Tuesday, March 19, 2013

शंखनाद /लघुकथा

शंखनाद /लघुकथा
होलिका दहन हो चुका  था  पर आग नरम नहीं पडी थी  धुँआ भी जवाँ था । कुछ महिलाये पूजा अर्चना भी शुरू कर चुकी थी । बच्चे जिसमे सभी धर्मों और जातियों के भी शामिल थे, बिना किसी मन-भेद के एक दूसरे को होली की मुबारकवाद दे रहे थे ।  बच्चो की सद्भावना देखकर चारो  भाईयों जिसमे सदियों से दूरी बनी हुई थी । तीन बड़े भाई  और उनका कुनबा मौके-झौके  पर एक दूसरे को कभी कभार गले लगा लेता था परन्तु चौथे भाई  और उसके कुनबे की तरफ तीनो बड़े भाई मुड़कर नहीं देखते थे  । तीनो बड़े भाईयो  के मन  में अपनत्व की लहर दौड़ पडी ।  आपस में विमर्श कर तीनो बड़े भाई और उनके कुनबे के लोग चौथे भाई की चौखट पर होली के गुलाल और मिठाई के डिब्बे लेकर पहुंचे । यह देखकर चौथे भाई को लगा कि  आज सूरज पश्चिम से कैसे उग गया । तीनो भाई और उनके कुनबे के लोग एक स्वर में बोले होली मुबारक हो, फिर क्या रंग-गुलाल  की फुहारे चारो और से बरसने लगी । सदियों से बिछुड़े चारो भाईयों और उनके कुनबे के लोग मन-भेद भुला कर एक दूसरे को मिठाई खिलाने और गले लगाने लगे । आखिर में चौथे क्रम के भाई और उसके कुनबे के लोग बोले-होली के रंग में सारे मन-भेद धुल जायेंगे या फुफकारते रहेंगे होली के बाद .
तीनो बड़े भाई और उनके कुनबे के लोग आत्मसम्मान के साथ चौथे भाई और उसके कुनबे के लोगो को गले लगाकर बोले मन-भेद की दूरियां नहीं । स्व-धर्मी समानता और बहुधर्मी सद्भावना की दरकार है,यही उन्नति  की जड़ है ।  सदियों से दूर चारों भाईयों की और उनके कुनबे के लोगो की आँखों में गंगा-जमुना उतर आयीं । चौथा भाई बोल होली का दिन आंसू बहाने का नहीं खुशी मनाने का है, दिल की दूरी मिटाने का है , फिर क्या गूँज उठा होली के मुबारक की  शंखनाद । 

डॉ नन्द लाल भारती 18.03-2013


vktkn nhi] 15&,e&oh.kk uxj ]bankSj Ae-izA&452010]
nwjHkk”k&0731&4057553  pfyrokrkZ&09753081066@09589611467

No comments:

Post a Comment