पिता
सुबह-सुबह हवाईयां ?
कैसी हवाईयां भाई ?
माथे की लकीर चुगली कर रही है।
वाह यार तुम तो लकीरें भी पढ़ने लगे ।
बात क्या है?
पिता के प्यार के दीदार हो गये ।
कैसे भाई तुम्हारे पिता तो हजार कोस दूर बिस्तर पर पड़े हैं।
बाबू पिता तो पिता होते हैं।
मुद्दे की बात बताओ घुमाओ ना भाई हम तुम्हारे जैसे धूल में फूल नहीं ढूंढ सकते ना।
सुबह के छःबज रहे थे,घोर कुहरा और भयावह ठण्ड थी पुत्र काम पर जाने के लिये बाहरी गेट खोला ही था कि वयोबृद्ध पिता आ गये और लड़खड़ाती जुबान में बोले बेटा बबलू तू जा मैं गेट बन्द कर लूंगा।
बेटा बोला पापाजी आप घर में जाइये ठण्ड लग जायेगी।
पिता कांपती आवाज में बोले बेटे तू बाहर जा रहा है मुझे घर में ठण्ड कैसे लग जाएगी कहते हुए तथावस्तु की मुद्रा में हाथ उठा दिये थे।
हां यार पिता तो जमीन है आसमान है और पहाड़ भी औलाद के लिये।
चौकीदार
भिया मैं भी आ गया हूं, तुम्हारे शहर में देवदत ने दूरभाष पर रसूल को बताया।
रसूल कहां आ गये भिया ?
संयन्त्र प्रशासनिक कार्यालय में।
कैसे रसूल ने उत्सुकतापूर्वक पूछा ।
घबराओ नहीं, दण्डित होकर नहीं, मेरा स्थानान्तरण हुआ है।
ठीक है,घर पर आना या चौकीदार गेट पर रसूल बोला ।
देवदत्त बोला समय मिले तो आप भी मिल लेना।
समय कहां है,यहां आकर बहुत व्यस्त हो गया हूं,गाड़ी से चलता हूं,दस लोग सलाम ठोंकते हैं।
अरे वाह भिया तुम तो चपरासी से चौकीदार क्या हुए जैसे रक्षामन्त्री बन गये।
मेहनताना
मैं एकदम अकेली हो गयी हूं कुलभूषण के पापा।
मैं कहां दुकेला हूं भाग्यवान। कुलभूषण तुम्हारे पास है। कैसे अकेली हो ।
तुम्हारे बिना मैं भीड़ में भी अकेली हूं।
क्या बात हैं,बहुत परेशान हो। कुलभूषण कहां है?
थाने गया है।
थाने क्यों ?
पुलिस ने परदेशीपुरा में गाड़ी रोक रखी है।
क्यों निरंकुश पुलिस की मर्जी ।सुरक्षा के नाम पर लूट।
क्या ? कैसी सुरक्षा?
चेकिंग के नाम पर रोक था,सारे पेपर दिखा दिया,इसके बाद भी नहीं छोड़ रहे । बोल रहे है गाड़ी थाने से छूटेगी ।
लो कुलभूषण भी आ गया बात कर लो ।
हां बेटा क्या हुआ।
पापा दो थाने का चक्कर लगाने में रात हो गयी । गाड़ी छुड़ा लाया पर चेकिंग के नाम पर गाड़ी रोकने का मेहनताना रू 1500/- नहीं दिया कुलभूषण रोते हुए बोला ।
बाप रे कैसी आजादी बिना वजह जबरिया मेहनताना।
रिश्वत
बांस जरा देखिये ।
क्या दिखा रहे हो,मन लगा कर काम करो,अभी बहुत कुछ सीखना है,मेरे रिटायरमेण्ट से पहले मिस्टर ?
देख तो लीजिये ।
भुगतान के लिये प्रस्तुत बिल ।
कोई गलती है।
गलती तो है पर हम बराबर के भागीदार है।
क्या कह रहे बाबू ?
वे कर्मचारी जिसने चाय पिलाया था गलत बिल दे प्रस्तुत कर गया।
कैसे ?
अमान्य चिकित्सक के चिकित्सा बिल। नियमानुसार बिल का भुगतान तो नहीं हो सकता।
नहीं होगा बाबू क्यों फिक्र करते हो।
बांस एक बात खुलकर सामने आ गयी, चाय भी अब रिश्वत है।
सजा
अरे वो सुन की फुफकार सुनकर लोग भौंचक्के रह गये। जनाब को तनिक सब्र नहीं हुआ,वे चम्मचों से थाली बजाने लगे। होटल कर्मचारी आया और बोला जनाब मीठी दूं या तीखी दाल ।
साहब -मीठी और गरम दे।
होटल कर्मचारी साहब बहुत गरम है,निरापद दो बड़े चम्मच दाल प्लेट में डालते हुए बोला और दूं ।
साहब चम्मच से दाल मुंह में डालते हुए बोले ठण्डी और बकवास है सारा स्वाद खराब कर दिया।
तथाकथित साहब का निरापद कर्मचारी को खरीखोटी सुनाने से पेट नहीं भरा वे तुरन्त होटल मैनेजर को तलब कर लिये। निरापद की शिकायत करने से भी नहीं चुके जबकि उसकी कोई गलती नहीं थी,सचमुच दाल बहुत गरम थी, डाइनिंग हाल में मशीन से दाल गरम हो रही थी। लोग चटकारे लेकर लंच का लुत्फ उठा रहे थे। जनाब को ना जाने क्यों इतना गुस्सा आ रहा था कि थाली कुछ खाना छोड़कर नवागत साथी के साथ चले गये जबकि जनाब के साथी ने प्लेट चाटकर छोड़ा था।
निरापद उदास दुखी खड़ा था,उसके कंधे पर हाथ रखकर चिन्ता प्रसाद बोले थे बेटा तू अपना काम वफादारी से कर रहा है। तू दूसरे देश में होता तो तुझे इनाम और तथाकथित साहब को दण्ड मिलता थाली में खाना छोड़ने के अपराध में। वह चिन्ता प्रसाद की बात सुनकर खुश हुआ था पर उसकी खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी थी,दूसरे दिन वह निरापद नदारद था।
गार्ड
आप नये आये हैं साहब ?
जी यही मान लीजिये ।
नया नहीं हूं जनाब,विभाग की सेवा में रजत जयन्ती वर्ष पूरा कर चुका हूं। स्थानान्तरित होकर आया हूं आपकी सेवा में।
कहां से आये है साहब ?
विभाग के इंदौर क्षेत्रीय कार्यालय से ।
गुलफाम भी तो इंदौर से आया था। आप तो जानते होंगे।
जानता हूं पहचानता भी हूं पर वो नहीं ।
ऐसे कैसे गुलफाम की याददाश्त सरक गयी।
जनाब हाथ पसारने के दिन गुजर गये,स्वार्थी गुलफाम दौलतमंद अफसर हो गया है ।
मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखने वाला गुलफाम प्यून से गार्ड हो गया है। ठीक किसी ने कहा है अधगगरी छलकत जाये,ऐसे ही है गुलफाम।
दायित्वबोध
धन्यवाद देवियों।
सुबह-सुबह,धन्यवाद क्यूं अकारण ?
कारण है देवियों ।
कौन सा कारण ?
गोपनीय को अगोपनीय बनाने का ।
सरप्राइज पार्टी का जिक्र कर रहे हैं ।
सिर्फ कमाल का आइडिया था सम्मान ज्ञापन का,सचमुच धन्यवाद की पात्र है आप दोनों देवियां।
दायित्व था। बरसों साथ काम किये। युवा आये थे बूढें हो गये। वरिष्ठ सहकर्मी के जन्मदिन के बहाने साहब लोगों को बुलाकर नाश्ता करवा दिया बस,धन्यवाद जैसा कुछ तो किया ही नहीं।
यही बस आखें खोलने के लिये काफी है।
क्या ?
जी देवियों काश आप दोनों जैसा दायित्वबोध सभी को होता तो रार,तकरार कोसों दूत होता,अपनी जहां और हसीन हो जाती ।
प्रयास अच्छा लगा धन्यवाद दोनों देवियां साथ बोल उठी ।
जी दोनों देवियों के प्रति आभार ।
इन्तजार
रंजू के पापा क्या हुआ ?
कुछ तो नहीं ।
तबियत तो ठीक है ना। चिन्तित और परेशान तो लग रहे हो क्या बात है?
बहुत कठिन है सड़क पर चलना। कितनी भी सावधानी से चलो खतरा मंडराता ही रहता है।
सुरक्षा ही बचाव है अपनी तरफ से पूरी सावधानी बरतना चाहिये ताकि न अपने को ना दूसरे को क्षति पहुंचे ।
बात तो सोलह आने सच है पर लोग इतनी जल्दी में रहते हैं कि मस्तिष्क काम नहीं करता बस जल्दी और जल्दी।
कोई दुर्घटना तो नहीं हुई ?
हुई तो नहीं हो सकती थी ।सावधानी से गाड़ी नहीं चला रहा होता तो आटोरिक्शा वाला टक्कर मार देता । सिगनल पर अचानक सामने आ गया,मेरे तो पांव फूल गये थे। आटो स्कूली बच्चों से खचाखच भरा हुआ था।
मुंआं आटो वाले ना जाने क्यों जहां जगह मिली वही घुसा देते हैं। किसी के जान की उन्हें जैसे परवाह नहीं रहती।
आटो ड्राइवर की गलती का दण्ड मुझ बेकसूर और बच्चों के मां-बाप को भुगतना पड़ता।
ना जाने क्यों लोग अंधगति से चलते हैं,जानलेवा ओवरटेक करते हैं जैसे कि वे जानते ही नहीं कि घर में नन्हे-मुन्ने,बूढे-मां-बाप,पत्नी और कुटुम्ब परिवार इंतजार कर रहा होता है।
गांव की चिन्ता
जनाब कहां से हैं?
जन्मभूमि आजमगढ का एकदम छोटा खांटी गांव और पच्चीस बरसों तक कर्मभूमि इंदौर रही। अब एक और नये शहर में ।
मैं बनारस से लगे हुए बिहार के एक सम्पन्न गांव से हूं। गांव में डेढ़ सौ परिवार है दो सौ इंजीनियर। गांव पच्चास साल से अधिक उम्र के भरोसे चल रहा है । लगता हैं आगामी पच्चीस बरसों में अपना गांव अस्तित्व खो देगा। पढ़े-लिखे ही नहीं अनपढ़ लोग भी अंधाधुंध शहर की ओर पलायन कर रहे है।
भारत गांवों में बसता है परन्तु जब गांव नही होंगे तो देश का क्या होगा?
चिन्ता की बात है जनाब। पलायन को रोजगार की कमी ओर जातिवाद बढावा दे रहे है।
भारतीय गांवों को राजनैतिक और धार्मिक सत्ताधीश बचा सकते हैं।
वो कैसे जनाब ?
गांवों में समुचित रोजगार के साधन उपलब्ध करवाकर और सामाजिक समानता स्थापित का ईमानदारी पूर्वक प्रयास करें,तभी भारत के गौरव गांवों को बचाया जा सकता है।
राजनैतिक और धार्मिक सत्ताधीशों को गांवों को बचाने के लिये इतना तो करना ही चाहिये।
औलाद बनाम बे-औलाद
दो साल का विदेशी दौरा से,मुबारक हो साहब दिवाकर बोले।
धन्यवाद प्रभाकर साहब कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए बोले।
कैसे आना हुआ साहब,हमें बुला लिये होते ?
नो ड्यूज सर्टिफिकेट चाहिये।
सर्टिफिकेट अभी बन जायेगा साहब ।
बना तो दोगे पर विभाग के आकाओं की दूरदृष्टि घास चरने गयी है। विभाग की सेवा में जीवन बिता जा रहा है। दस तरह के नो ड्यूज के लिये चक्कर लगाओ। क्या व्यवस्था है?
साहब आप भी आकाओं में से एक है,बदलाव करवा लीजिये मनमाफिक। कई बार विदेश जा चुके है,कोई दिक्कत हुई क्या ? विदेश के दो साल के प्रवास के दौरान पच्चास लाख की कमाई कम तो नही। यहां तो जिन्दगी भर में इतनी नहीं,आप तो नसीब वाले है।
वक्त नहीं हैं नो ड्यूज प्रमाण पत्र बना दो,हर विभाग से नो ड्यूज लेना है।
पांच मिनट की मोहल्लत प्लीज ।
ओके प्रभाकर साहब बोले ।
दिवाकर भाई नो ड्यूज सर्टिफिकेट थमाते हुए बोले साहब पैरेण्टस् के मेकिडकल इंश्योरेंस रिन्यूवल का चेक दे दिये?
पैरेण्टस् का मेकिडकल इंश्योरेंस रिन्यूवल नहीं करवाना है मुझे प्रभाकर साहब बेअदबी से बोले।
क्यों साहब ?
पच्चासी साल की मां नब्बे साल का बाप गोलियां खाते रहेगे क्या ?
जनरल मैनेजर प्रभाकर साहब का मां-बाप के प्रति दुराचार देखकर दिवाकरभाई सिर धुन लिये। इतने में गंगाभाई प्यून झट से बोला हे भगवान ऐसी औलाद से तो बे-औलाद बेहत्तर था। प्रभाकर साहब जल्दी से अगली केबिन में घुस गये ।
बे-अदब
बे-अदबी भरे अंदाज में मेरे मेडिकल बिलों का भुगतान कब होगा अफसर?
आप श्रीमान् ?
ओह अपना परिचय नहीं दिया.........मैं मेहतवाड़ा ।
कब का बिल है सम्बन्धित अफसर पूछा बैठा ।
नवम्बर महीने से पेण्डिग पड़ा है। तुम लोग क्या काम करते हो ?
देखिये जनाब आपके बिल में कोई खामी होगी,इतने दिनों तक बिल तो लम्बित नहीं रहता। मैं अभी जनवरी में ज्वाइन किया हूं, सीनियर अफसर से बात कर भुगतान करवाने की प्रयास करूंगा अफसर ने अनुरोध भरे अंदाज में कहा ।
तुम जनवरी से क्या किये हो ?
महोदय हमारे संज्ञान में ये मामला था ही नहीं।
ठीक है तुम्हारे संज्ञान में लाता हूं धमकी भरे अंदाज में मि. मेहतवाड़ा बोलते हुए चले गये।
अफसर ने जब वरिष्ठ अफसर बात किया तो ज्ञात हुआ कि बिल में खामियां ही खामियां है, वरिष्ठ अधिकारी रिटायर हो गये परन्तु बे-अदब मि. मेहतवाड़ा लम्बित भुगतान के बारे में कभी जिक्र ही नहीं किये।
मैत्रीभाव
सुबह के लगभग साढ़े सात बज रहे थे। टाउनशिप अभी अलसाई हुई थी। खग-विहग जश्न में डूबे हुए थे। मैं शहर में नया था, ऊपर से डयूटी सुबह साढे आठ से शाम साढे पांच बजे तक। उपर से अहिन्दी भाषी क्षेत्र दूसरे मेल-मिलाप के लिये वक्त नदारद अर्थात सूर्योदय के साथ रवानगी सूर्यास्त के साथ वापसी। टाउनशि में साइकिल पर सब्जी सब्जी वाला भईया तनिक पहचान गया था। वह मैटाडोर से सब्जी उतारकर साफ-सफाई में मशगूल था। मार्निंगवाक् से मैं सीधे ठीहे पर पहुंच गया। बेगैर किसी भूमिका के पाव भर परवल, पाव भर कुंदरू, पाव भर भिण्डी और धनिया मिर्चा का आर्डर दे दिया। भइया मेरी तरफ मुड़ा और बोला बाबूजी आप।
जी भाईजान मैं।
बाबूजी चलो मैं आता हूं। आज तो आठ बजे जाना नहीं है। रविवार है, आज कैसी जल्दी सब्जीवाला भईया बोला।
भाईजान, रविवार तो है पर घर में काम अधिक है कहते हुए मैं र्क्वाटर की ओर चल पड़ा ।
पाव भर परवल,पाव भर कुंदरू, पाव भर भिण्डी, धनिया मिर्च के साथ फूलगोभी भी सब्जीवाला भईया ले आया।
इतनी सब्जी का क्या करूंगा भाईजान ।
बहनजी अभी तक नहीं आयी सब्जीवाला बोला।
नहीं ।
क्यों ?
क्योंकि वहां बेटा पढ़ रहा है।
कब तक और पढेगा ?
तीन साल और । मैं जा रहा हूं।
सब्जीवाला भईया उत्सुकता वश बोला बहनजी को लेने।
नहीं मैं पुनः बोला।
वह उदासी भरे स्वर में बोला बाबूजी आपको बहुत तकलीफ होती होगी ?
बेटे के भविष्य के लिये तकलीफ कैसी भईया ?
बहनजी को बोलना सब्जीवाला कहकर रास्ता नापने लगा।
मैं अवाक् था मैत्रीभाव के रिश्ते पर परदेस में।
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डां नन्दलाल भारती MA(Socialogy) LLB(Hons) PG Diploma in HRD
विद्यासागर एवं वाचस्पति सम्मानोपाधि
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