सुनामी /लघुकथा
रोहनबाबू ड्योढ़ी के बाहर जूता निकाल कर पाँव रगड़ते हुए कमरे में दाखिल होते ही कुर्सी में अंदर तक धंस गये.रोहनबाबू को चिंतित देखकर धन्वन्ति सिर पर हाथ फिराते हुए पूछ बैठी - करन के पापा दफ्तर में किसी से कुछ कहा सुनी हो गयी क्या ?
नहीं भागवान ।
फिर ये सौत का आतंक क्यों ?
कैसी सौत ?
आपकी चिंता किसी सौत से कम है क्या ? चिंता का कारण क्या है प्राणनाथ ?
एक महिला ।
कहाँ गयी बदचलन औरत ?
कालोनी के नुक्कड़ पर ।
कहाँ की थी ?
आसपास की के किसी कालोनी की रही होगी । यह महिला चिंता का कारण कैसे हो गयी । कालोनी का प्रवेश अतिक्रमण का शिकार है,दबंगो का कब्ज़ा है। मुख्य सड़क सकरी गली जैसी हो गयी है| सुबह शाम जाम लग जाता है| अभी यही हाल था । अपनी गाड़ी एक तरफ किनारे खड़ी थी । एक महिला एक्टिवा से आयी मेरी गाड़ी में टक्कर मार दी ,इसके बाद भी मेरे ऊपर चिल्लाने लगी,अंधे हो क्या ,अपनी औकात में रहा करो और ना जाने क्या ?
हमने बोला मैडम खड़ी गाड़ी में टक्कर मार दिया,हजारो का मेरा नुकशान कर दिया,यह तो वही हाल हुआ उलटा चोर कोतवाल को डांटे | इतना सुनते ही मोहतरमा द्रुतगति से भाग निकली।
मिठाई की दुकान वाला मोदक तौलते हुए बोला बाप रे औरत है कि सुनामी।
धन्वन्ति बोली-चिंता छोडो करन के पापा सुनामी निकल गयी|ॉ
डॉ नन्द लाल भारती
18.09 .2015
No comments:
Post a Comment