Saturday, July 20, 2013

तपस्या /लघुकथा

तपस्या /लघुकथा
यार तुम्हारा नाम लेकर तुहारे दफ्तर से कोई कह रहा है ,बाहर  बैठा है  उसे दे देना .तुम चौकीदार तो हो नहीं .अपने विभाग के उच्चशिक्षित हो .कौन है .....?
जिम्मेदार उच्चवर्णिक अफसर .
क्या .............?
ठीक सुने .
मतलब .
अभिमान के प्रति जिम्मेदार .
नौकरी कर रहे है या कंस  के वंश के राजकुमार है .
यही समझो .
यार तुम्हार दफ्तर तो तुम्हारे खिलाफ है .
है ना  तभी तो चौथे दर्जे से तरक्की नहीं हुई हमारी .
वजह .......
जातीय बीमारी .....
क्या .............?
मेरा नौकरी का जीवन वैसे ही कट  रहा है जैसे सर पर तेजाब का जार हो  और पाँव के नीचे दहकती आग .
बहुत दर्द पीकर नौकरी कर रहे हो .
नौकरी नहीं तपस्या परिवार के भविष्य के लिए .
तुम्हारी तपस्या सफल हो .

डॉ नन्द लाल भारती
21.07.2013       


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