Sunday, August 5, 2012

ख़ामोशी (लघुकथा )

ख़ामोशी (लघुकथा )
अधिकारी और दो सहायक अधिकारीयों ने  दो लाइन के वाक्यविन्यास का पोस्टमार्टम ऐसे किये जैसे कोई भाषा वैज्ञानिक | आखिर में अधिकारी के अंगुली सयाजी पर थम गयी |
अधिकारी शायाजी और सयाजी लिखाकर पूछी ज्ञानप्रकाश कौन सही है ?
ज्ञानप्रकाश -सयाजी ...........
अधिकारी -तुमने लिखा है इसलिए ?
ज्ञानप्रकाश -नहीं, सही को सही कह रहा हूँ | बिते ज़माने में सयाजी एक राजा थे उनके नाम पर संसथान है |
ज्ञानप्रकाश का सच अधिकारियो के अभिमान पर जैसे चोट कर गया| ज्ञानप्रकाश का ज्ञान उन्हें गुस्ताखी लग रही थी |ज्ञान प्रकाश बेख़ौफ़ बोला गुस्ताकही माफ़,छोटा कर्मचारी ज्ञानवान  हो सकता है | उसे सही गलत की समझ हो सकती है| ज्ञानप्रकाश की बात सुनते ही कुछ पल के लिए  पसर गयी खामोशी...........
नन्द लाल भारती ...०५.०८.२०१२

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