Saturday, May 28, 2016

आम माफिया।लघुकथा/डां नन्दलाल भारती

आम माफिया।लघुकथा/डां नन्दलाल भारती
रक्त के आंसू क्यों,क्या खता हो गयी भाग्यवान ?
खता तो मुझसे हो गयी गुड़िा के पापा।
क्या..............?
हां,छत पर लटक रही आम की डाली से गिनकर चार आम तोड़,यहा मुझसे खता हो गयी।
सरकारी कालोनी,सरकारी निवासी,सरकारी पेड़ खता कैसी ?
मिस्टर एल.नावाकम की घरवाली तो सी.आई.डी.की तरह घर की छानबीन कर गयी और बोली कि मेरी बिना मेरी इजाजत के हाथ कैसे लगाई,आज तक किसीकी हिम्मत नही हुई,तुमने चार आम तोड़ लिये।ऐसे तहकीकात कर रही थी जैसे वो नहीं हम आम आममाफिया हो ।
विभाग सरकारी,सरकारी कोलोनी,सरकारी निवासी,सरकारी सम्पतियां,परिसम्पतियां तो आम के पेड़ किसी की बपौती कैसे हो सकते हैं।
मिसेज नावाकम ऐसे बोल की गयी है जैसे हाथ लगा दी तो खून कर देगी।
भाग्यवान मोती सम्भालोएदफतर जाकर मिस्टर नावाकम से बात कर लूंगा,धर्मानन्द बाबू धर्मपत्नी दिव्या से बोलकर दफतर के लिये निकल पड़े। दफतर जाकर धर्मानन्द बाू मिस्टर नावाकम को फोन पर मिसेज नावाकम की बदतमीजियों से अवगत कराना चाहे पर क्या मिस्टर नावाकम बदतमीजी में घरवाली के बाप निकले। धमकाते हुए बोले पन्द्रह सालों में किसी की एक आम तोड़ने की हिम्मत नहीं हुई तुम्हारी घरवाली ने चार आम तोड़ लिये जबकि तुम्हें ज्वाइन किये तीन महीने भी नही हुए हैं।
मिस्टर नावाकम जितना अधिकार आपका है,उतना ही अधिकार मेरा भी है धर्मानन्द बाबू बोले।
इतना सुनते ही मिस्टर नावाकम आग बबूला होते हुए बोले तुम्हारा अधिकार क्यों और कैसे ? जा जिससे मेरी षिकायत करनी हो करके देख ले। मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
मिस्टर नावाकम आप तो माफिया का भाशा बोल रहे हो धर्मानन्द बाबू बोले ।
हां बोल तो रहा हूं क्या कर लेगा मिस्टर नावाकम बोले ।
जिस दिन प्रबन्धन की नजर पड़ गयी समझो सरकारी आम के अवैध व्यापार की वैध नीलामी षुरू धर्मानन्द बाबू बोले ।
बस क्या आग में घी पड़ गया आम माफिया मिस्टर एल.नावाकम बोले अब तू फोन रख कहते हुए फोन पटक दिये ।
डां नन्दलाल भारती
कवि,कहानीकार,उपन्यासकार
दिनांक 16/05/2016

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