डील/ लघुकथा
हेलो खूंखार आवाज़ से सहम उठा।
कहा है जनाब ?
छुट्टी पर जा रहा हूँ ,लौटते ही दौरे पर आता हूँ . दो चार गवाह तैयार रखना ,बयान बदलवाना है या एनकाउंटर।
जैसा चाहेगे वैसा हो जायेगा।
इसी में हम दोनों की भलाई है।
जी समझ गया।
पास की सीट पर बैठा युवक धीरे से बोला अंकल पुलिस वाले अंकल डॉन लगते है , कैसी डील कर रहे है खचाखच भरी ट्रेन में।
हां बेटा यही लोग तो है तो अपराधी ,नक्सलवादी और आतंकवादी बनाने की मशीन है।
डॉ नन्द लाल भारती १५,01.२०१४