Wednesday, July 30, 2014

संस्कार /लघुकथा

संस्कार /लघुकथा 
गोधूलि बेला में एकदम उठे और कहाँ चले गए थे  ?
घूमने चला गया था। 
कहाँ ?
एम आर  टेन। 
घूमने गए थे चिंता लेकर आये हो 
चिंता की बात ही है।   दो बूढ़ी औरते चर्चारत थी,एक बोली बहन बेटा कह रहा की वह अब अपने हिसाब से रहेगा 
दूसरी बोली बहन तुम्हारे ऊपर मुसीबत मंडरा रही है। 
पहली बोली हां बहन। वृध्दा आश्रम की ओर  प्रस्थान करना होगा यही चिंता खाए जा रही है 
आपको कैसी चिंता 
यदि हमारे साथ ऐसा हो गया तो ?
हमारे साथ ऐसा हो ही नहीं सकता 
क्यों ?
क्योंकि आपने अपने बच्चो को शिक्षा ,नैतिक शिक्षा और संस्कार दिए है। संस्कारवान बच्चे  के लिए माँ-बाप  धरती के  भगवान होते है 
सच बच्चो को भले ही  विरासत में धन न मिले पर शिक्षा ,नैतिक शिक्षा और संस्कार तो मिलनी ही चाहिए यही संस्कार वृध्दा आश्रम की राह रोक सकता है। 

डॉ नन्द लाल भारती 30 .07.2014  

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