दर्शन /लघुकथा
बाबा बहुत थके मांदे लग रहे हो,कहाँ से आ रहे हो ?
बेटा दर्शन करने गया था।
कब से जा रहे हो बाबा ?
बचपन से।
दर्शन कभी हुआ ?
किसी को नहीं हुआ तो हमें कहाँ होगा ?
बाबा मेहनत की कमाई क्यों बर्बाद कर रहे हो ?पुजारियों को घुस देते हो ,चढ़ावा चढ़ाते हो ,दानपेटी में भी डालते हो,वी आई पी दर्शन भी कर लेते हो ,इसके बाद भी कह रहे दर्शन नहीं हुए। बाबा होगे भी नहीं।
क्या कह रहे हो बेटा।
बाबा जरा सोचो।
क्या .........?
पत्थर की मूर्ति,लोहे का दरवाजा,हट्टे -कट्टे पूजापाठ करवाने वाले वंशागत ठेकेदार ,क्या ऐसी कैद में भगवान के दर्शन हो सकते है बाबा ?
तुम्ही बताओ बेटा ।
बाबा जातिपाति की रार से ऊपर उठकर दीन-दुखियो की सेवा करो,भूखो को रोटी ,वस्त्रहीन को वस्त्र दो, यही ईश्वर के सच्चे प्रतिनिधि है,इनकी सेवा ईश्वर की पूजा है।
बेटा तुमने तो मेरी आँख खोल दी। अब दीन-दुखियो की आँखों में ईश्वर के दर्शन करूँगा।
बाबा जरूर होगा। डॉ नन्द लाल भारती 04 .07.2015
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