Monday, May 6, 2013

अधिकार/लघुकथा

अधिकार/लघुकथा
स्कूल का चौकीदार नहा -धोकर ईश पूजा में ध्यानमग्न  था इसी बीच स्कूल प्रांगण में बने मंदिर सामने अत्याधुनिक बाईक खडी हुई .बाईक सवार पहलवान सरीखे आदमी हेलमेट और जूता पहने सीधे मंदिर में प्रवेश किया।ज्ञान की देवी की मूर्ति के गले में माला डाल दो फूल इधर उधर फेंका . सेकेंडो  पूजा कर्म निपटा कर  धुँआ का गुबार छोड़ते हुए फुर्र हो गया .चौकीदार भी पूजा कर्म पूरा कर उठा हाथ की किताब के माथे चढ़ाते हुए उठा स्कूल के गेट बंद कर अपने क्वार्टर की और जाने लगा .इसी बीच दयावान ने आवाज लगा दिया चौकीदार भईया वह वापस आ गया और बोला जी साहब .
दयावान- दादा बहादुर कौन थे जो मूर्ति के गले में दूर से माला फेंकर भाग लिए जैसे उनके इऎछे पुलिस पडी हो .
चौकीदार -पंडित जी थे पूजा करने आते है तनख्वाह पर.
दयावान -ये तो पूजा नहीं देवी का अपमान है .
चौकीदार -जाती से पंडित जी है न सब जायज है .
दयावान-वाह रे जातीय आरक्षण .कब ख़त्म होगी ये महामारी मन ही मन बोले।
चौकीदार -साहब कुछ कहे .
दयावान- पंडित जी से अच्छी पूजा तो तुम कर लेते .
चौकीदार -हमें अधिकार कहाँ ...................?
डॉ नन्द लाल भारती
07.05.2013

No comments:

Post a Comment