Tuesday, November 30, 2010

BHASHADROHI

भाषाद्रोही..
हिंदी गंगा है, वक्तव्य सुनकर एक श्रोता प्रतिक्रिया स्वरुप बोला बकवास  है .
पीछे बैठे व्यक्ति से रहा नहीं गया वह उत्तेजित स्वर  में बोला अरे चुप रह भाषाद्रोही ... नन्दलाल भारती

Monday, November 29, 2010

vansh

वंश ..
मम्मी सुधार भईया के नाना तुम्हारे सामने क्यों रो रहे थे .
वंश के गम में .तीन-तीन बेटिया है बेटा एक भी नहीं .
क्या..............
हां.........
मम्मी तुम्हे  और पापा को चिंता नहीं .
नहीं..................
सुधार भईया के नाना को क्यों.
मर्निकर्निका कौन ले जायेगा .
मम्मी  बेटियाँ भी तो मर्निकर्निका ले जा सकती है ना. 
हां... बेटी क्यों नहीं . बेटियाँ भे तो हमारी वंश है..  
नन्द लाल भारती

Sunday, November 14, 2010

badhaee

बधाई ..
बधाई हो मोची भईया तुम तो बहुत ऊपर उठ गए .
मोची-धन्यवाद् महोदय आप कोई शब्दों के जादूगर लगते है .
हां वही समझ लीजिये . मेरा नाम सेवकदास है .
मोची-महोदय प्रसाद  ग्रहण कीजिये .
सेवकदास -मेरा सौभाग्य है की महावीर जयंती के सुअवसर पर आपके  हाथ से प्रसाद पा रहा हूँ .
मोची- महोदय गरीब के पास सद्भाना की दौलत  के सिवाय और कुछ तो होता नहीं . मौका आने पर पेट काटकर दूसरो की मदद करने से भी गरीब पीछे नहीं हटता .
सेवकदास -आपके सेवा भाव  को नमन करता हूँ.
मोची-महोय मेहनत मज़दूरी की कमाई में बरकत बरसे. दूसरे आपसे सेवाभाव  सीखे. ,महावीर जयंती की बहुत-बहुत बहीया  बधाईया   मोची भईया कहते हुए सेवकदास गंतव्य की और चल पड़ा . उखड़े पाँव मोची भईया नेक मकसद में जुट गया . नन्दलाल भारती 

Wednesday, November 3, 2010

TRAINING

ट्रेनिंग ..
तुम्हारी तीन दिवसीय ट्रेनिंग होने जा रही है देवीप्रसाद कनक साहब पूछे .
देवीप्रसाद हां साहब दुछ देर पहले फैक्स से सूचना आई है .
कनक साहब -बधाई हो तुम्हारी ट्रेनिंग की . अधिकारियो की तो हुई नहीं तुम्हारी हो रही है  कहते हुए कनक साहब अपने माथे पर चिंता के काले बदल लिए अपनी केबिन में चले गए . 
 बब्बन -देवीप्रसाद कनक साहब बधाई दे रहे थे या विरोध कर रहे थे . उखड़े पाँव कर्मचारी के नौकरी के तीसरे दशक की पहली ट्रेनिंग की .
देवीप्रसाद-कनक साहबे बड़े अफसर है . उनका अभिमान बोल रहा था .छोटे कर्मचारियों की ट्रेनिंग कनक साहब जैसे अफसर फिजूलखर्ची और कंपनी के लिए घाटे का सौदा मानते है .उखड़े पाँव छोटे कर्मचारियों की यह ट्रेनिंग छाती में शूल की तरह गड़ने लगी है . 
बब्बन-कनक साहब जैसे लोगो के रहते  उखड़े पाँव कर्मचारियों के पाँव नहीं जम सकते देवीप्रसाद .
नन्दलाल भारती