Friday, November 20, 2015

नरपिशाच/लघुकथा

नरपिशाच/लघुकथा 
देवकी चाची-बहू आपरेशन की  तारीख डाक्टर ने दे दी क्या ?
गीता-आपरेशन कराना ज़िन्दगी से खिलवाड़ है। 
देवकी चाची दूसरे डाक्टर की सलाह ले ली होती,पहले भी चार-चार ऑपेरशन हो चुके है।बार-बार घाव पक रहा है ।  आजकल डाक्टरों पर आँख बंद कर भरोसा करना मौत के मुंह में खुद को धकेलना है। 
गीता- दिखा दी । 
देवकी चाची-किसको ?
गीता-फैमिली डाक्टर को। 
देवकी चाची-क्या आपरेशन जरुरी है क्या कहा डाक्टर साहेब  ने ?
गीता-फैमिली डाक्टर ने एक सप्ताह की दवाई दिया है,दो दिन में मवाद बंद हो गया है,दर्द भी बहुत कम हो गया है। आपरेशन जरुरी नहीं  है। डाक्टर ने दवा गलत दिया था ताकि घाव सूखे नहीं शरीर सूजा रहे ताकि मजबूर होकर आपरेशन करवाना पड़े। 
देवकी चाची-मतलब कमाई के लिए मरीज का वध । 
गीता -यही समझ लो चाची,ज़िन्दगी भर के लिए एक डाक्टर का दिया दर्द पीकर अपाहिज सी ज़िन्दगी जी  रही हूँ। 
देवकी चाची-बदलते समय में आँख बंद कर एक डाक्टर पर  विश्वास करना अपने जीवन से खिलवाड़ करना  है क्योंकि भ्रष्ट्राचार और अवैध कमाई की ललक में  कुछ  डाक्टर -भगवान से नरपिशाच बन गए  है | 
डॉ नन्द लाल भारती
21 .11 .2015










Thursday, November 19, 2015

मृत्युभोज/लघुकथा

मृत्युभोज/लघुकथा 
लौट आये …?
भाग्यवान लौटने के लिए ही गया था ?
नाराज क्यों हो रहे हो ?
तुमसे नाराजगी  कैसी  ?
खाना खाकर आये हो की नहीं  ?
जी बिल्कुल नहीं। 
क्यों खाना अच्छा नहीं था। 
भाग्यवान तेरहवीं के खाने में क्या अच्छा देखना ?
खाए क्यों नहीं ?
कोई पहचानने वाला नहीं था। खाना तो बहुत अच्छा था,ऊपर से बुफे था,वहाँ तो लग ही नहीं रहा था तेरहवीं का भोज है।
तेरहवीं का भोज वह भी बुफे,क्या बात कर रहे हो जी ?
जी मुझे तो लगा ही नहीं कि एक बेटा बाप की तेरहवीं कर रहा है। लग रहा था स्वरुचि भोज का आयोजन है। 
आधुनिक समाज कहाँ जा रहा है एक तरफ मृत्युभोज बंद करने की पहल हो रही है ,दूसरी तरफ बुफे ?
डॉ नन्द लाल भारती
16 .11 .2015