Friday, July 12, 2013

शर्म और चिंता /लघुकथा

शर्म और चिंता /लघुकथा 

अरे  भाई सुभाष हो क्या ....? डाक्टर बन गए .
आप कौन ........?
याद  करो तीस साल पहले साथ पढ़ते थे .
कन्हैया मेरे यार .....
हां ......
कहा हो मालवा में .......
नौकरी ठीक ठाक चल रही है .डाक्टर ब्रदर तो मिलता रहता है .सब खबर लग जाती है पर मुलाकात नहीं हो पाती थी .ऐसे गाँव छोड़े जैसे गदहे के सर से सींग.
पापी  पेट का सवाल है .गाँव में क्या करता बैल घुमाने भर की तो जगह नहीं है .तुम तो ऊँची बिरादरी के ठहरे साधन संपन्न कुछ भी करते सफलता तो मिलनी थी .हमारे साथ तो उल्टा है ना .
यार  तुम पुरानी बाते  नहीं भूले .अरे जमाना बदल गया है .जातिपांति ख़त्म हो रहा है .
सब कहने की बाते है .मेरा तो कैरियर ख़त्म कर दिया है जातिपांति ने .
क्या ....संघे शक्ति अंतरराष्ट्रीय संस्था में .
हां ...संघे शक्ति अंतरराष्ट्रीय संस्था तो रुढ़िवादी मानसिकता वालो के कब्जे में .
तुम्हारे  पास तो जी एम् बनने की योग्यता है ,तुम्हारा इतना पढ़ा लिखा तो आस पास के कई गाँव में कोई नहीं है .
हर योग्यता के बाद भी पर रह गया चौथे दर्जे का .प्रमोशन के सारे रस्ते बंद कर दिए है जातिपांति ने यही मलाल है .
मित्र तुम्हारा मलाल जायज है .कर्म की महानता संघे शक्ति अंतरराष्ट्रीय संस्था में मरणासन्न लगती है ,जातीय योग्यता विभाग के निति निर्धारको के लिए शर्म और कर्मयोगी  के लिए चिंता की बात है .

डॉ नन्द लाल भारती  13.07.2013      

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