Sunday, January 30, 2011

WARDIWALA GIDHD

वर्दीवाला गिध्द ..
कितने ढीठ हो गए है ये वर्दी वाले गिध्द .
क्या कह रहे हो यार .
सच कह रहा हूँ . मेरे बूढ़े पिताजी गाँव जा रहे थे . ट्रेन प्लेटफोर्म पर खड़ी थी. पार्किंग दूर थी . वहा तक जाने  में ट्रेन छूट सकती थी . मै अपना स्कूटर स्टेसन से लगी बिल्डिंग के सहारे खड़ा कर ट्रेन पकड़वाने के लिए भागा. वापस आया तो देखा.
क्या देखा .......
वर्दीवाला गिध्द  स्कूटर पर बैठा हुआ है एक कौए के साथ.
उतरिये जनाब जाना है मैंने कहा .
KAUAA   -क्यों .
मुझे जाना है .
वर्दीवाला गिध्द -पार्किंग में खड़ा है क्या .
KAUAA -एक तो पार्किंग में खड़ा नहीं है दूसरे साहेब आधे घंटे से रखवाली कर रहे है .
वर्दीवाला गिध्द -चालान बना दू क्या...
बना दीजिये....
सोच लो...
सोच लिया ...
कुआ- देखने में शरीफ लगते हो . क्यों क़ानूनी लफड़े में फ़सने जा रहे हो .
कोई नियम नहीं तोडा हूँ....
वर्दीवाला गिध्द -वो तो मै बताऊंगा  . निकालो सौ  रुपये .
लीजिये और रसीद दीजिये .
कैसी रसीद वर्दीवाला गिध्द और KAUAA  एक सुर में बोले और जल्दी-जल्दी कदम बढाकर एक गाँव वाले मजदूरों के दल को रोके और उनकी गठरियो की तलाशी लेने लगे.
ठगा रह गया जन सेवा और राष्ट्र सेवा की कसम खाने वाले गिध्द की करतूत देखकर ....
नन्दलाल भारती...  ३०.०१.२०१०
 

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