखते है, बिना किसी गुरु से साहित्यिक शिक्षा लिए।
माँ -बाप और अपने जीवन संघर्ष से शिक्षा लया हूँ और ले भी रहा हूँ।
आपने गुरु क्यों नहीं बनाया ?
एकलव्य का अंगूठा गुरु दक्षिणा में चला गया याद है मेरा हाथ ही चला जाता तो … ?
डॉ नन्द लाल भारती 12 .12 .2014

Tuesday, December 9, 2014

बेटी का रिश्त/लघुकथा

बेटी का रिश्त/लघुकथा 
आईये पंडित जी।  बहुत खुश लग  रहे है।  कैसा लगा घर -वर ?
घर-वर  ठीक हैं। लड़की का लड़के से सत्ताईस गुण मिल रहे  है। 
बधाई पंडित जी।  ब्याह की तयारी करो। 
तनिक और सोचना पड़ेगा। 
लड़का एम बी ए है ,नौकरी कर रहा है। वर्णिक आरक्षण की भरपूर सुविधा का उपभोग भी मिल रहा  है । अब क्या सोचना पंडित जी। 
और भी अच्छा रिश्ता घर के पास आगरा  से आ रहा है। लड़का बी एस सी है । जूते के  थोक व्यापार का जमा जमाया धंधा  है। रोज लाखो की आवक है। बिटिया सुखी रहेगी। 
क्या कह रहे  हो पंडित जी महाराज कल तो दफ्तर के उच्च वर्णिक सफाई कर्मचारी के नाम पर उल्टी आ रही थी ।धर्म भ्रष्ट ho रहा था ।आज जूता व्यापारी के घर बेटी का रिश्ता…?  
डॉ नन्द लाल भारती 09 .12 .2014  

Monday, December 8, 2014

सजा /लघुकथा

सजा /लघुकथा 
मई की तपती लू का आतंक था। नए नए आये प्रमुख अफसर अवध प्रताप सिंघ का चैम्बर बर्फीला हो रहा था। खैर होता भी क्यों नहीं ऊपर पंखा, खिड़की पर एसी जो टंगा था।अचानक अवध प्रताप सिंघ विद्यांशु को चपरासी रईस के माध्यम से बुलवाये। विद्यांशु हाजिर हुआ। 
प्रमुख अफसर -कब से काम कर रहे हो ?
अट्ठारह साल से। 
एक ही जगह अट्ठारह साल से। 
जी प्रमोशन नहीं हो रहा मै तो चाहता हूँ पर प्रमोशन के साथ ट्रांसफर। विद्यांशु बात आगे बढ़ाते हुए बोला एक अनुरोध है साहब।
क्या अवध प्रताप सिंघ बोले ?
मेरे मरते हुए सपनो को उम्र दे सकते है साहब।
वो कैसे ……?
प्रमोशन के लिए अनुशंसा कर।
इतना सुनते ही साहब को जैसे करैत ने डंस लिया। वे एसी की तरफ मुंह कर बोले क्या किया है।
पीजी के साथ प्रशासन से संबंधित डिग्री डिप्लोमा भी।
तुम्हे प्रमोशन क्यों चाहिये।
नौकरी भविष्य लिए कर रहा हूँ। साहेब सभी के हो रहे है। स्नातक टाइपिस्ट जनरल मैनेजर तक बन गए । ना जाने क्योंमेरे साथ अन्याय हो रहा है ?
शिकायत कर रहे हो प्रबंधन की । आरक्षित वर्ग हो ना।इसीलिए नेतागीरी कर रहे हो
जी आरक्षित वर्ग का तो हूँ नहीं कर रहा हूँ।
नेताजी सुनो मिनट में बाहर करवा सकता हूँ. जानते हो ये विभाग तुम्हारे लोगो के लिए नहीं बना है। अपने लोगो को देखो खाने को अन्न नहीं पहनने को वस्त्र नहीं,आज भी लोग पास खड़े तक नहीं होने देते ।तुम तो दफ्तर में बैठे हो बाबूगिरी कर रहे हो , सर्वसुविधा भोग रहे हो। तुम नसीब वाले हो तुम्हे नौकरी मिल गयी है,तुम्हारे बच्चे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहे है. क्या इतनी तरक्की कम है। अवध प्रताप सिंघ नरभक्षी सिंह की तरह दहाड़ते हुए बोले ?
आगरा नरेश नौकरी आप और जैसे सभी कर रहे है पर मुझे शोषित क्यों ? विद्यांशु बोला।
नरभक्षी सिंह की तरह दहाड़ते हुएअवध प्रताप सिंघ साहब बोले छोड़ दो नौकरी सजा लग रही है तो। तुम्हारी सजा का जिम्मेदार कौन है।
आप और आप जैसे सामंतवादी लोग।
डॉ नन्द लाल भारती 04.12 .2014

Saturday, November 1, 2014

इकलौती बहन /लघुकथा

इकलौती बहन /लघुकथा 
गीता,सुरेखा,सुलोचना और मुन्नी आंटी फुटपाथ पर खड़े -खड़े जैसे चारो युगो के  मुद्दो पर  विमर्शरत थी। इसी बीच माध्यम कद-काठी का आदमी विमर्शरत  महिलाओ के सामने सेगुजरा । उस व्यक्ति की ओर अंगुली  दिखाते हुए  सुरेखा बोली -अभी जो आदमी  गया है, उसके चलने के अंदाज से कोई परिचित लग रहा था। 
सुलोचना-दीदी पहले बताती  तो  आगे बढ़ कर पूछ भी लेती अब तो वह आदमी  दूर  निकल गया।
मुन्नी आंटी- लौटने का इन्तजार करना है  क्या ?
सुरेखा-अब वापस लौट कर आने  वाला तोनहीं  है क्या इन्तजार करना।  चलो भजन  में  मिलते है। इसी बीच  गीता ने अपने पड़ोस वाली खडूस सास का मुद्दा उछाल दिया ,मुददा   परत दर परत द्रोपती की  साड़ी हो गया। इसी वह आदमी आता हुआ दिखाई पड  गया, सुलोचना बोली दीदी आपके  चाहने वाले ने दिल की आवाज़ सुन ली है देखो आ रहा है। 
सुरेखा -अरे हां वह पास  आँख फाड़-फाड़ कर निहारने लगी।  इतने में वह आदमी  आ  गया। सुरेखा एकदम उसके आगे खड़ी होकर बोली आप राजसिंघ हो क्या ?
तुम सुरेखा हो क्या  ? राजसिंघ बोला। 
सुरेखा -अंकल आंटी सब ठीक है ?
राजसिंघ- माँ बीमार रहती है पिताजी स्वर्गवासी हो गए। 
सुरेखा -अंकल की मौत का सुनकर बहुत दुःख हो रहा है।
मुन्नी आंटी - जो आया है सबको जाना है ,भगवान उनकी  आत्मा को शान्ति बख्शे। 
सुरेखा -हां आंटी   ठीक  कह रही हो। अच्छा राज भैया नौकरी धंधा कैसा चल रहा है। 
राजसिंघ- सुरेखा बहन हम  चारो भाई सरकारी नौकरी में है ,सब अपने-अपने  बालबच्चों के साथ बंगला गाड़ी और दुनिया की सारी  सुख सुविधाओ  के साथ मजे में है। 
सुरेखा -छुटकी रानी भी तो बालबच्चेदार हो गयी होगी। 
राजसिंघ-रानी अपनी नसीब में शादी का सुख नहीं लिखवा कर लाई है। 
सुरेखा -क्या ?
राजसिंघ-हां बहन। 
सुरेखा - कर्म और फ़र्ज़ को विसार कर नसीब के आसरे बैठ गए तुम चारो।इसी गम अंकल चल बसे आंटी बीमार रहती है क्या ? 
राजसिंघ-क्या करे रानी की नसीब में शादी नहीं लिखी है। 
सुरेखा - वाह रे कलयुग  बाप मेहनत मज़दूरी करके तुम भाई -बहन को उच्ची शिक्षा दिए। आज तुम चारो भाई  दुनिया का हर सुख भोग   रहे हो,इकलौती बहन का ब्याह नसीब पर छोड़ दिए , यह तो तुम चारो    भाइयो के लिए चुल्लू पानी में डूब मरने वाली बात है कहते हुए सुरेखा ने मुंह मोड़ लिया और  राजसिंघ कुछ कदम चलकर कालोनी में समा गया। 
डॉ नन्द लाल भारती 27.10.2014  

Thursday, September 4, 2014

दुर्भाग्य/लघुकथा

दुर्भाग्य/लघुकथा 
यार कैसे अफसर हो मनोहर   ?
आपके कहने का मतलब क्या ? मैं योग्य नहीं। अरे भाई  कुशासन की वजह से दुर्गति हो रही है वरना उच्च श्रेणी का अफसर होता। 
हां तुम्हारी जाति तुम्हारा दुर्भाग्य बन गयी है। 
जी प्रबंधन का दिया जख्म तो सदा हरा रहेगा ,पर याद कर दुखी नहीं होना चाहता। जो घाव मिले उसी के दर्द से बेहाल हूँ। अब कोई नया घाव ना मिले। 
तुम्हे पता नहीं !!!!!!!
क्या ..........?
तुम्हारी  आफिस से अफसर शोध पर जा रहे है।
कौन सा शोध कार्य ?
ग्रामीणो के विकास के लिए विभाग शोध कार्य करवा रहा है। 
क्या ग्रामीणो के विकास के लिए  शोध ?
हां वह भी ऐसे अफसरों को भेजा जा  रहा है जिनके पास शोध से सम्बंधित कोई शैक्षणिक योग्यता ही नहीं है। तुम्हारे पास सारी योग्यताएं है। 
शैक्षणिक योग्यता तो  है परन्तु !!!!!!!!!!!!!!!!!
परन्तु क्या ………………… ?
पहुँच के साथ उच्च वर्णिक योग्यता तो नहीं है ना !!!!!!!!!!!!!!यही मेरा दुर्भाग्य है  
तुम्हारा नहीं विभाग का  दुर्भाग्य है मनोहर  !!!!!!!!!!!!! 
डॉ नन्द लाल भारती 04.09.2014  


दर्द /लघुकथा 
सुनो जी  आपके तेवर क्यों बदले हुए लग रहे   है ?
भागवान भला मेरे तेवर क्यों बदलने लगे ?
कुछ बात तो है ,कही ना कहीं खट्टा -मीठा एहसास हुआ तो है।कही गए थे क्या ?
हां मित्रता की ओर कदम बढ़ा रहे एक शख्स के बुलावे पर उन्ही से मिलने। 
अनुभव अच्छा नहीं रहा। 
स्वाभिमान और अभिमान दोनो के साक्षात् दर्शन हो गए। 
वो कैसे ?
जब मै एकडो में बने बगले के मेनगेट से बरामदे में हाजिर हुआ तो उनकी धर्मपत्नी ऐसे दरवाजे पर खड़ी हो गयी जैसे प्रवेश वर्जित हो।  वो अंदर से सवाल पर सवाल दागे जा रही थी। 
मसलन .......... 
क्यों कैसे आये ,साहेब ने मिलने का समय दिया है क्या। 
फिर क्या हुआ। 
मैडम जबाब से संतुष्ट होकर दरवाजा खोली। 
पानी चाय  का भी नहीं पूछा मैडम ने। 
बैठने तक  का बोलने में सोच-विचार करना पड़ा था मैडम को।
छाती पर पत्थर  रखकर बैठने  के साथ बोली साहब नहा रहे हे।  अंदर चली गयी फिर लौटी नहीं। 
मैडम से मिलकर कैसा लगा ?
बुरा बहुत बुरा भगवान  परन्तु मित्रता की ओर  कदम बढ़ा रहे बलिहारीजी   से मिलकर स्व-मान बढ़ गया। स्वाभिमानी, परहित के लिए जन जागरण करने वाले नेक इंसान है,अपने हाथो से पानी लाये थे मेरे लिए। 
काश मिसेज बलिहारी अतिथि देवो भवः के मर्म को समझती तो मैडम का अभिमान दर्द ना देता।  
डॉ नन्द लाल भारती 12 .08 .2014  
 




शब्द बाण  /लघुकथा 
साहित्यिक संगोष्ठी अपने  यौवन से ढलान की और तीव्रता से बढ़ रही थी इसी बीच चेतमल बोले शब्दबुध्द जी मुझे भी कवितापाठ करना है।
शब्दबुध्द-सचिव से कहने का इशारा किये। 
चेतमल-अचेतमल   न देख रहे है न सुन सुन। 
शब्दबुध्द  सचिव महोदय से बोले -चेतमलजी  कवितापाठ करना चाहते है।
शब्दबुध्द का अनुरोध ना जाने क्यों अचेतमल  को गुस्ताखी लग गया।वे अपनी जबान रूपी  म्यान से ऐसे शब्द बाण का प्रहार कर बैठे   जैसे कोई राजा गुस्ताख़ को दंड देने के लिए तलवार का प्रहार कर दिया होरिटायर्ड  पी डब्लू डी के  इंजीनियर अचेतमल का घमंड अभी सातवे आसमान पर था वे  शब्दबुध्द बोले  सचिव नहीं मिस्टर मेरा नाम भी है। चेतमल  मुझसे डायरेक्ट  बात कर सकते है। आपको कहने की जरुरत नहीं।अभिमानी  रिटायर्ड  पी डब्लू डी के  इंजीनियर अचेतमल शायद  भूल गए  थे कि वे अब पी डब्लू डी के  इंजीनियर नहीं साहित्यिक संस्था   के सचिव की हैसियत से मंचासीन है।उनसे   सौ गुना बेहत्तर रचनाकार और सदस्य महफ़िल की  शोभा बढ़ा रहे है। जबकि शब्दबुध्द दशक भर सचिव के पद को गौरान्वित कर चुके थे। 
अचेतमल के असाहित्यिक व्यवहार को देखकर कानाफूसी होने  लगी  थी देखो  सचिव को सचिव महोदय  से सम्बोधित करना गुस्ताखी हो गया। संस्था ने सचिव  क्या बना दिया बन्दर के हाथ छुरी थमा दिया।ये क्या   साहित्य का भला करेंगे  ? 
डॉ नन्द लाल भारती 09 .08 .2014  

संस्कार /लघुकथा 
गोधूलि बेला में एकदम उठे और कहाँ चले गए थे  ?
घूमने चला गया था। 
कहाँ ?
एम आर  टेन। 
घूमने गए थे चिंता लेकर आये हो 
चिंता की बात ही है।   दो बूढ़ी औरते चर्चारत थी,एक बोली बहन बेटा कह रहा की वह अब अपने हिसाब से रहेगा 
दूसरी बोली बहन तुम्हारे ऊपर मुसीबत मंडरा रही है। 
पहली बोली हां बहन। वृध्दा आश्रम की ओर  प्रस्थान करना होगा यही चिंता खाए जा रही है 
आपको कैसी चिंता 
यदि हमारे साथ ऐसा हो गया तो ?
हमारे साथ ऐसा हो ही नहीं सकता 
क्यों ?
क्योंकि आपने अपने बच्चो को शिक्षा ,नैतिक शिक्षा और संस्कार दिए है। संस्कारवान बच्चे  के लिए माँ-बाप  धरती के  भगवान होते है 
सच बच्चो को भले ही  विरासत में धन न मिले पर शिक्षा ,नैतिक शिक्षा और संस्कार तो मिलनी ही चाहिए यही संस्कार वृध्दा आश्रम की राह रोक सकता है। 

डॉ नन्द लाल भारती 30 .07.2014  

ब्लॉग्स पर मेरी अनेक लघुकथाएँ उपलब्ध है। 



पर्दाफाश /लघुकथा 
देहात की प्रसूता की जान को बचाने के लिए ए पॉजिटिव  खून की तुरंत जरुरत है की उड़ती खबर सुनकर अमन प्रदेश के सबसे बड़े निजी अस्पताल, जो शहर से २५ किमी दूर था,जिसके मालिक चिकित्सा शिक्षा के फर्जीवाड़ा के केस में कई महीनो से जेल में है की और भागा। अमन को प्रसूता के सगे सम्बन्धी मुख्य द्वार पर मिल गए,जबकि अमन से  किसी प्रकार की कोई जान -पहचान ना थी । वे लोग अमन को पलको पर बिठा कर अस्पताल के लैब में ले गए ।अमन को देखते ही डॉ बोला जाओ कैंटीन से कुछ खा कर आओ 
अमन - डॉ साहेब मैं घर से खाकर आ रहा हूँ आप तो तुरंत खून लेकर प्रसूता की जान बचाईये 

डॉ -वह हो जायेगा पर कैंटीन से कुछ खा कर आओ
।आखिरकार अमन को जबरदस्ती अस्पताल की कैंटीन में भेज दिया गया ,जहां उससे फूल डिनर का भुगतान भी  लिया गया ।डिनर का बिल चुकाने के बाद अमन का खून लिया गया । ब्लड डोनेट कर देने दे बाद अमन को बीस रुपये का कूपन दिया गया  और कहा गया जाओ कैंटीन में कुछ पी लो 
अमन बोला -डॉ यही कूपन पहले दे देते 
। डिनर का रूपया तो मेरा बच जाता । कैसा रॉकेट चल रहा है डॉ ………?
प्रसूता का पति गिड़गिड़ाते हए बोला मेरी पत्नी और बच्चे को बचा लो डॉ साहेब 
डॉ-कैश काउंटर से  रसीद लेकर आओ प्रसूता का पति रसीद दिखाते हुए बोला रसीद है मेरे पास साहेब।
डॉ -सचमुच गावड़े हो। अरे खून के  कीमत की रसीद। 
प्रसूता का पति का  बाप बोला डॉ साहेब ये दान का खून है इसकी  कीमत। 
डॉ-यहां कुछ मुफ्त का नहीं है। 
आखिरकार प्रसूता के सगे   सम्बन्धियों ने मिलकर अपने अपने पॉकेट की निङ्गा झोरी कर रूपये जमा करवाये तब जाकर खून चढ़ाने की प्रक्रिया पूरी हुईप्रसूता के  बाप अमन के सिर  पर हाथ रखा कर बोले बेटा युग-युग जीओ]खूब तरक्की करो ,परमार्थ का काम तो कर ही रहे हो।  मेरी बेटी और उसके बच्चे का जान बचाने के लिए हमारा परिवार तुम्हारा कर्जदार रहेगा बेटा । 
अमन-बाबा मुझे बहुत दुःख है। प्रसूता  के   बाप कैसा दुःख बेटा ?
अमन -डोनेशन के खून की मुंह माँगी कीमत गरीब से वसूली जा रही   है इसका दुःख है बाबा। इस रॉकेट का पर्दाफाश कैसे  और कब होगा ?

डॉ नन्द लाल भारती 13 .07.2014   

Monday, August 11, 2014

शब्द बाण /लघुकथा

शब्द बाण  /लघुकथा 
साहित्यिक संगोष्ठी अपने  यौवन से ढलान की और तीव्रता से बढ़ रही थी इसी बीच चेतमल बोले शब्दबुध्द जी मुझे भी कवितापाठ करना है।
शब्दबुध्द-सचिव से कहने का इशारा किये। 
चेतमल-अचेतमल   न देख रहे है न सुन सुन। 
शब्दबुध्द  सचिव महोदय से बोले -चेतमलजी  कवितापाठ करना चाहते है।
शब्दबुध्द का अनुरोध ना जाने क्यों अचेतमल  को गुस्ताखी लग गया।वे अपनी जबान रूपी  म्यान से ऐसे शब्द बाण का प्रहार कर बैठे   जैसे कोई राजा गुस्ताख़ को दंड देने के लिए तलवार का प्रहार कर दिया होरिटायर्ड  पी डब्लू डी के  इंजीनियर अचेतमल का घमंड अभी सातवे आसमान पर था वे  शब्दबुध्द बोले  सचिव नहीं मिस्टर मेरा नाम भी है। चेतमल  मुझसे डायरेक्ट  बात कर सकते है। आपको कहने की जरुरत नहीं।अभिमानी  रिटायर्ड  पी डब्लू डी के  इंजीनियर अचेतमल शायद  भूल गए  थे कि वे अब पी डब्लू डी के  इंजीनियर नहीं साहित्यिक संस्था   के सचिव की हैसियत से मंचासीन है।उनसे   सौ गुना बेहत्तर रचनाकार और सदस्य महफ़िल की  शोभा बढ़ा रहे है। जबकि शब्दबुध्द दशक भर सचिव के पद को गौरान्वित कर चुके थे। 
अचेतमल के असाहित्यिक व्यवहार को देखकर कानाफूसी होने  लगी  थी देखो  सचिव को सचिव महोदय  से सम्बोधित करना गुस्ताखी हो गया। संस्था ने सचिव  क्या बना दिया बन्दर के हाथ छुरी थमा दिया।ये क्या   साहित्य का भला करेंगे  ? 
डॉ नन्द लाल भारती 09 .08 .2014  

Wednesday, July 30, 2014

संस्कार /लघुकथा

संस्कार /लघुकथा 
गोधूलि बेला में एकदम उठे और कहाँ चले गए थे  ?
घूमने चला गया था। 
कहाँ ?
एम आर  टेन। 
घूमने गए थे चिंता लेकर आये हो 
चिंता की बात ही है।   दो बूढ़ी औरते चर्चारत थी,एक बोली बहन बेटा कह रहा की वह अब अपने हिसाब से रहेगा 
दूसरी बोली बहन तुम्हारे ऊपर मुसीबत मंडरा रही है। 
पहली बोली हां बहन। वृध्दा आश्रम की ओर  प्रस्थान करना होगा यही चिंता खाए जा रही है 
आपको कैसी चिंता 
यदि हमारे साथ ऐसा हो गया तो ?
हमारे साथ ऐसा हो ही नहीं सकता 
क्यों ?
क्योंकि आपने अपने बच्चो को शिक्षा ,नैतिक शिक्षा और संस्कार दिए है। संस्कारवान बच्चे  के लिए माँ-बाप  धरती के  भगवान होते है 
सच बच्चो को भले ही  विरासत में धन न मिले पर शिक्षा ,नैतिक शिक्षा और संस्कार तो मिलनी ही चाहिए यही संस्कार वृध्दा आश्रम की राह रोक सकता है। 

डॉ नन्द लाल भारती 30 .07.2014  

Saturday, July 12, 2014

पर्दाफाश /लघुकथा

पर्दाफाश /लघुकथा
देहात की प्रसूता की जान को बचाने के लिए ए पॉजिटिव  खून की तुरंत जरुरत है की उड़ती खबर सुनकर अमन प्रदेश के सबसे बड़े निजी अस्पताल, जो शहर से २५ किमी दूर था,जिसके मालिक चिकित्सा शिक्षा के फर्जीवाड़ा के केस में कई महीनो से जेल में है की और भागा। अमन को प्रसूता के सगे सम्बन्धी मुख्य द्वार पर मिल गए,जबकि अमन से  किसी प्रकार की कोई जान -पहचान ना थी । वे लोग अमन को पलको पर बिठा कर अस्पताल के लैब में ले गए ।अमन को देखते ही डॉ बोला जाओ कैंटीन से कुछ खा कर आओ
अमन - डॉ साहेब मैं घर से खाकर आ रहा हूँ आप तो तुरंत खून लेकर प्रसूता की जान बचाईये

डॉ -वह हो जायेगा पर कैंटीन से कुछ खा कर आओ
।आखिरकार अमन को जबरदस्ती अस्पताल की कैंटीन में भेज दिया गया ,जहां उससे फूल डिनर का भुगतान भी  लिया गया ।डिनर का बिल चुकाने के बाद अमन का खून लिया गया । ब्लड डोनेट कर देने दे बाद अमन को बीस रुपये का कूपन दिया गया  और कहा गया जाओ कैंटीन में कुछ पी लो
अमन बोला -डॉ यही कूपन पहले दे देते
। डिनर का रूपया तो मेरा बच जाता । कैसा रॉकेट चल रहा है डॉ ………?
प्रसूता का पति गिड़गिड़ाते हए बोला मेरी पत्नी और बच्चे को बचा लो डॉ साहेब
डॉ-कैश काउंटर से  रसीद लेकर आओ प्रसूता का पति रसीद दिखाते हुए बोला रसीद है मेरे पास साहेब।
डॉ -सचमुच गावड़े हो। अरे खून के  कीमत की रसीद।
प्रसूता का पति का  बाप बोला डॉ साहेब ये दान का खून है इसकी  कीमत।
डॉ-यहां कुछ मुफ्त का नहीं है।
आखिरकार प्रसूता के सगे   सम्बन्धियों ने मिलकर अपने अपने पॉकेट की निङ्गा झोरी कर रूपये जमा करवाये तब जाकर खून चढ़ाने की प्रक्रिया पूरी हुईप्रसूता के  बाप अमन के सिर  पर हाथ रखा कर बोले बेटा युग-युग जीओ]खूब तरक्की करो ,परमार्थ का काम तो कर ही रहे हो।  मेरी बेटी और उसके बच्चे का जान बचाने के लिए हमारा परिवार तुम्हारा कर्जदार रहेगा बेटा ।
अमन-बाबा मुझे बहुत दुःख है। प्रसूता  के   बाप कैसा दुःख बेटा ?
अमन -डोनेशन के खून की मुंह माँगी कीमत गरीब से वसूली जा रही   है इसका दुःख है बाबा। इस रॉकेट का पर्दाफाश कैसे  और कब होगा ?

डॉ नन्द लाल भारती 13 .07.2014   

Sunday, May 25, 2014

विश्वनाथ दर्शन / लघुकथा

विश्वनाथ दर्शन / लघुकथा
नाना क्या हुआ पंडितजी ने क्यों हाथ पर झपटा मारा है तनु पूछी।
दानपेटी में कुछ रूपया  डाल रहा था वही छीन लिया है पंडितजी ने।
तनु- पंडितजी छिना झपटी क्यों ?
पंडितजी- ये रूपया मंदिर के  जायेगा।
तनु-दानपेटी का रूपया कहा जाता है बतायेगे ?भगवान के  मंदिर में डकैती। नरक जाने की पूरी तैयारी कर बैठे है पंडितजी ? कशी विश्वनाथ बाबा सब देख रहे है।
मेरे नाना परदेस से आये है कशी विश्वनाथ के दर्शन करने क्या यादे दे कर भेज रहे हो ,पंडितजी ने  तो कान में जैसे रुई ठूस लिया।
बेटी ऐसे पंडा पुजारियों के  कारण तो लोग मंदिर जाने में खौफ खाते  है।
तनु- हां नाना बिलकुल ठीक कह रहे है इसीलिए तो हम लोग बनारस में रहकर भी नहीं आये  ,पहली बार आपके साथ आये तो देखो पंडितजी ने छिना -झपटी कर लिया। नाना मंदिर में भगवन के दर्शन की बजाय घर मंदिर ज्यादा बेहत्तर है। नाना बनारस के  ही संतशिरोमणी  रविदास ने कहा है मन चंगा तो कठौती में गंगा। 
हां बेटी बात तो सही है पर आस्था तो मंदिर से जुडी  है न।
तनु-आस्था का ही तो नाजायज फायदा ये लोग उठा रहे है। भगवान के घर में भी तनिक खौफ नहीं इन पंडा पुजारियों को।
हां बेटी भगवन और मंदिर को बपौती समझने वाले इंसान को  ही नहीं भगवान को धोखा देने वाले पंडा -पुजारी नास्तिक बनाने पर तुले हुए है। घर मंदिर ज्यादा बेहत्तर है ।
डॉ नन्द लाल भारती    25 मई2014   

Tuesday, April 22, 2014

लाश की कीमत/ लघुकथा

लाश की कीमत/ लघुकथा
मिसेज दमयंती दमयन्ती पलंग से नीचे पाँव रखते हुए बोली माया कितने दिनों के बाद आ रही हो। बेटी तुमको पता है मेरा घुठना पग-पग पर सवाल करता है।  गायब रहेगी तो मेरा  जैसे हो जायेगा।
माया मेम साहब पांच दिन ही तो हुए है।
मिसेज दमयंती-पांच दिन काम है क्या ? मेरी हलता पर तुझे तरस नहीं आता अगर मैं भी तुम्हारे जैसे करने लगी तो तुम्हारे हाथ क्या आएगा फिर  अपना रोना रोयेगी ,मुझे इमोशनल ब्लैक करेगी . जानती है तेरे पति में ऐब है तो छोड़ साले को रोज-रोज नरक की जिंदगी से छुटकारा पा ले ,बच्चो को पढ़ा -लिखा रही है,जितनी तेरी इनकम है तो अपने और बच्चो पर तो अच्छी ज़िन्दगी बिता सकती है। फिर तेरा पैसा छीन कर मारा पीटा है ना। जा फ्रिज में दूध है हल्दी डालकर गर्म करके एक गिलास पी ले।
माया नहीं मेम साहेब लफंडू लठैत मार नहीं है पैसा गहन सब बेच दिया है। एक नयी मुसीबत सिर  पर आ गयी है।
दमयंती-वह क्या .............?
माया -सासू।
मिसेज दमयंती-खबरदार सासु माँ को मुसीबत कही तो। सासू को अपनी माँ  समझो। माँ बाप धरती के भगवान होते है। उनकी सेवा करो खूब आशीर्वाद दुआ बटोरो।
माया- वही तो कर रही हूँ। गॉव की जमींन  बिक गयी पति का लात मुक्का खाकर बचाई अपनी कमाई डूब गयी फिर भी बुढ़िया वेल्टीलेटर से चिपकी है। डाक्टर ढाई  मांग रहा आपरेशन करने के लिए।
मिसेज दमयंती-क्या कह रही हो वेल्टीलेटर पर तुम्हारी सासु माँ है।
माया-जी मेम साहब।
मिसेज दमयंती-कब से।
माया- सप्ताह भर से।
मिसेज दमयंती-कही लांस की कीमत रो अस्पताल वाले नहीं वसूल रहे।
माया- काया कह रही है मेम साहेब।
मिसेज दमयंती-कौन से अस्पताल में  भर्ती है।
माया -सर्बिन्दो।
मिसेज दमयंती-डाक्टर विनोद खंडारी का अस्पताल है। देश और देश के भविष्य का दुश्मन है ये डाक्टर मेडिकल चिकित्सा परीक्षा घोटाला का मास्टर माइन्ड है। अभी जेल में है जानती हो ना।
माया -दुनिया जानती है ये तो।
मिसेज दमयंती-बेटी काम छोडो अस्पताल जाओ अपने पति से बोलो रूपये का इंतजाम हो गया है। वह डाक्टर से पक्का कर ले आपरेशन के बाद सासु माँ ठीक तो हो जाएगी। डाक्टर बोले हां तो बोलना मुझे गारंटी चाहिए।
माया मिसेज दमयंती- के बताये अनुसार अस्पताल गयी और अपने पति के सामने मिसेज दमयंती की कही बात तोते जैसे दोहरा दी। उसके पति की आज अपनी घरवाली की स्मझदृ पर गुमान हो आया वह भी डाक्टर के पास गया और अपनी घरवाली की कही बात तोते जैसे दोहरा दिया बस क्या आनन -फानन में डाक्टरों ने माया की सासु माँ को घंटे भर में मृत घोषित कर दिया जो सप्ताह भर पहले मर चुकी थी जिसे अस्पताल वाले लाश  की कीमत वसूलने के लिए वेल्टीलेटर पर ज़िंदा कर रखे थे। डॉ नन्द लाल भारती    22  अप्रैल 2014

Friday, April 4, 2014

जय -विजय /लघुकथा

जय -विजय /लघुकथा
कब  रिटायर हो रहे हो परवेश ?
 दर्द से मन नहीं भरा क्या ?  अब रिटायर करने की  जल्दी  सामंतो  ?
भला हमें  जल्दी क्यों होगी ?
किसी उच्च-स्व-जातीय रिश्तेदार को नौकरी मिलने की  ।
क्यों बोली से गोली मार रहे हो ?
हकीकत तो यही है ना  सामंतो . कितने षणयंत्र रचे गए फिर भी नौकरी पर काबिज हूँ
नौकरी से बेदखल  तो नहीं हुए ना।
योग्यता और संविधान के भरोसे टिका हूँ रिसते  जख्म  के दर्द पीकर अर्ध शासकीय नौकरी में।
जनरल मैनेजर नहीं बन पाने का मलाल तो होगा .
मलाल तो रहेगा। जातिवाद के पोषक दमनकारी आदमियत के दुश्मन ,योग्यता के बलात्कारियो का चक्रव्यूह तोड़ने में और वक्त लगेगा।
तब तक तुम्हारी कई पीढ़िया गल जायेगी परवेश।
सामंतो याद रखो इतिहास गवाह है दमनकारियों का नाश हुआ है।  भले ही मुझे  आगे नही बढ़ने दिया ,नित नए जख्म दिए ,झराझर आंसू दिए,बार -बार हार दिए हौशलापस्त नहीं हुआ पर जय-विजय हमारी ही हुई है परवेश गर्व से बोला।
सामंतो -सतयमेव जयते।
डॉ नन्द लाल भारती
   04
अप्रैल 2014

बाहरी /लघुकथा

बाहरी /लघुकथा
अटेन्डेन्ट -सर आप तो एकदम बाहरी हो गए।
कैसी  बात कर रहे हो लालू ?
आपके लिए दरवाजा बंद हो गया।
मुझ अदने के लिए तो विभाग का दरवाजा पहले से ही बंद है। तुम कौन से दरवाजे की बात कर रहे हो ?
सामने वाले की ,जिधर से एसी की हवा आ रही थी अ लपलपाती लू में आप तो पक जाओगे कच्ची केरी की तरह।
लालू जिसकी लाठी उसकी भैंस। मिस्टर अफसर को हर अघोषित लाभ और सुविधा का अघोषित अधिकार स्वजातीय बिग बॉस ने दे रखा है। मिस्टर अफसर दोनों हाथो से लूट रहे है। हमारा तो विभाग में कोइ गाड  फादर नहीं है इसलिए हमारी तबाही निश्चित है और हो रही है। हमें तो लाभ की तरफ देखना भी मना है। लालू हम तो पहले से बाहरी है और अब और अधिक हो गए।
लालू -सर आप भी तो अफसर है ?समझ गया।
क्या समझ गया लालू  ?
आप  उच्च जातीय गुट में फिट नहीं बैठते ना इसलिए बदनाम और चौतरफा नुकशान किया जा रहा है। किसी ने सच कहा है अंधा बांटे रेवड़ी अपने-अपने को देय। सर आपका अब निडर और बाहरी बने रहना ही उचित लगता है।
सलाह के लिए धन्यवाद लालू।
डॉ नन्द लाल भारती
   04
अप्रैल 2014






दहकती लू का दिया दर्द/लघुकथा

दहकती लू का दिया दर्द/लघुकथा
नारायण क्या खबर है ,खुश  हो ना ?
स जी सब बढ़िया है।  रही खुश नाराज होने की बात तो ,मेरे नाराज और खुश होने से क्या फर्क पड़ता है. जैसे पहे जैसे ही जी रहा हूँ दर्द का बोझ छाती पर लादे त्या साहेब।
कितने अफसर आये -गए कई तो साधारण ग्रेजुएट थे बिग बॉस हो गए तुम तो बहुत अधिक पढ़े लिखे योग्य हो। तुम्हारे साथ अत्याचार क्यों। …?
नारायण साहेब छोटी कौम का होने  का दंड मिल रहा है। यह विभाग हमारे जैसो के लिए नहीं बना है। इस विभाग में ऊपर जाने के लिए पहली योग्यता ऊँची जाति फिर ऊँची पहुँच।
सत्या -वाह रे शाइनिंग इंडिया कब तक शोषितो की तरक्की  कागजी घोडा बनी रहेगी।
नारायण देख रहे हैं शाइनिंग इंडिया की  स्वर्णिम आभा में दहकती लू का दिया दर्द भोग रहा हूँ। क्या यही तरक्की है....... …?
डॉ नन्द लाल भारती    04 अप्रैल 2014

Wednesday, April 2, 2014

संतोष की जड़/लघुकथा

संतोष की  जड़/लघुकथा
बुध्देश्वर आतंकित  क्यों कौन सी डर तुमको खाये जा रही है।
सिध्देश्वर क्यों न डर  लगे  वहाँ  जहां सामंतवाद- वंशवाद को  प्रोत्साहन और दमित का  दमन हो रहा हो ।
अभी तक सामंतवादी अफसरशाही का मन परिवर्तन नहीं हुआ क्या ?
कैसे कहूँ मेरे साथ तो कुछ अच्छा  नहीं हुआ जीवन के बावन वसंत तो बित चुके . आधे से अधिक कंपनी की  सेवा में पर आज भी वही दर्जा। लोगो का व्यवहार तो हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और है।
समझ गया तभी सामंतवादी प्रबंधन ने योग्यतानुसार पदोन्नति से वंचित हाशिये का आदमी बना कर रखा है । देख लिया  सुन और समझ भी लिया।
कैसे सिध्देश्वर   ?
दफ़तर की ड्योढ़ी चढ़ते ही वैसे भी सामंतवादी जहर की तासिर से वाकिब हूँ। बबूल के पेड़ की छांव होती है दमितों के लिए सामंतवादी हुकूमत और वही अभी यहाँ लागू है।कंपनी  के उद्देश्य समभाव के तो है पर सामंतवादी विषबेल रोप रखे है जिसकी वजह से तुम कराहे जा रहे हो।
सामंतवाद का  दर्द  अब  बर्दाश्त नहीं होता पर करे क्या ?
रावण को भी इस जहां से   रो-रो कर जाना  पड़ा है,विज्ञानं के युग में विष बो कर कब तक भय पैदा करेगे सामंतवादी। प्यारे    तुम्हारी चिंता जायज है पर तुम अपनी शक्ति का सम्मान करो बुध्देश्वर।
वही कर रहा हूँ तभी तो अस्तित्व है वरना ये  दमनकर्ता  नेस्तानाबूत कर दिए होते सिध्देश्वरबाबू
कलम में बहुत शक्ति है.टिके रहो संतोष की  जड़ पाताल जाती है बुध्देश्वर।
डॉ नन्द लाल भारती
   02
अप्रैल 2014

Friday, March 21, 2014

मौन मुहर /लघुकथा

मौन मुहर /लघुकथा
कल दफ्तर खुलेगा अटलेश्वर .
नई बात क्या कागज में तो हर छुट्टी के दिन दफ्तर खुलता है।
तुमको आना है।
क्यों.....?
निवार्चन अधिकारी की पाती आ चुकी है।
सिर्फ हमारे लिए तो आयी नहीं होगी।
तुम्हारी भी तो ड्यूटी लगी है . .
ड्यूटी लगने का ये तो मतलब नहीं कि पेट में भूख और पीठ पर घाव का बोझ लेकर छुट्टियो के दिन ड्यूटी करू ,हमारा भी घर परिवार है हैम भी नौकरी कर रहे है मेरे साथ अन्याय क्यों ?
छुट्टी के दिन भी ड्यूटी करना पडेगा।
आंसू पीकर। वो लोग कहाँ गए जो हर छुट्टी के दिन कागजी ड्यूटी और कागजी दौरा कर मोटी कमाई करते हैं ,विभागीय संसाधनो का भरपूर उपभोग भी। मैं ही क्यों कसाई के खूंटे पर बंधी गाय साहब ?
अटलेश्वर का दो टूक जबाब सुनकर एक मिनट के लिए स्व जातीय पक्षपात की विषबेल रोपने वालो की जीभ तालु में सट गयी पर दूसरे पल लग गयी देख लेने की मौन मुहर भी ।
डॉ नन्द लाल भारती 22 मार्च 2014

Monday, March 17, 2014

बिगुल /लघुकथा

बिगुल /लघुकथा
रामू तुम्हरारे चमन में अमन तप है ना।
शंका क्यों हंसराज ?
चहरे के पीछे का भय।
होली है भय में नहीं रंग में डूबिये जनाब।
डूबे है पर ये भय कब तक ?
जातिवाद ,नफ़रत ,पक्षवाद जब तक। अब तो भ्रष्ट्राचार के आरोप भी डंसने लगे है।
शोषित पर आरोप कौन ?
वही दबंग जो जातिवाद ,नफ़रत ,पक्षवाद को सींच रहे।
कंसराजो के रहते शोषित आदमी का उध्दार और देश का विकास कैसे होगा।
शोषित आदमी के उध्दार और देश के विकास के लिए बिगुल बजना चाहिए हंसराज
डॉ नन्द लाल भारती 19 .03 2014

Wednesday, March 12, 2014

विवाह की शर्त /लघुकथा

विवाह की शर्त /लघुकथा
हेलो …………।
जी नमस्कार। घोटाला दिल्ली से हूँ।
जी प्रणाम,आपका नाम याद है।
गलती के लिए माफी चाहता हूँ ,फोन करने में विलम्व हो गया।
कोइ बात नहीं फोन किये तो सही भले ही देर से किये। बताईये क्या समाचार है घर -परिवार में सब कुशल मंगल।
जी सब ठीक है आपसे जानना था।
क्या जानना चाह रहे है बड़े भाई ?
बिटिया बात हुई ?
देखो साहब मेरी बेटी मर्यादा का पालन करना जानती है। रही बात उसके हाँ ना की वो बाद की बात है।
विवाह के प्रस्ताव पर बिटिया मर्जी जानना चाह रहा था।
देखो साहब विवाह के स्थायित्व् के लिए शर्त नहीं समर्पण की जरुरत होती है। आपके बेटे में ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है। आपके बेटे ने जो मेरी बेटी के सामने परिवार चलाने ,आर्थिक बोझ उठाने और परिवार की सारी जबाबदारी उठाने की शर्त रखा है तो क्या आप बता सकते है यदि आपकी बेटियों के सामने आपके दामाद ऐसी शर्त रखे होते तो क्या ऐसी शर्ते आपकी बेटिया स्वीकार करती ................?
फिर क्या मोबाइल मौन हो गया।
डॉ नन्द लाल भारती
12 मार्च 2014

Thursday, February 13, 2014

हकभक्षी /लघुकथा

हकभक्षी /लघुकथा
क्यों चिन्ता ग्रस्त हो ?
दो पांव वाले जानवर हकभक्षी हो।
कर्म और भगवान् पर विश्वास रखो
कर्म तो ठीक है। कौन से   भगवान जो हथियारो से लैस है। अपनी रक्षा के लिए भागे भागे फिरते है क्या उनको आंसू पीने वालो का दर्द नहीं दिखाई देता।
क्यों नास्तिक हो रहे हो ?
हक़भक्षी ,कर्मकांडी ,रूढ़िवादी भेदभाव का नस्तर मारने से बढ़िया तो नास्तिक होना ही है।
ईश्वरीय सत्ता को क्यों चुनौती दे रहे हो ?
चुनौती नहीं  आडम्बर का  विरोध,जो आडम्बरो का विरोध किये है वही  नरोत्तम हुए और।
और क्या ?
जो भेदभाव का नस्तर मारे है ,रूढ़िवाद -जातिवाद का पोषण किये है वे हकभक्षी …………
डॉ नन्द लाल भारती

Thursday, January 30, 2014

डील/ लघुकथा

डील/ लघुकथा
हेलो  खूंखार आवाज़ से  सहम उठा।
कहा है जनाब ?
छुट्टी पर जा रहा हूँ ,लौटते ही दौरे पर आता हूँ . दो चार गवाह तैयार  रखना ,बयान बदलवाना है या एनकाउंटर।
जैसा चाहेगे वैसा हो जायेगा।
इसी में हम दोनों की भलाई है।
जी समझ गया।
पास की सीट पर बैठा युवक धीरे  से बोला अंकल पुलिस  वाले अंकल डॉन लगते है , कैसी डील कर रहे है  खचाखच भरी ट्रेन में।
हां बेटा यही लोग तो  है तो अपराधी ,नक्सलवादी और आतंकवादी बनाने की मशीन है।
डॉ नन्द लाल भारती १५,01.२०१४ 

वृक्षभक्षी /लघुकथा

वृक्षभक्षी /लघुकथा
बहुत उदास हो भौजाई क्या बात हो गयी ,गाव  की याद आ रहे है।
गाव  कैसे भूल सकता है।  जड़े तो वही है।
उदासी का कारण  .......?
देखो।
क्या ....... ?
ये बादाम का पेड़ कटवा दिया।  ठूँठ पर अगरबत्ती लगाकर आंसू बहा रही है।
कटवायी नहीं, बलिदान दिया गया है।
ये कौन सी मन्नत थी।
पडोसी …?
पडोसी को कौन सा नुक्सान हो रहा था ,फायदा ही था शुध्द ताजी हवा मिल रही थी।पेड़ के फायदे का मूल्यांकनकितना भी करो कम होता है ।
 उसकी हवेली ढँक रही थी पेड़ से।  पता उसकी तरफ गिरता था तो लगता था उसकी छाती पर पहाड़ टूट पड़ा हो कलह से बचने के लिए बादाम का  बलिदान दे दिया ।
एक पेड़ सौ पुत्र सामान ,पडोसी नहीं समझा ,पडोसी है  या वृक्षभक्षी।
 डॉ नन्द लाल भारती  12.01.2014


Wednesday, January 29, 2014

कैसा भेद /लघुकथा

कैसा भेद /लघुकथा
श्रमवीर ये कैसा भेद ?
किस भेद की बात  कर रहे हो दरविंदर ?
दलित और पददलित के भेद का ।
रोज देख रहे हो ,सुन रहे हो ,पत्थराई आँखों का  दर्द ,नहीं समझ सके आज तक ।
क्या  और कहाँ ?
आसपास,दफ्तर,  बूढ़े समाज में।
आसपास से मतलब आपके साथ भी ।
हम कहाँ अलग है ,सच है प्यारे। अहित की साजिश ,अपमान,भेदभाव ,अवमूल्यन दलित  जीवन के रिसते दर्द हैं। पददलित होने पर गुंजाईश रहती है। दलित के साथ पद दलित पर सम्भावनाये और अधिक बढ़ जाती है शोषण उत्पीड़न दमन की ।
यानि चौतरफा दर्द।
हां दरविंदर ,यही दलित और देश का दुर्भाग्य है।
श्रमवीर बाबू  ये भेद तो क़त्ल है सभ्य मानव समाज और देश की आत्मा का।  
 डॉ नन्द लाल भारती 30 .01  .201४ 

Tuesday, January 28, 2014

मौन ,उदासी और सवाल /लघुकथा

मौन ,उदासी और  सवाल /लघुकथा
स्थांतरण और रिटायरमेंट के बीस साल बाद फ़रिश्ते की तरह अचानक प्रगट हुए देखकर कर्मवीर पांव छूटे हुए पूछा अस्लाम साहब। ……?
अस्लाम साहब-पहचान लिए कर्मवीर ,कैसे हो माय ब्वाय ?
बहुत बढ़िया  साहब . इतने में पूरा दफ्तर इकट्ठा हो गया, और सबने अस्लाम साहब को पलको पर बिठा लिया। अपने अधीनस्थ ज्वाइन किये कर्मचारियो को उच्च पदो पर देख कर खुश हुए। कर्मवीर से मुखातिब होते हुए पूछे  कर्मवीर तुम ?
कर्मवीर से सवाल छीन कर दूसरे अधिकारी बोले इसका भी प्रमोशन हो गया है।
अस्लाम साहब -योगयता को देखते हुए तो बहुत आगे कर्मवीर को जाना था।
कर्मवीर आपक ही डायलॉग है साहब -ये इण्डिया है प्यारे यहाँ बहुत सी बातों का फर्क पड़ता है। इस अंडरटेकिंग कंपनी में उसी  फर्क ने  मेरे कैरिअर का क़त्ल किया है। मसलन -ऊँची जाती उंच पहुँच और ये दोनों योगयताए मेरे पास नहीं है। इसी अयोग्यता के कारण मैं आगे नहीं जा सका।
कर्मवीर की पीड़ा सुनकर अस्लाम साहब के माथे पर मौन,उदासी और सवाल की तड़ित रिसने लगी थी।
डॉ नन्द लाल भारती 28 .01  .201४