Thursday, August 1, 2013

दरबारी शौक /लघुकथा

दरबारी शौक /लघुकथा
दरबार-दरबार की हुंकार तुम्हारे दफ्तर है ,क्या है दरबार ?
संभवतः राजपरिवार  से सम्बंधित हो।
राजतंत्र नहीं लोकतंत्र है।
भ्रम है मित्रवर।
कैसे ?
लोकतंत्र में आम आदमी कहा है ?
हाशिये पर ,खैर असली आजादी का मतलब तो ये नही था।
मतलब कुछ रहा हो पर तंत्र का चेहरा विकृत हो गया है। संविधान राष्ट्र का धर्म ग्रन्थ होना चाहिए  था है क्या, जातिवाद पर कोइ फर्क पड़ा क्या ,स्व-धर्मी मानवीय समानता है क्या ,भूमिहीनता ख़त्म हुई क्या। शोषितों की बस्ती के कुएं का पानी पवित्र हुआ  क्या ?नहीं ना।
समझ गया।
क्या             ?
गुलामी और असली आजादी का सपना ना पूरा होने का कारण।
क्या   ?
राज दरबारी शौक।
डॉ नन्द लाल भारती
  02 अगस्त 2013



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