नाक /लघुकथा
पिता को दिन प्रतिदिन चिंता की चिता में सुलगता देखकर नयना हिम्मत जुटा कर पिता से पूछ बैठी। पिताजी आपकी चिंता का कारण कही मैं तो नहीं ?
बेटी क्यूँ और कैसी चिंता ?भला चिंता का कारण तू क्यों हो सकती है बेटा ?
ब्याह के दहेज़ की चिंता पिताजी ।
कौन करेगा मैं नहीं करूँगा तो । सुयोग जाति पूत वर मिल जाता है तो तेरी डोली उठाकर सीधे गंगा स्नानं को जाऊँगा ।
ब्याह से ज्यादा दहेज़ दानव की चिंता है ना ? पिताजी एक एहसान कर दीजिये मुझ पर ।
कैसा एहसान बेटा ?
जाति पूत को सौंप कर गंगा स्नान की जिद का पिताजी ।
ज्यादा पढ़-लिख गयी तो अपने बाप की नाक कटवायेगी क्या ?
खूंटे से बंधी गाय नहीं ……नाक और ऊँची होगी पापा ।
कैसे ऊँची होगी ?
उच्च शिक्षित अमीर चतुर्थ वर्णिक लडके से ब्याह कर ।
घोर कलयुग आ गया प्रथम वर्णिक लड़की चतुर्थ वर्णिक लडके से ब्याह ।
हां पापा नयना बोली।
ना बेटी ना ऐसा अधर्म ना करना ।
पापा इससे दो समस्याओ का अंत होगा ।
कौन सी समस्या का अंत करने जा रही है ।
पापा..........दहेज़ दानव और जातिवाद का ।
आख़िरकार नयना अपने मकसद में कामयाब हो गयी । ब्याह के दिन स्व-रूचि भोज का आनंद लेते हुए लोग बड़े चाव से चबा -चबा कर बतिया रहे थे ,लो जी वह दिन भी आ गया दीवार खड़ी करने वाले ही तोड़ने लगे। अब तो देश की नाक दुनिया में ऊँची हो जाएगी ।
डॉ नन्द लाल भारती 16 .07.2015
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