Sunday, September 6, 2015

निरुत्तर /लघुकथा

निरुत्तर /लघुकथा 
लम्बा टीका और शरीर पर गेरुआ वस्त्र लपेटे ज्योतिषी ने अपनी कई भविष्य वाणियों को सत्य साबित कर विश्वास की पकड़ मजबूत बनाये जा रहे थे। इसी बीच एक व्यक्ति ने नाम के साथ उपनाम लगाये जाने के मुद्दे पर सवाल कर दिया। ज्योतिषी सवाल के जबाब में बोले उपनाम व्यक्ति कुल वंश और गोत्र के परिचायक होते है ।
दूसरा व्यक्ति बोला गलत । 
तीसरा बोला व्यक्ति के स्व अभिमान और अन्धविश्वास को बढ़ावा है और कुछ नहीं । उपनाम का चलन ख़त्म चाहिए । 
ज्योतिषी बोले क्या ज़माना आ गया है लोग कुल वंश को ख़त्म करना चाहते है ।
चौथा व्यक्ति बोला ज्योतिषी महोदय मत नाराज होइए, सोचिये और श्री कृष्णा का यादव उपनाम नहीं था श्री राम जिन्हे मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है उनका उपनाम सिंह नहीं था । उपनाम का दौर व्यक्ति के स्व अभिमान और अन्धविश्वास को बढ़ावा नहीं तो और क्या है ……?
निरुत्तर तथाकथित ज्योतिषी ने बस्ता समेट कर नौ दो ग्यारह हो लिए |
डॉ नन्द लाल भारती
06 .09 .2015

No comments:

Post a Comment