Tuesday, July 28, 2015

नाक /लघुकथा

नाक /लघुकथा 
पिता को दिन प्रतिदिन चिंता की चिता में सुलगता देखकर नयना  हिम्मत जुटा कर पिता से पूछ बैठी। पिताजी आपकी चिंता का कारण कही मैं तो नहीं ?
बेटी  क्यूँ  और कैसी चिंता ?भला चिंता का कारण तू क्यों हो सकती है बेटा ? 
ब्याह के  दहेज़ की चिंता पिताजी । 
कौन करेगा मैं नहीं करूँगा तो । सुयोग जाति पूत वर मिल जाता है तो तेरी डोली उठाकर सीधे गंगा स्नानं को जाऊँगा । 
ब्याह से ज्यादा दहेज़ दानव की चिंता है ना  ? पिताजी एक एहसान कर दीजिये मुझ पर । 
कैसा एहसान बेटा ?
जाति पूत को सौंप कर गंगा स्नान की जिद का पिताजी । 
ज्यादा पढ़-लिख गयी तो अपने बाप की नाक कटवायेगी क्या ?
खूंटे से  बंधी गाय नहीं ……नाक और ऊँची होगी पापा । 
कैसे  ऊँची होगी ?
उच्च शिक्षित अमीर चतुर्थ वर्णिक लडके से ब्याह कर । 
घोर कलयुग आ गया प्रथम वर्णिक लड़की चतुर्थ वर्णिक लडके से ब्याह । 
हां पापा नयना  बोली।  
ना बेटी ना ऐसा अधर्म ना करना । 
पापा इससे दो समस्याओ का अंत होगा  । 
कौन सी समस्या का अंत करने जा रही है ।
पापा..........दहेज़ दानव और जातिवाद का । 
आख़िरकार नयना अपने मकसद में कामयाब हो गयी । ब्याह के दिन  स्व-रूचि भोज का आनंद लेते हुए लोग बड़े चाव से चबा -चबा कर बतिया रहे थे ,लो जी वह दिन भी आ गया दीवार खड़ी करने वाले ही  तोड़ने लगे। अब तो  देश की नाक दुनिया में ऊँची हो जाएगी ।  
डॉ नन्द लाल भारती 16 .07.2015

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