Wednesday, May 8, 2013

राज /लघुकथा

राज /लघुकथा
क्या हुआ साहब जी .................?
क्या होगा छकड़ प्रसाद का वही तुगलकी फरमान .
आपके ही लिए क्यों .उच्च शिक्षित हो प्रतिष्ठित हो,वफादार हो ,समय के पाबंद हो दूरदृष्टि रखते हो . सारी योग्यताये आपके पास है ,फिर दोहरा मापदण्ड क्यों ....?
बहादुर जातीय तो अयोग्य हूँ .पच्चीस साल से शोषण का शिकार हूँ . तुमको आये महीना हे तो अभी हुआ है सब राज जान  जाओगे .छकड़ प्रसाद,उच्च व्यवस्थापक महोदय कठोर सींग ,चापलूस मेनेजर को और अधिक मौखिक पावर दे दिए है ताकि वे मेरी नाक में नकेल डाले रहे .बहादुर सामंतवादी कार्पोरेट कंपनी में दोयम  दर्जे का बना दिया गया हूँ ,यही मेरा दुर्भाग्य है .
साहब जी आप भी तो अफसर हो .
बहादुर हूँ  तो पर कमजोर वर्ग का .दुनिया भले ही नजदीक आ गयी हो पर अपने देश में जातिवाद की खाई नजदीक नहीं आने देती .यही जातिवाद शोषण ,अत्याचार और भ्रष्टाचार का जनक है। सामंतवादी कार्पोरेट कंपनी में मेरे भविष्य की तबाही का राज भी .
बहादुर आओ इस राज का पर्दाफाश करे साहब जी .
डॉ नन्द लाल भारती
09 .05.2013

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