इकलौती बहन /लघुकथा
गीता,सुरेखा,सुलोचना और मुन्नी आंटी फुटपाथ पर खड़े -खड़े जैसे चारो युगो के मुद्दो पर विमर्शरत थी। इसी बीच माध्यम कद-काठी का आदमी विमर्शरत महिलाओ के सामने सेगुजरा । उस व्यक्ति की ओर अंगुली दिखाते हुए सुरेखा बोली -अभी जो आदमी गया है, उसके चलने के अंदाज से कोई परिचित लग रहा था।
सुलोचना-दीदी पहले बताती तो आगे बढ़ कर पूछ भी लेती अब तो वह आदमी दूर निकल गया।
मुन्नी आंटी- लौटने का इन्तजार करना है क्या ?
सुरेखा-अब वापस लौट कर आने वाला तोनहीं है क्या इन्तजार करना। चलो भजन में मिलते है। इसी बीच गीता ने अपने पड़ोस वाली खडूस सास का मुद्दा उछाल दिया ,मुददा परत दर परत द्रोपती की साड़ी हो गया। इसी वह आदमी आता हुआ दिखाई पड गया, सुलोचना बोली दीदी आपके चाहने वाले ने दिल की आवाज़ सुन ली है देखो आ रहा है।
सुरेखा -अरे हां वह पास आँख फाड़-फाड़ कर निहारने लगी। इतने में वह आदमी आ गया। सुरेखा एकदम उसके आगे खड़ी होकर बोली आप राजसिंघ हो क्या ?
तुम सुरेखा हो क्या ? राजसिंघ बोला।
सुरेखा -अंकल आंटी सब ठीक है ?
राजसिंघ- माँ बीमार रहती है पिताजी स्वर्गवासी हो गए।
सुरेखा -अंकल की मौत का सुनकर बहुत दुःख हो रहा है।
मुन्नी आंटी - जो आया है सबको जाना है ,भगवान उनकी आत्मा को शान्ति बख्शे।
सुरेखा -हां आंटी ठीक कह रही हो। अच्छा राज भैया नौकरी धंधा कैसा चल रहा है।
राजसिंघ- सुरेखा बहन हम चारो भाई सरकारी नौकरी में है ,सब अपने-अपने बालबच्चों के साथ बंगला गाड़ी और दुनिया की सारी सुख सुविधाओ के साथ मजे में है।
सुरेखा -छुटकी रानी भी तो बालबच्चेदार हो गयी होगी।
राजसिंघ-रानी अपनी नसीब में शादी का सुख नहीं लिखवा कर लाई है।
सुरेखा -क्या ?
राजसिंघ-हां बहन।
सुरेखा - कर्म और फ़र्ज़ को विसार कर नसीब के आसरे बैठ गए तुम चारो।इसी गम अंकल चल बसे आंटी बीमार रहती है क्या ?
राजसिंघ-क्या करे रानी की नसीब में शादी नहीं लिखी है।
सुरेखा - वाह रे कलयुग बाप मेहनत मज़दूरी करके तुम भाई -बहन को उच्ची शिक्षा दिए। आज तुम चारो भाई दुनिया का हर सुख भोग रहे हो,इकलौती बहन का ब्याह नसीब पर छोड़ दिए , यह तो तुम चारो भाइयो के लिए चुल्लू पानी में डूब मरने वाली बात है कहते हुए सुरेखा ने मुंह मोड़ लिया और राजसिंघ कुछ कदम चलकर कालोनी में समा गया।
डॉ नन्द लाल भारती 27.10.2014
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