कत्ल /लघुकथा
बिग बॉस विक्रय बिलों का पुलिंदा रखते हुए बोले रघुराज आज ये सारी सेल बुक हो जनि चाहिए ।
बॉस साढ़े सात बज चुके है। ढाई तीन घंटे का ये पूरा काम है।
काम तो कारन पड़ेगा चाहे तीन घंटा लगे चाहे चार …।
दफ्तर का समय दस से साढ़े पांच बजे तक होता है बॉस।
जनता हूँ। काम तो करना पड़ेगा।
जल्दी आना देर से जाना रोज का काम हो गया है बंधुवा मजदूर जैसे।हमारे भी बाल-बच्चे है घर-परिवार है बिना किसी लाभ के पेट पर पट्टी बाँध कर कब तक काम करूँगा। अत्याचार अब सहा नहीं जाता बॉस ।
अत्याचार कैसा ?
अत्याचार नहीं तो और क्या नाम दूं ?
ड्यूटी है तुम्हारी ,अत्याचार नहीं। काम तो तुम्हे करना पड़ेगा।
ड्यूटी का समय ख़त्म हो चुका है।
अच्छ तो साहेब को ओवर टाइम चाहिए।
मैं भी नौकरी कर रहा हूँ औरो की तरह। श्रम और समय की खैरात लुटाने नहीं आया हूँ। समय से आता हूँ रोज देर से जाता हूँ।कभी-कभी तो रात के दस बज जा रहे है ये कैसी नौकरी हमारी। एक स्वजातीय अफसर है बारह बजे आते है ,रौब दिखाते है ,दस हजार तक का अतिरिक्त लाभ यात्रा भत्ता ,लोकल कनवेंस के नाम पर ले रहे है .ऊपर से सरकारी एंव अन्य ढेर सारी सुविधाओ का भरपूर उपभोग। बच्चे सरकारी गाडी से स्कूल और ट्यूशन जा रहे है। हम भी उसी विभाग के कर्मचारी है जिस विभाग के दूसरे विशेष सुविधा प्राप्त। मुझ परजाति के कर्मचारी को विभाग के हित में फ़र्ज़ पर फ़ना होने का दंड क्यों मिल रहा है। क्या यह श्रम और मानवाधिकार का क़त्ल नहीं… ? कहते हुए रघुपति टिफिन उठाया और घर की और चल पड़ा। डॉ नन्द लाल भारती। 28.08.2013
बिग बॉस विक्रय बिलों का पुलिंदा रखते हुए बोले रघुराज आज ये सारी सेल बुक हो जनि चाहिए ।
बॉस साढ़े सात बज चुके है। ढाई तीन घंटे का ये पूरा काम है।
काम तो कारन पड़ेगा चाहे तीन घंटा लगे चाहे चार …।
दफ्तर का समय दस से साढ़े पांच बजे तक होता है बॉस।
जनता हूँ। काम तो करना पड़ेगा।
जल्दी आना देर से जाना रोज का काम हो गया है बंधुवा मजदूर जैसे।हमारे भी बाल-बच्चे है घर-परिवार है बिना किसी लाभ के पेट पर पट्टी बाँध कर कब तक काम करूँगा। अत्याचार अब सहा नहीं जाता बॉस ।
अत्याचार कैसा ?
अत्याचार नहीं तो और क्या नाम दूं ?
ड्यूटी है तुम्हारी ,अत्याचार नहीं। काम तो तुम्हे करना पड़ेगा।
ड्यूटी का समय ख़त्म हो चुका है।
अच्छ तो साहेब को ओवर टाइम चाहिए।
मैं भी नौकरी कर रहा हूँ औरो की तरह। श्रम और समय की खैरात लुटाने नहीं आया हूँ। समय से आता हूँ रोज देर से जाता हूँ।कभी-कभी तो रात के दस बज जा रहे है ये कैसी नौकरी हमारी। एक स्वजातीय अफसर है बारह बजे आते है ,रौब दिखाते है ,दस हजार तक का अतिरिक्त लाभ यात्रा भत्ता ,लोकल कनवेंस के नाम पर ले रहे है .ऊपर से सरकारी एंव अन्य ढेर सारी सुविधाओ का भरपूर उपभोग। बच्चे सरकारी गाडी से स्कूल और ट्यूशन जा रहे है। हम भी उसी विभाग के कर्मचारी है जिस विभाग के दूसरे विशेष सुविधा प्राप्त। मुझ परजाति के कर्मचारी को विभाग के हित में फ़र्ज़ पर फ़ना होने का दंड क्यों मिल रहा है। क्या यह श्रम और मानवाधिकार का क़त्ल नहीं… ? कहते हुए रघुपति टिफिन उठाया और घर की और चल पड़ा। डॉ नन्द लाल भारती। 28.08.2013
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