कीमत /लघुकथा
राहुल नौकरी बढ़िया चल रही है।उच्च तालीम को सम्मान मिला की नहीं …?
सम्मान कैसा दमन हो रहा है। छाती पर पहाड़ रखे कीमत चुका रहा हूँ सुरेश बाबू ।
कैसी कीमत………… .?
विज्ञानं के युग में अछूत होने की।
बड़े शर्म की बात है आ आरक्षण का फायदा भी नहीं मिला।
नहीं…………. सजा मिल रही है।
अंडरटेकिंग कंपनी में आरक्षण दम तोड़ चुका है।
कहने को अंडरटेकिंग कंपनी है सुरेश बाबू कानून कायदे तो सामंतवादी लागू है।
तभी तुम्हारी तालीम का कोई मोल नहीं है ,जातीय श्रेष्ठता होती तो तुम कंपनी स्टार होते राहुल।
पापी पेट का सवाल है तभी इतनी घाव बर्दाश्त कर रहा हूँ।
सामंतवाद तो शोषितों के लिए बबूल की छांव है।
हाँ सुरेश बाबू बबूल की छाँव का जीवन मौत से संघर्ष ही है।
सच
कह रहे हो शोषितों के खून पर पलने वाले परजीवी आज भी शोषण कर रहे है। इन
नर पिशाचो से छुटकारा पाने के लिए संगठित होकर मुकाबला करने की हिम्मत
जुटाना होगा तभी विकास सम्भव है राहुल।
डॉ नन्द लाल भारती 22 . 10 . 2013