Thursday, August 30, 2012

बैंक एकाउंट /लघुकथा

बैंक एकाउंट /लघुकथा गीता-सुदेश के पापा लोन  तो मिल जायेगा ना.........?
श्याम-उम्मीद तो है पर..........
गीता -पर क्या .......?
श्याम-बैंक एकाउंट तो खुल जाए |
गीता-
बैंक एकाउंट  खुलने में अड़चन आ रही है क्या ..?
श्याम-हां |
गीता-क्यों ...? सब तो आपके नाम है - बिजली कनेक्शन,पैन कार्ड ,वोटर आईडी और क्या चाहिए ?
श्याम-ये सब तो है पर   विटनेस नहीं है |
गीता -क्या ये दस्तावेज कम है
बैंक एकाउंट खोलने के लिए ........?
श्याम-कम है  ना तभी तो बैंक वाले नहीं मान रहे ?
गीता -आतंकवादियों के खाते खुल जाते हैं, पासपोर्ट बन जाते है अरबो का लेनदेन हो जाता है, विदेश बैंको के खजाने भरे जा  चुके  है| आम आदमी का बैंक एकाउंट नहीं खुल पा रहा है 
वाह रे सरकारी कानून कायदे और पालन करवाने वाले लोग ......?
नन्द लाल भारती
३१.०८.2012




Sunday, August 5, 2012

ख़ामोशी (लघुकथा )

ख़ामोशी (लघुकथा )
अधिकारी और दो सहायक अधिकारीयों ने  दो लाइन के वाक्यविन्यास का पोस्टमार्टम ऐसे किये जैसे कोई भाषा वैज्ञानिक | आखिर में अधिकारी के अंगुली सयाजी पर थम गयी |
अधिकारी शायाजी और सयाजी लिखाकर पूछी ज्ञानप्रकाश कौन सही है ?
ज्ञानप्रकाश -सयाजी ...........
अधिकारी -तुमने लिखा है इसलिए ?
ज्ञानप्रकाश -नहीं, सही को सही कह रहा हूँ | बिते ज़माने में सयाजी एक राजा थे उनके नाम पर संसथान है |
ज्ञानप्रकाश का सच अधिकारियो के अभिमान पर जैसे चोट कर गया| ज्ञानप्रकाश का ज्ञान उन्हें गुस्ताखी लग रही थी |ज्ञान प्रकाश बेख़ौफ़ बोला गुस्ताकही माफ़,छोटा कर्मचारी ज्ञानवान  हो सकता है | उसे सही गलत की समझ हो सकती है| ज्ञानप्रकाश की बात सुनते ही कुछ पल के लिए  पसर गयी खामोशी...........
नन्द लाल भारती ...०५.०८.२०१२