Monday, October 17, 2011

विरोध/लघु कथा

विरोध/लघु कथा
जगत बाबू आपकी किताब का कुछ विक्रय हुआ क्या.......?
नहीं ---नरायन बाबू । ग्राहक ढूढ़ना तो अपने बूते की बात नहीं । प्रकाशक दूरी बना रहे । बुक सेलर घास नहीं दाल रहे ।
जगत -यार हम तो लकी रहे ।
नारायण- कैसे.....................?
विभाग हमारी किताबे खरीदेगा। लेखन के लिए पुरस्कार भी घोषित हो चुका है विभाग द्वारा कहते हुए नरायन ने संतोष की सांस भरी ।
नारायण- बधाई हो.....
जगत-आपका विभाग कुछ नहीं कर रहा है ।
नारायन -कर रहा है न आपका उल्टा और तरक्की से बेदखल भी ।
जगत-बाप रे , मान-सम्मान,तालीम, योग्यता, प्रतिभा का विरोध ....? क्या यह छोटा होने का दंड तो नहीं ?
नरायन-जगत बाबू यही नसीब बन गया है .....नन्द लाल Bharati   ....१६.१०.२०११

No comments:

Post a Comment