Wednesday, February 27, 2013

श्रम के मोती (लघुकथा)

श्रम के मोती (लघुकथा)
जींस की पेंट और टी शर्ट पहने और माथे पर चौड़ा सा तिलक लगाये नवयुवक  युवक अगरबत्ती का धुँआ उगलता हुआ कमंडल सब्जी विक्रेता कन्हैया के सामने हिलाते हुए बोला जय शनि महाराज पुष्प नक्षत्र है पांच  रूपया ब्राहमण को दान करोगे तो हजार मिलेगा .
कन्हैया -कौन देगा ?
युवक -भगवन ।
कन्हैया क्या खूब ठगने का बहाना  ढूंढ लिया है ।
युवक -ब्राहमण हूँ ,वचन न जायेगा खाली ।
कन्हैया- जातिवाद का चेहरा लगाकर ठगने का बहाना पुराना हो गया है । मेहनत मज़दूरी का जमाना है । मेहनत मज़दूरी से कमाई रोटी में मान है सम्मान है । भीखारी का जीवन नरक समान है ।
युवक-भीखारी होंगी तेरी औलादे ।
कन्हैया बैसाखी उठाते हुए बोला -सुन बताता हूँ कौन भीखारी है तू या मै । अरे अभिशापित तू क्या श्राप देगा  ढ़कोसलेबाज ।
युवक-दूरी नापने लगा ।
कन्हैया-बैसाखी सहारे लपका और युवक का गर्दन पकड़ते हुए बोला -जाते -जाते सुनते जा श्रम के मोती बोये तू और तेरा खानदान यही है विकलांग कन्हैया का वरदान ।   डॉ नन्द लाल भारती  २७/0२ /२०१३

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