Sunday, September 6, 2015

जय-जयकार /लघुकथा

जय-जयकार /लघुकथा 
पंद्रह अगस्त के जश्न के सुअवसर पर आयोजित वक्तव्य कार्यक्रम में गेरुआ धोती, कुर्ता और टोपीधारी   प्रथम वक्ता अपने वक्तव्य की शुरुआत कर्मकांडी श्लोको से कर  आज़ादी का  सेहरा हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वंय सेवक के सिर पर बाँध कर गौरान्वित महसूर कर रहे  थे परन्तु बेखबर  श्रोता जैसे कानो  में  अंगुली डाले बैठे थे । इस चुप को तोड़ते हुए उच्चवर्णिक जर्नलिस्ट  कन्या ताल ठोकते हुए  बोली वक्ता महोदय आज़ादी की जंग   पूरे भारत ने जाति धर्म से ऊपर उठकर लड़ी थी तभी देश आज़ाद हो पाया वरना देश का क्या हाल होता ? वक्ता  महोदय आपका कथन आज़ादी के दीवानो अमर शहीदो का अपमान है।सर्वधर्म और समभाव को आहत करता है], बहुत हो गया अब जाति-धर्म के नाम पर बंटवारा ,आज की  युवा पीढ़ी बहकावे में नहीं आने वाली है, आज की पीढ़ी को   समतावादी समाज और सर्व संपन्न देश चाहिए जाति धर्म के नाम जहर उगलता  भेदभाव  नहीं । इतना सुनते ही जर्नलिस्ट कन्या की जय-जयकार होने लगी।   डॉ नन्द लाल भारती
26.08.2015

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