मौन ,उदासी और सवाल /लघुकथा
स्थांतरण और रिटायरमेंट के बीस साल बाद फ़रिश्ते की तरह अचानक प्रगट हुए देखकर कर्मवीर पांव छूटे हुए पूछा अस्लाम साहब। ……?
अस्लाम साहब-पहचान लिए कर्मवीर ,कैसे हो माय ब्वाय ?
बहुत बढ़िया साहब .
इतने में पूरा दफ्तर इकट्ठा हो गया, और सबने अस्लाम साहब को पलको पर बिठा
लिया। अपने अधीनस्थ ज्वाइन किये कर्मचारियो को उच्च पदो पर देख कर खुश हुए।
कर्मवीर से मुखातिब होते हुए पूछे कर्मवीर तुम ?
कर्मवीर से सवाल छीन कर दूसरे अधिकारी बोले इसका भी प्रमोशन हो गया है।
अस्लाम साहब -योगयता को देखते हुए तो बहुत आगे कर्मवीर को जाना था।
कर्मवीर आपक ही डायलॉग है साहब -ये इण्डिया है प्यारे यहाँ बहुत सी बातों का फर्क पड़ता है। इस अंडरटेकिंग कंपनी में उसी फर्क ने मेरे कैरिअर का क़त्ल किया है। मसलन -ऊँची जाती उंच पहुँच और ये दोनों योगयताए मेरे पास नहीं है। इसी अयोग्यता के कारण मैं आगे नहीं जा सका।
कर्मवीर की पीड़ा सुनकर अस्लाम साहब के माथे पर मौन,उदासी और सवाल की तड़ित रिसने लगी थी।
डॉ नन्द लाल भारती 28 .01 .201४
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