Wednesday, August 21, 2013

वचन/लघुकथा


वचन/लघुकथा
पापाजी राखी के दिन तो जल्दी आ जाते।
हाँ बीटा आना तो था पर नहीं आ पाया नौकरी करनी है ना।
पापाजी और लोग नौकरी कर रहे है। देर से जाना जल्दी आना रोज का काम होता है पर आप तीज त्यौहार के दिन जल्दी नहीं आ पाते। दफ्तर का समय तो दस से साढ़े पांच बजे है फिर बेगारी क्यों। राखी के दिन सात बजे आ रहे हैं।
बेटी छोडो जाओ थाली तैयार करो. कमजोर आदमी को दंड तो मिलता है।  क्यों जी आज भी कोई दफ्तर में नहीं रहा होगा। यही ना।
हाँ  भागवान।
शोषण,अत्याचार, भविष्य का क़त्ल इसके बाद भी बाबूगिरी से चौकीदारी तुम्हारी ही जिम्मेदारी , वाह  रे भेदभाव ,घाव एक दर्द हजार।
भगवान-मुहूर्त नहीं निकल रहा है क्या अब.
फुआ  जी लज्दी  राखी बांधो वरना  मुहूर्त निकल जायेगा
क्या दे रहे हो जी।
क्या दूं भागवान।
वजन बढाओ वचन तो पूरा कर नहीं पाओगे साठ साल की उम्र तक।
डॉ नन्द लाल भारती   21.08.2013



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