जय -विजय /लघुकथा
कब रिटायर हो रहे हो परवेश ?
दर्द से मन नहीं भरा क्या ? अब रिटायर करने की जल्दी सामंतो ?
भला हमें जल्दी क्यों होगी ?
किसी उच्च-स्व-जातीय रिश्तेदार को नौकरी मिलने की ।
क्यों बोली से गोली मार रहे हो ?
क्यों बोली से गोली मार रहे हो ?
हकीकत तो यही है ना सामंतो . कितने षणयंत्र रचे गए फिर भी नौकरी पर काबिज हूँ
नौकरी से बेदखल तो नहीं हुए ना।
योग्यता और संविधान के भरोसे टिका हूँ रिसते जख्म के दर्द पीकर अर्ध शासकीय नौकरी में।
जनरल मैनेजर नहीं बन पाने का मलाल तो होगा .
मलाल तो रहेगा। जातिवाद के पोषक दमनकारी आदमियत के दुश्मन ,योग्यता के बलात्कारियो का चक्रव्यूह तोड़ने में और वक्त लगेगा।
तब तक तुम्हारी कई पीढ़िया गल जायेगी परवेश।
सामंतो
याद रखो इतिहास गवाह है दमनकारियों का नाश हुआ है। भले ही मुझे आगे नही
बढ़ने दिया ,नित नए जख्म दिए ,झराझर आंसू दिए,बार -बार हार दिए हौशलापस्त
नहीं हुआ पर जय-विजय हमारी ही हुई है परवेश गर्व से बोला।
सामंतो -सतयमेव जयते।
डॉ नन्द लाल भारती
04 अप्रैल 2014
04 अप्रैल 2014
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