कैसा भेद /लघुकथा
श्रमवीर ये कैसा भेद ?
किस भेद की बात कर रहे हो दरविंदर ?
दलित और पददलित के भेद का ।
रोज देख रहे हो ,सुन रहे हो ,पत्थराई आँखों का दर्द ,नहीं समझ सके आज तक ।
क्या और कहाँ ?
क्या और कहाँ ?
आसपास,दफ्तर, बूढ़े समाज में।
आसपास से मतलब आपके साथ भी ।
हम
कहाँ अलग है ,सच है प्यारे। अहित की साजिश ,अपमान,भेदभाव ,अवमूल्यन दलित
जीवन के रिसते दर्द हैं। पददलित होने पर गुंजाईश रहती है। दलित के साथ पद
दलित पर सम्भावनाये और अधिक बढ़ जाती है शोषण उत्पीड़न दमन की ।
यानि चौतरफा दर्द।
हां दरविंदर ,यही दलित और देश का दुर्भाग्य है।
श्रमवीर बाबू ये भेद तो क़त्ल है सभ्य मानव समाज और देश की आत्मा का।
डॉ नन्द लाल भारती 30 .01 .201४
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