Monday, October 14, 2013

प्रहलाद /लघुकथा

प्रहलाद  /लघुकथा
भूषण सम्मान की बधाई  हो दिवाकर।
धन्यवाद मित्रवर।
तुम्हारे कैरियर की अमावास की रात तो अब कट जानी चाहिए।
बाबू मै  भी विश्वास पर टिका हूँ। कब तक नसीब के दुश्मन दर्द देते है। खैर बर्दाश्त की ताकत तो भगवान ही दे रहा है।
काश तुम्हारे साथ अन्याय ना हुआ होता तो आज तुम श्रम की मण्डी में गुमनाम ना होते। तुम्हारी उच्च योग्यता मान-सम्मान तक को बर्बाद कर  दिया नसीब के दुश्मनों ने।
बाबू  उम्र का मधुमास तो बिट चूका है पर अग्नि परीक्षा जारी है।
हाँ कल युग के प्रहलाद देखना है हिरनाकुश रूपी सामंती प्रबंधन की छाती कब फटती है कब तुम्हे मिलता है न्याय ……….? गरीब जान कर एक उच्च-शिक्षित जाति को योग्यता मानकर  कैरियर  को फंसी लगा दिया सामंती प्रबंधन ने कोसते हुए चन्द्र बाबू चल पड़े  डॉ नन्द लाल भारती  14 . 10. 2013

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