विदाई /लघुकथा
रिटायर्मेंट की औपचारिक विदाई के आखिरी पल में लालदास से कामदास ने पूछा अपने सेवा काल के बारे में कुछ बताओ।
लालदास-
खून के आँसू। वह रुमाल निचोड़ते हुए बोल दोयम दर्जे का आदमी बना दिया गया।
सेवाकाल नारकीय रहां. उच्च योग्यता को जातिवाद के कसौटी पर अयोग्य साबित
करने का पूरा प्रयास हुआ। तरक्की से दूर फेंक दिया गया। शोषण,उत्पीडन और
दर्द में मधुमास बिता। कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार बना रहा।
कामदास-तपस्यारत रहकर दर्द में सकून ढूढा है शायद इसीलिए की रूपया खुद नहीं तो खुद से कम नहीं।
लालदास-जीवन
यापन के लिए तो कुछ करना ही था नौकरी ही सही, दुर्भाग्यवश जितिवाद के
मरुस्थल में फंस गया । सेवाकाल सिर पर तेज़ाब के गठरी और छाती पर दर्द का
बोझ लेकर बिता है . अर्थ की तुला पर व्यर्थ हूँ पर जहाँ में उजली पहचान
तो बन गयी है ,विष पीकर ही सही।
कामदास -रिटायरर्मेंट के बाद का जीवन सुखी रहे,संतोष की सफलता मुबारक हो मेरे यार.
डॉ नन्द लाल भारती
03 .08 .2013
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