Saturday, May 28, 2016

चरित्रहीन/ लघुकथा/डा.नन्दलाल भारती

चरित्रहीन/ लघुकथा
हो गया लंच आदरणीय ?
हो तो गया मान्यवर ।
कोई परेषानी है क्या कुछ उखड़े-उखड़े लग रहे हो।
स्थानान्तरण से बड़ी परेषानी क्या होगी ?घर-परिवार सब दूर हो गया,सात जन्म साथ निभाने वाली भी बच्चे के भविश्य के वजह से दूर है। इन सबसे बड़ी बात चरित्र पर मौन अंगुली परेषान कर रही है। लगता है चरित्र प्रमाण लेना पड़ेगा।
क्या बात कर रहे हैं आदरणीय ?दिषा देने वाला भला दिषाहीन कैसे हो सकता है? पच्चीस साल की नौकरी अब चरित्र प्रमाण की जरूरत। मन दुखाने की बात ना करो यार।
चरित्र पर षंका के अंवारा बादल मड़राने लगे है पहले दिन से ही।
आदरणीय आपके बारे में किसी चरित्रहीन के मन में ऐसे विचार आ सकते है।स्थानान्तरित होकर आयेे हो कोई नये नहीं हो,कम्पनी के बाहर की दुनिया भी आपसे परिचित है। ऐसे विचार क्यों आये,मुझे बताओ ।
लंच के लिये कैंटीन जाने लगा तो मैडम बोली नरोत्तमजी लंच टाइम के बाद ही अन्दर आना।मुझे तो जैसे सांप सूघ गया था परन्तु मैंने वैसा ही किया।
आप जैसा चरित्रवान कौन है,आपके बारे में दुनिया जानती है परन्तु यह तो षोध का विशय बन गया है चरित्रहीन कौन ?
डां नन्दलाल भारती
कवि,कहानीकार,उपन्यासकार
दिनांक 27/04/2016
परिचय
डा.नन्दलाल भारती
कवि,लघुकथाकार,कहानीकार,उपन्यासकार

2 comments:

  1. ACHI LAGHU KATHA HAI . AUR HUM SAB KO MIL KAR HINDI BHASHA KO BHADAVA DENA CHAIYE . JOKES PADNE AUR SHARE KARNE KE LIYE CLICK THE LINK BELOW
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