Thursday, May 23, 2013

स्वर्णिम कलम/लघुकथा

स्वर्णिम कलम/लघुकथा
गीली पलकें क्यों चिराग के पापा ?
गीली  पलकें नहीं खुशी कहो .
इतनी ख़ुशी .?
हां ...स्वर्णिम कलम दिखाते हुए शब्दप्रेमी बोले बात कलम की ही नहीं है .
और क्या है .....?यह भी लिखने के काम आयेगी .
आएगी तो सही कलम के पीछे भावना और सम्मान जो है वह तो दुनिया भर के खजाने से नहीं ख़रीदा जा सकता .चिराग ने मुंबई से  भेजा है .
जानती हूँ .
जानकर भी हलके में ले रही हो .
क्या ..........?
हां ...बेटवा का बाप के नाम गिफ्ट वह भी स्वर्णिम कलम बड़ी बात है .इसका मर्म समझती हो .
नहीं ....तुम रचनाकार जानो .मै  तो बस इतना जानती हूँ की बेटवा बड़ा और तुम्हारी तरह बुध्दिमान हो गया है .तभी तो बाप को स्वर्णिम कलम गिफ्ट किया है ताकि तुम राष्ट्र और समाज के हित में और अच्छा लिख सको .यहो सोचकर तुम्हारी पलकें गीली हो रही है .
हां चिराग की माँ मुझ जैसे बाप को बेटवा से कलम पाकर पलकें गीली तो होगी क्योंकि लेखक के लिए कलम तो अनमोल होती है बेटवा की पहली कमाई से तो और मूल्यवान हो जाती है .लेखक के लिए बड़ी और ख़ुशी की इससे और बड़ी बात क्या हो सकती है .
मुबारक हो गीली पलकें चिराग के पापा .
स्वर्णिम कलम को शब्दप्रेमी माथे चढाते हुए बोले तुम्हे भी चिराग की माँ .
डॉ नन्द लाल भारती 23.05.2013

No comments:

Post a Comment