Tuesday, July 28, 2015

खतरा /लघुकथा


खतरा /लघुकथा 
रौद्र एंव शांत चित का प्रयास,क्या कोई मनभेद तो नहीं ?
अरे भई अपनी जहां में तो तिलकधारी जैसे लोग मनभेद लेकर ही पैदा होते है । ऐसे मनभेदी देश समाज के लिए कैंसर बने हुए है। 
तिलकधारी ने क्या विष बो दिया ?
तिलक की आड़ में ज्ञानी महापुरुष ही नहीं महागुरु भी बन रहां है।  
कौन सा विष बाण छोड़ दिया आज  ?
कहता  ज़िन्दगी में कभी सीखने की कोशिश नहीं करोगे क्या ?
ढकोसलेबाज में इतनी समझदारी आ गयी क्या ?
हाँ, ऐसे ही बहुरुपिया  समझदारो ने  तो ज्ञान-विज्ञानं को फेल कर देश और आधुनिक शिक्षित समाज को भ्रमित कर रखा है ।  
ढकोसलेबाज रूढ़िवादियों के परित्याग में ही देश का विकास ,सामाजिक समानता और सदभावना निहित है । 
ढोंगी रूढ़िवादी  तिलकधारी लोकहित और परमार्थ से कोसो दूर हो गए  है,स्वार्थ और गुनाह के नज़दीक आ गए है,समाज को खंडित-विखंडित कर अपनी सत्ता स्थापित करने में आज भी कामयाब है  चिंताप्रसाद । 
सच ऐसे लोग ही देश और सभ्य समाज के लिए खतरा है नेकचन्द । 
 डॉ नन्द लाल भारती 11 .07.2015
  

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