Monday, May 27, 2013

भीखारी /लघुकथा
दादा वो देखो ........?
क्या बच्चू ......?
पुलिस वैन  चौराहे के किनारे जो खडी है .
पुलिस वैन क्यों दिखा रहे हो .रास्ता नापो पुलिस वैन के चक्कर में मत पड़ो .चौराहे पर ये लोग वसूली ही तो करते है .
दादा एक नजर देखो तो सही .अभी मामला थोडा हटके है .
बेटा  जिद मत करो चलो. पुलिस को निहारना महंगा पड़ सकता है .
दादा देखो एक भिखारिन कैसे गिडगिडा रही है .
वह नहीं जानती है .
क्या दादा जी ....?
एक बड़ा दबंग भिखारी उखड़े पाँव भिखारी को भीख देगा क्या .आगे बढ़ो बेटा .
डॉ नन्द लाल भारती
28 .05 .2 013 

Saturday, May 25, 2013

परायाघर /लघुकथा

परायाघर /लघुकथा
चार वर्षीय सानु को दुलारते हुए नरेन्द्र पुछा बेटा घर में सब ठीक है .
सानु -बेटा नहीं बेटी दादा .
क्य………?
हाँ दादा मैं लड़की हूँ .
नरेन्द्र माथा ठोंक बैठा .
गीता-बेटी तुम्हारा घर कहाँ है ?
पता नहीं दादी .
हरदा किसका घर है .
भईया का .
साल भर के भईया का घर है तुम्हारा नहीं .
नही …….दादी मुझे तो परायेघर जाना है ना .
बाप रे इतना बड़ा बंटवारा नन्ही सी उम्र में कहते हुए गीता कुर्सी में धंस गयी फिर संभल कर बोली परायेपन का विचार  नन्ही सी बच्ची के मन में कैसे आया होगा अभी से .
पारिवारिक परिवेश ,सामजिक रुढिवादिता और माँ बाप के अंधेपन से नरेन्द्र बोला .
अंधेपन का इलाज क्या है गीता बोली ?
स्व-धर्मी समानता एंव नातेदारी कहते हुए नरेन्द्र सानु के सर पर हाथ फेरते हुए बोल बेटी लड़का-लड़की एक सामान है .दोने जीवन की पहचान है .
गीता-सत्य तो यही है पर सामाजिक रुढिवादिता और पारिवारिक अंधापन कहा मानता है .

डॉ नन्द लाल भारती 26.05.2013

Thursday, May 23, 2013

स्वर्णिम कलम/लघुकथा

स्वर्णिम कलम/लघुकथा
गीली पलकें क्यों चिराग के पापा ?
गीली  पलकें नहीं खुशी कहो .
इतनी ख़ुशी .?
हां ...स्वर्णिम कलम दिखाते हुए शब्दप्रेमी बोले बात कलम की ही नहीं है .
और क्या है .....?यह भी लिखने के काम आयेगी .
आएगी तो सही कलम के पीछे भावना और सम्मान जो है वह तो दुनिया भर के खजाने से नहीं ख़रीदा जा सकता .चिराग ने मुंबई से  भेजा है .
जानती हूँ .
जानकर भी हलके में ले रही हो .
क्या ..........?
हां ...बेटवा का बाप के नाम गिफ्ट वह भी स्वर्णिम कलम बड़ी बात है .इसका मर्म समझती हो .
नहीं ....तुम रचनाकार जानो .मै  तो बस इतना जानती हूँ की बेटवा बड़ा और तुम्हारी तरह बुध्दिमान हो गया है .तभी तो बाप को स्वर्णिम कलम गिफ्ट किया है ताकि तुम राष्ट्र और समाज के हित में और अच्छा लिख सको .यहो सोचकर तुम्हारी पलकें गीली हो रही है .
हां चिराग की माँ मुझ जैसे बाप को बेटवा से कलम पाकर पलकें गीली तो होगी क्योंकि लेखक के लिए कलम तो अनमोल होती है बेटवा की पहली कमाई से तो और मूल्यवान हो जाती है .लेखक के लिए बड़ी और ख़ुशी की इससे और बड़ी बात क्या हो सकती है .
मुबारक हो गीली पलकें चिराग के पापा .
स्वर्णिम कलम को शब्दप्रेमी माथे चढाते हुए बोले तुम्हे भी चिराग की माँ .
डॉ नन्द लाल भारती 23.05.2013

Wednesday, May 8, 2013

राज /लघुकथा

राज /लघुकथा
क्या हुआ साहब जी .................?
क्या होगा छकड़ प्रसाद का वही तुगलकी फरमान .
आपके ही लिए क्यों .उच्च शिक्षित हो प्रतिष्ठित हो,वफादार हो ,समय के पाबंद हो दूरदृष्टि रखते हो . सारी योग्यताये आपके पास है ,फिर दोहरा मापदण्ड क्यों ....?
बहादुर जातीय तो अयोग्य हूँ .पच्चीस साल से शोषण का शिकार हूँ . तुमको आये महीना हे तो अभी हुआ है सब राज जान  जाओगे .छकड़ प्रसाद,उच्च व्यवस्थापक महोदय कठोर सींग ,चापलूस मेनेजर को और अधिक मौखिक पावर दे दिए है ताकि वे मेरी नाक में नकेल डाले रहे .बहादुर सामंतवादी कार्पोरेट कंपनी में दोयम  दर्जे का बना दिया गया हूँ ,यही मेरा दुर्भाग्य है .
साहब जी आप भी तो अफसर हो .
बहादुर हूँ  तो पर कमजोर वर्ग का .दुनिया भले ही नजदीक आ गयी हो पर अपने देश में जातिवाद की खाई नजदीक नहीं आने देती .यही जातिवाद शोषण ,अत्याचार और भ्रष्टाचार का जनक है। सामंतवादी कार्पोरेट कंपनी में मेरे भविष्य की तबाही का राज भी .
बहादुर आओ इस राज का पर्दाफाश करे साहब जी .
डॉ नन्द लाल भारती
09 .05.2013

Monday, May 6, 2013

अधिकार/लघुकथा

अधिकार/लघुकथा
स्कूल का चौकीदार नहा -धोकर ईश पूजा में ध्यानमग्न  था इसी बीच स्कूल प्रांगण में बने मंदिर सामने अत्याधुनिक बाईक खडी हुई .बाईक सवार पहलवान सरीखे आदमी हेलमेट और जूता पहने सीधे मंदिर में प्रवेश किया।ज्ञान की देवी की मूर्ति के गले में माला डाल दो फूल इधर उधर फेंका . सेकेंडो  पूजा कर्म निपटा कर  धुँआ का गुबार छोड़ते हुए फुर्र हो गया .चौकीदार भी पूजा कर्म पूरा कर उठा हाथ की किताब के माथे चढ़ाते हुए उठा स्कूल के गेट बंद कर अपने क्वार्टर की और जाने लगा .इसी बीच दयावान ने आवाज लगा दिया चौकीदार भईया वह वापस आ गया और बोला जी साहब .
दयावान- दादा बहादुर कौन थे जो मूर्ति के गले में दूर से माला फेंकर भाग लिए जैसे उनके इऎछे पुलिस पडी हो .
चौकीदार -पंडित जी थे पूजा करने आते है तनख्वाह पर.
दयावान -ये तो पूजा नहीं देवी का अपमान है .
चौकीदार -जाती से पंडित जी है न सब जायज है .
दयावान-वाह रे जातीय आरक्षण .कब ख़त्म होगी ये महामारी मन ही मन बोले।
चौकीदार -साहब कुछ कहे .
दयावान- पंडित जी से अच्छी पूजा तो तुम कर लेते .
चौकीदार -हमें अधिकार कहाँ ...................?
डॉ नन्द लाल भारती
07.05.2013

Thursday, May 2, 2013

दादी माँ की गाली /Laghukatha

दादी माँ की गाली /Laghukatha
दादी माँ  माँ को ही नहीं हमें भी खूब गाली  देती थी पर पूरा परिवार दादी माँ की सेवा सुश्रुखा करता था। कभी कभी दादी माँ अपनी जबान को धारदार बनाये रखने के लिए माँ से झगडा भी बिना वजह कर लेती थी पर माँ को कहा फुर्सत थी .माँ पिताजी दे बराबर गृहस्थी की गाडी खीचने के लिए पसीना बहांती  थी .उम्र की मार ने दादी की दोनों आँखे छीन ली .चाचा -ताऊ palayan कर गए क्योंकि गाँव में कोइ पुश्तैनी  मिलिकियत तो थी नहीं और नहीं बढ़ते परिवार के जीने का कोइ सहारा .मेरी माँ  दादी की कितनी भी सेवा कर ले पर माँ को ही कम लगता था पर दादी थी की खुश न होती थी ..अन्तोगत्वा एक दिन दादी माँ की गाली एकदम से बंद हो गयी। दादी स्वर्ग सिधार गयी .दादी की गाली से उपजा  आशीर्वाद मेरे परिवार के लिए इतना सुखकारी  साबित हुआ कि  आज पूरी बस्ती में मेरे परिवार इतना सुखी कोइ नहीं है मिट्ठू .....
बुजुर्गो की सेवा कर्तव्य और तपस्या है .बुजुर्गो का आशीर्वाद जीवन की श्रेष्टतम सफलता जगत बाबू .काश ये मन्त्र युवा पीढी समझ लेती ..डॉ नन्द लाल भारती 02.05.2013