ऐलान ।लघुकथा ।
क्यों सिर धुन रहे हो रघु ?
क्या करूँ किस्मत पर रोना आ रहा है प्रभुदास ।।
तुम और तुम्हारे लोग सदियों से यही कर रहे है । कुछ नया करने की जरुरत है ।।
क्या ?
संगठित होकर हक़ के लुटेरों और अन्याय के खिलाफ ऐलान ।।
डॉ नन्द लाल भारती 18.02.2013
क्यों सिर धुन रहे हो रघु ?
क्या करूँ किस्मत पर रोना आ रहा है प्रभुदास ।।
तुम और तुम्हारे लोग सदियों से यही कर रहे है । कुछ नया करने की जरुरत है ।।
क्या ?
संगठित होकर हक़ के लुटेरों और अन्याय के खिलाफ ऐलान ।।
डॉ नन्द लाल भारती 18.02.2013
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