Tuesday, September 28, 2010

dhunaa

धुँआ ..
रामलाल-भईया कैसे है ? उनके फेफड़े की बीमारी आपरेशन के बाद फिर तो नहीं उभरी ना ?
तन्मय- उभर जायेगी ,फिर भगवान नही नहीं पचा पायेगे. दारु गंजे के जश्न में ऐसे ही डूबे रहे तो . 
रामलाल- अपने बाप के बारे में ऐसा  क्यों कह रहे हो बेटा ?
तन्मय- क्या कहू चाचा ? दो-दो आपरेशन हो गया पेट का , पर गांजा छुटता नहीं .बेटे -बहू पोते-पोती को तो पहले ही चिलम पर रखकर उड़ा चुके है . अब तो बेटी -दमाद ,नाती-नातिन को भी धुएं  में उड़ा रहे है ,गांजे की मस्ती में .
रामलाल-क्या धुएं के सुख में ज़िन्दगी उड़ा  रहे है भईया ?  नन्दलाल भारती.. २८.०९.२०१०

Sunday, September 19, 2010

PARSAAD

परसाद ..
आओ बच्चो आरती कर लो . पूजा हो गयी .
चलो माँ बुला रही है .
आरती का समय हो गया क्या ..?
हां बनती,बबली चलो. माँ बुला रही है ना .
माँ-बाप के साथ बच्चो ने आरती किया. माँ ने बच्चो को चना -चिरौंजी का परसाद दिया. प्रसाद माथे चढ़ाकर मुंह में डालते हुए बनती बोला माँ आरती के बा परसाद जरुरी होता हा क्या..?
हां -पूजा का परसा जीवन के अच्छे संस्कार की तरह है बेटा .
बनती- माँ मै भी बाँटूगा  ....नन्दलाल भारती ... १९.०९.२०१०

MAANG

मांग ..
यतन बाबू  खुद काफी पढ़े लिखे सम्मानित व्यक्ति थे .उनकी बिटिया भी माँ-बाप का नाम रोशन कर रही थी . बेटी के ब्याह की चिंता उन्हें सताने लगी थी. सुयोग वर का पता लगते  ही वे ऊँची उड़ान भरने वाली शिक्षा के साथ सामाजिक संस्कार में महारथ  हासिल करने वाली बेटी की जन्म पत्री वर पक्ष  की ओर भेजकर आश्वस्त हो गए. बेटी के हाथ जल्दी पीले करने के सपने बुनने लगे क्योंकि उनका मानना था की कोई भी सभ्य-संस्कारवान सामाजिक व्यक्ति बिटिया को ख़ुशी-ख़ुशी बहूरानी  बनाने को तैयार हो जायेगा पर क्या भ्रम टूट तीसरे दिन इंकार हो गया.शायद बाप का ओहदा दहेज़ की मांग पूरी करने लायक नहीं था ...
. नन्दलाल भारती... १९.०९.२०१०

DALAAL

दलाल ..
कहा जाना है साहब ? अवंतिका से जा रहे है क्या ? टिकट कन्फर्म है ?
क्यों पूछताछ कर रहे हो भाई ......

मुसीबत में ना फंसो इसलिए .
कैसी मुसीबत ?
देखिये इन साहब को अलाल से टिकट लिए है . ट्रेन आने के समय पता चला है की टिकट इटिंग में है . अपना टिकट देख लो साहब . दो सौ रुपये लगेगे कन्फर्म करवा दूंगा ..

मेरा कन्फर्म है .
कन्फर्म कैसे हो गया चार वेटिंग है . टिकट और दो सौर रूपया दो मै कन्फर्म टिकट लता हूँ.
भाग रहा या पुलिस बुलाऊ . इतना सुनते ही वह ठग भीड़ में गायब हो गया .....नन्दलाल भारती .. १९.०९.२०१० 

BHEEKH

भीख ..
एक रूपया दे दो जोज की भूख लगी है कहते हुए भिखारी ने हाथ फैला दिया .
पराठे खा लो भूख लगी है तो .
पराठे नहीं .
क्यों मै भी तो खा रहा हूँ.
एक रूपया दे दो ..
खुले नहीं है 
कंजूस भीख नहीं दे सकते कहते हुए भिखारी बालक आगे चला गया .... नन्दलाल भारती ...१९.०९.२०१०

FAISALA

फैसला ..
एक दिन श्रेष्ठता और योग्यता में विवाद हो गया . श्रेष्ठता के अभिमान की बिजली योग्यता के ऊपर गिरने लगी . योग्यता ने नम्रता पूर्वक कहा आग मत लगाओ आओ फैसले के लिए पञ्च-परमेश्वर के पास चले. आना-कानी के बाद आखिरकार श्रेष्ठता मान गयी .पंचो ने योग्यता को सर्वश्रेष्ठ माना . अंततः श्रेष्ठता ने योग्यता के महत्व को स्वीकार कर पश्चाताप करने लगी क्योंकि फैसला समझ में आ गया था . श्रेष्ठता को पश्चाताप की अग्नि में जलाते हुए देखकर योग्यता ने गले लगा लिया .....नन्दलाल भारती ..१९.०९.२०१०

Saturday, September 18, 2010

BOOKH

भूख ..
देवकरन नशे  की हालत में ठुसते जा रहे थे जो कुछ खाना था ,यान्ति परस चुकी थी . देवकरन  खाने के बाद थाली चाटने लगा तो दयावंती से नहीं रहा गया वह बोली और रोटी बना दू क्या.....? 
देवकरन -नहीं रे तू ये बर्तन रख और सो जा.......... लड़खड़ाते हुए देवकरन  बोला और चारोखाना चित हो गया. कुछ देर के बाद कराहने लगा . बेचारी दयावंती हाथ पाँव दबाने लगी. हाथ पाँव दबाते ही खरार्ते मरने लगा.   जब दयावंती  के हाथ थम जाते  तो वह कराहने लगता , बेचारी रात भर देवकरन की सेवासुश्र्खा में लगी  रही. भोर हुई  नशा तनिक उतारी तो वह  दयावंती को उंघती देखकर  बोला  राजू की माँ रोटी खा ली .
दयावंती-तुमने खा लिया ना-----
देवकरन -मैंने तो खा लिया ..
दयान्ति-समझो मैंने भी खा लिया ....
देवकरन - मतलब--------
दयावंती - औरत हूँ ना बच गया तो खा लिया नहीं बचा तो नहीं खायी . औरत को भूख नहीं लगती ना...
इतना सुनते ही देवकरन की सारी नशा उतर गयी ..............नन्दलाल भारती....१८.०९.२०१० 


 

Thursday, September 16, 2010

BETI KA SUKH

बेटी का सुख ..
क्या औलाद हो गयी है आज के स्वार्थी  जमाने की , बताओ तीन-तीन हट्टे -कटते बेटे,अच्छी खासी सरकारी नौकरी और बहो की भी सरकारी नौकरी पर तोता काका को समय पर पानी एने अल नहीं . देखो बेचारे अस्सी साल की उम्र में घर छोड़कर जा  रहे थे .
खेलावन काका की बात सुनकर देवकली  काकी बोली  देखो एक  बेटी अपनी भी है चार-चार बच्चो को पाल रही है, दफ्तर जाती है, बिटिया जरा भी तकलीफ नहीं पड़ने  देती . सारी सुख सुविधा का ख्याल रखती है . एक वो है, तोताजी ,बेटा बहू नाती पोतो से भरा पूरा परिवार, अपार धन सम्पदा के बाद भी दाना-पानी को तरस रहे है . एक बेटी के माँ-बाप हम है ..............नन्दलाल भारती ... १६.०९.२०१०

Tuesday, September 14, 2010

PARIVARTAN

परिवर्तन ..
सूरजनाथ - सुदामा  सुना है धर्म बदलने जा रहे हो .
सुदामा-ठीक सुना है बाबू.......
सूरजनाथ- क्यों सुदामा  ?
सुअमा-कब तक जातिया,छुआछूत, उंच-नीच, सामाजिक उत्पीडन का जख्म ढोऊंगा ? मुझे समांनता का हक़ तो भारतीय रुढ़िवादी  समाज में   मिलने से रहा..
सूरजनाथ- ऐसा क्यों सोचते हो ?  धर्म परिवर्तन पाप है .
सुदामा-जहा आदमी को आदमी नहीं समझा जाता हो वहा रहना पाप है न की धर्मपरिवर्तन . मरने से पहले सामाजिक समानता की प्यास  बुझाना चाहता हूँ.
सूरजनाथ-क्या इसके लिए धर्म परिवर्तन जरुरी हो गया  है ?
सुदामा- हां बाबू . क्या उच्च वर्ण  के लोग जातिवाद  की मजबूत दिवार  तोड़ पायेगे ?  बाबू जब तक उच्चवर्ण के लोग जातीय दंभ की दिवार को ढहाकर सामाजिक समानता की पहल नहीं करते है . सामाजिक समानता का जीवंत उदहारण नहीं बनते, तब तक धर्मपरिवर्तन पर रोक संभव नहीं ..
सूरजनाथ- हां सुदामा ठीक कह रहे हो भारतीय समाज की रक्षा के लिए जातिवाद के किले को ढहाना ही पड़ेगा . जातिवाद का किला ढहते ही धर्म परिवर्तन पर विराम लग जायेगा ...नन्द लाल भारती .. १४.०९.२०१० 

Sunday, September 12, 2010

KASAM

कसम ..
रामू पेट में भूख और दिल में अरमान पालकर पक्के इरादे के साथ शिक्षा हासिल किया था . रामू अधिक पढ़ा लिखा होने के साथ ही काम भी इमानदारी और पूरी निष्ठां के साथ करता था . उसे उम्मीद थी की वह कठिन  मेहनत और शिक्षा के बलबूते ऊँची उड़ान भर लेगा   , लेकिन ऐसा नहीं होने दिया कमजोर का हद मारने वालो ने . एक दिन सुहाने मौसम का जश्न मन रहा था कई बोतलों की सीले टूट चुकी थी कई मुर्गे उदरस्थ हो चुके थे. जाम का जश्न सर पर चढ़कर बोल रहा था . अफसर चिकंकुमार अफसरों के सुप्रीमो की गिलास में नई बोतल का दारू उड़ेलते हुए बार सर रामू का पर नहीं कतरे तो बहुत आगे निकल जाएगा .
सुप्रीमो-कभी नहीं--- उखड़े पाँव रामू चौथे दर्जे का है चौथे दर्जे  से आगे नहीं बढ़ पायेगा चिकन कुमार  मै कसम खाता हूँ ....
बस क्या इतने में मजे थपथपा   उठी ....नन्द लाल भारती ...१२.०९.२०१०

Wednesday, September 8, 2010

EEMAAN

ईमान  ..
सुबह गदराई हुई थी लोग खुश थे क्योंकि उनके सूखते धान के खेत लहलहा उठे थे बरसात का पानी पाकर. इसी बीच राजा बदमाश आ धमाका अपने कई साथियो के साथ . राजा बदमाश और उसके साथियों को देखकर ईमानदेव बोले कैसे आना हुआ राजा बाबू.
राजा-नाम तो ईमानदेव है बात बेईमानो जैसी कर रहे हो . गाय तुम्हारे खूंटे पर वापस बाँध गया था भूल गए . पैसा वापस लेने आया हूँ.
ईमानदेव-वचन दिया हूँ  तो पूरा  करूगा थोडा वक्त दो . ऐसे तो तुम नाइंसाफी कर रहे हो. चार माह गाय का दूध खाने के बाद मरणासन्न अवस्था में मेरे दराजे बाँध गए. कोई इज्जतदार और समझदार आदमी तो ऐसा नहीं करता जैसा तुमने किया है राजाबाबू.
राजा-ईमानदेव मुझे लेने आता है कहते हुए ईमांदे का क्साला पकड़ लिया .यह देखकर असामाजिक लोग इकट्ठा होकर ठहाके मारने लगे थे ,राजा मारपीट पर उतर आया . ईमानदेव का दमाद कैलाश लहुलुहान होगया .
राजा के खूनी तांडव को देखकर ईमानदेव  की पतोहू  दुर्गा उठ खड़ी हुई हाथ में चप्पल लेकर इतने में राजा बदमाश और उसके साथी पत्थर फेंकते भागते नज़र आये. कुछ देर में पूरी बस्ती के लोग इकट्ठा हो गए. बस्ती के लोग ईमानदेव को पैसा न देने की सलाह देने लगे परन्तु उखड़े पाँव  ईमानदेव का ईमान मुस्करा रहा था . नन्दलाल भारती ... ०८-०९-२०१० 

Tuesday, September 7, 2010

AIDAS

एडस ..
भ्रष्टाचारी,ठग बेईमान ,दगाबाज किस्म के लोग कामयाबी पर जश्न मनाने में लगे रहते है .कर्मठ,परिश्रमी, उखड़े पाँव नेक लोग आंसू से रोटी गीली करते रहते है , जबकि जगजाहिर है की दगाबाजी से खड़ी की गयी दौलत की मीनार ज्वालामुखी है . मेहनत सच्चाई से कमाए गए चाँद सिक्के भी चाँद की शीतलता देते है. सकून की नींद देते है . कहते हुए  बाबा शनिदेव  धम्म से टूटी काठ की कुर्सी में समा गए .
जगदेव-बाबा दगाबाज लोग पूरी कायनात के लिए अपशकुन हो गए है . बाबा ये दगाबाज बेईमान मुखौटाधारी आदमियत के विरोधी लोग समाज और देश की तरक्की की राह में एडस  हो गए है .
शनिदेव -बेटा वक्त गवाह है दगाबाज खुद की जिन्दा लाश ढ़ो-धोकर थके है. खुद के आंसू की दरिया में डूब मरे है . जमाना दगाबाजो के मुंह पर थूका है और थूकेगा भी . नन्द लाल भारती ... ०७.०९.२०१०

 

Saturday, September 4, 2010

VRIDHA AASHRAM

वृद्धा आश्रम ..
बूढ़े माँ बाप वृद्धा आश्रमो  की डगर  पर की खबर पर देवकीनन्दन  की निगाह थम गयी और उनकी आँखों से आंसू लुढ़कने लगे . देवकीनन्दन  की दशा देखकर दमयंती बोली क्यों जी क्या हो गया कोई बुरी खबर अखबार में छपी है क्या ?
देवकिनंदन -बहुत बुरी खबर ...
बूढ़े सास ससुर की बातचीत सुनकर रोशनी आ गयी और बोली बाबूजी क्या हो गया आपकी आँखों में आंसू ?
दमयंती ने बहू के स्समाने अखबार रख इया . इतने में राजनारायन आ गया ग़मगीन माँ बाप को देखकर रोशनी से बोला ये क्या चिराग की मम्मी ----
रोशनी ने अखबार की खबर की ओर इशारा किया .
राजनारायन-पिताजी आँखों में आंसू क्यों ?
देवकीनंदन -बेटा डर गया था कुछ पल के लिए ...
रोशनी बाबू जी मेरे जीते जी तो ऐसा नहीं हो सकता .
राजनारायन-पिताजी रोशनी ठीक कह रही है .
चिराग-मम्मी दाजी दादीजी के नाश्ते का समय हो गया जल्दी   करो ..
रोशनी- हां मुझे याद है .
देवकीनंदन और दमयंती एक सर में बोले सदा खुश रहो मेरे बच्चो....नन्दलाल भारती -- ०४.०९.१०

Thursday, September 2, 2010

chhoori

छूरी ..
अभिमान आदमी को खा जाता है .कंस ,हिरंयाकुश एव अन्य अभिमानियो के अभिमान के नतीजे को जानते हुए भी हलाकू साहब के सर चाहकर बोलता था अभिमान. हलाकू साहब की कीमत ने साथ दिया वे तरक्की करते-करते बड़े जिम्मेदार पड़ पर पहुँच गए पर उन्हें पड़ की गरिमा से तनिक सरोकार न था, हलाकू साहब की तरक्की दूसरो के लिए खजूर की छाव साबित हो रही थे और व्यवहार बबूल की छाव . हलाकू साहब पदोन्नति से ओवर लोड होकर आपा खोने लगे थे जैसे पांच किलो की प्लास्टिक की थैली में पच्चीस किलो का वजन . हलकू साहब की आदत से छोटे-बड़े सभी परिचित थे . एक दिन अक्षरान्शबबू ने महीनो से लंबित अपने भुगतान के लिए अनुरोध क्या कर दिया जैसे कोई भारी अपराध  कर दिए. हलकू साहब अक्षरंश्बाबू के अनुरोध को रौदते हुए बड़ी बदतमीज़ी से बोले तुम्हारा भुगतान अब नहीं हो सकता जो करना चाहो कर लेना .हलकू साहब की अभद्रता एव अमर्यादित धौंस से अक्षरंश्बाबू के माथे से पसीना चूने लगा क्योकि उन्हें अति आवश्यक कार्यवस   रुपये की शख्त जरूरत थी .अक्षरंश्बाबू की रोनी सूरत देखकर सहकर्मी एक स्वर में बोल उठे हलकू साहब की पदोन्नति क्या हुई वे तो कसाई की छुरी हो गए ... नन्दलाल भारती ... ०२.०९.२०१०
 

Wednesday, September 1, 2010

AATM HATYA

आत्मह्त्या ..
परसुदादा आत्महत्या कर लिए , यह खबर बस्ती के किसी व्यक्ति के गले नहीं उतरी . नहीं दोस्तों के नहीं दुश्मनों के  ही . परसुदादा की मौत का रहस्य तब उजागर हुआ जब उनके मझले भाई करजू  के समधि दूधनाथ और दमाद प्रभू ने परसु दादा  और उनके तीनो भाईयो के नाम चौदह साल  पहले खरीदी गयी जमीन पर कब्जा कर लिए . खेती की जमीं पर कब्जा के बाद प्रभू का हौशला और बढ़ गया वह दरसु के घर पर भी कब्जा जमाने के लिए  क़ानूनी दावपेंच  चलने लगा . प्रभू के अन्याय को देखकर बस्ती के कुछ लोग दरसु के साथ खड़े हो हो गए. बस्ती  वालो की वजह से प्रभू दाल गलती ना देखकर  बोला दरसुवा  तुमको तो ज़मीन में गड़वा  दूंगा . तेरे बड़े भाई परसुवा की तरह तुमको पेड़ पर नहीं लटकाऊंगा याद रखना कहते  हुए वह दलबल के साथ चला गया . परसूदादा के मौत की हकीकत से बीस साल बाद रूबरू होकर दरसु और उसके परिवार वाले ही नहीं पूरी बस्ती के लोग रो पड़े ... नन्दलाल भारती -- ०१.०९.२०१०