Thursday, November 19, 2015

मृत्युभोज/लघुकथा

मृत्युभोज/लघुकथा 
लौट आये …?
भाग्यवान लौटने के लिए ही गया था ?
नाराज क्यों हो रहे हो ?
तुमसे नाराजगी  कैसी  ?
खाना खाकर आये हो की नहीं  ?
जी बिल्कुल नहीं। 
क्यों खाना अच्छा नहीं था। 
भाग्यवान तेरहवीं के खाने में क्या अच्छा देखना ?
खाए क्यों नहीं ?
कोई पहचानने वाला नहीं था। खाना तो बहुत अच्छा था,ऊपर से बुफे था,वहाँ तो लग ही नहीं रहा था तेरहवीं का भोज है।
तेरहवीं का भोज वह भी बुफे,क्या बात कर रहे हो जी ?
जी मुझे तो लगा ही नहीं कि एक बेटा बाप की तेरहवीं कर रहा है। लग रहा था स्वरुचि भोज का आयोजन है। 
आधुनिक समाज कहाँ जा रहा है एक तरफ मृत्युभोज बंद करने की पहल हो रही है ,दूसरी तरफ बुफे ?
डॉ नन्द लाल भारती
16 .11 .2015

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